ठेका में आरक्षण पर लटकी तलवार

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प्रमोद दत्त

आरक्षित कोटे से प्राप्त ठेका पर लटकी है न्यायालय की तलवार.ठीकेदारी में आरक्षण की पहल करनेवाली बिहार सरकार विकल्प ढूंढेगी या वापस होगा आरक्षण ? आरक्षित कोटे से प्राप्त ठेका का काम कितना जोखिम भरा है? ऐसे सवाल इसलिए उठाए जा रहे हैं क्योंकि ठीकेदारी में आरक्षण के मामले में फाइनल सुनवाई अभी बाकी है और पटना हाईकोर्ट का रुख कड़ा है.

विधानसभा चुनाव के ठीक पहले नीतीश सरकार ने वोट बटोरने के ख्याल से बिहार में 15 लाख तक के ठेका में आरक्षण लागू किया.इसे पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.मामले की सुनवाई कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इकबाल अहमद अंसारी और न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ कर रही है.इसकी अगली सुनवाई 21 जनवरी16 को होनी है.अगर हाईकोर्ट राज्य सरकार के निर्णय को अवैध ठहराती है तो विगत 1जुलाई15 के बाद 15 लाख तक का जो भी ठेका आरक्षण के आधार पर बिना टेंडर दिए गए होंगे उसपर गाज गिर सकती है.

उल्लेखनीय है कि नीतीश सरकार द्वारा ठेका में आरक्षण को पिछले वर्ष लागू किया गया. 1जुलाई15 को पथ निर्माण विभाग ने एक आदेश जारी किया जिसमें पी.डब्ल्यू.डी. रूल्स 159 को संशोधित करते हुए यह निर्णय लिया गया कि 15 लाख या इससे कम का ठेका बिना निविदा प्रकाशन (समाचार पत्र या ई टेंडर) यानि सिर्फ प्रचार-प्रसार के माध्यम से दिया जाएगा. सरकारी नौकरी के समान बिहार आरक्षण ऐक्ट 1991 के अनुसार पिछड़ा,अतिपिछड़ा,अनुसूचित जाति व अनु.जनजाति के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत का आरक्षण होगा.

राज्य सरकार के इस निर्णय के खिलाफ एक महिला ठीकेदार सपना सिंह ने विगत 25 अगस्त15 को पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की.21 दिसम्बर15 को हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भारत के संविधान के तथ्यों को देखते हुए इसपर सुनवाई की. सुनवाई के बाद खंडपीठ ने आदेश दिया कि सरकार के रूल्स के अनुसार 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है तो ऐसे दिए गए ठीके का निर्णय हाईकोर्ट के फैसले के फलाफल पर निर्भर करता है.खंडपीठ ने सरकारी वकील को निदेश दिया कि हाईकोर्ट के आदेश से विभागीय अधिकारियों को अवगत करा दिया जाए.  फाइनल सुनवाई 21जनवरी16 को होगी.यानि हाईकोर्ट के निर्णय के अनुसार ठीके में आरक्षण अवैध व असंवैधानिक है.

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दीनू कुमार का मानना है कि एक प्रकार से हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा लिए निर्णय को संवैधानिक नहीं माना एवं रोक लगा दी है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 19,299,301 एवं 301 से स्पष्ट है कि ठेका में आरक्षण मान्य नहीं है.व्यक्ति के मौलिक अधिकार को एक सरकारी संकल्प द्वारा संशोधित कर आरक्षण लागू कर दिया गया. यह किसी कल्याणकारी राज्य के चरित्र के विपरीत है.साथ ही संविधान व बिहार राज्य वित्त नियमावली के भी खिलाफ है.

 

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