बिहार:एनडीए के लिए क्यों जरूरी थे चिराग?

94
0
SHARE
Chirag

प्रमोद दत्त.
पटना.लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही बिहार की चालीस सीटों के लिए एनडीए में सीटों का बंटवारा हो गया.एक सांसद वाले चिराग पासवान को जहां पांच सीटें दी गई वहीं पांच सांसदों वाले पशुपति कुमार पारस को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.पिछले 2019 के चुनाव में चाचा पारस और भतीजा चिराग एक साथ थे और लोजपा को दी गई सभी छ: सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की थी.चाचा-भतीजा के बीच सुलह की खत्म हुई गुंजाईश के बाद अंतत: भाजपा नेतृत्व ने चिराग को ही तरजीह दी क्योंकि वे एनडीए के लिए जरूरी बन गए थे.
पिछले 2019 के चुनाव मे भाजपा-17,जदयू-17 और लोजपा-6 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें जदयू को एक मात्र किशनगंज सीट पर हार मिली थी.शेष सभी 39 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी.सीटों के तालमेल में इस बार भाजपा-17,जदयू-16,लोजपा( चिराग)-5 और जीतनराम मांझी व उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी को एक-एक सीटें मिली है. पिछले लोकसभा चुनाव के बाद लोजपा का विभाजन हो गया.पशुपति पारस के साथ पांच सांसद चले गए.पारस केन्द्र में मंत्री बनाए गए.चिराग पासवान अकेले सांसद रह गए.दोनों चाचा-भतीजा के बीच रामबिलास पासवान के उतराधिकारी की लड़ाई चलने लगी.दोनों अपनी पार्टी को असली लोजपा होने का दावा करने लगे.
लोकसभा चुनाव के लगभग एक वर्ष बाद हुए विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए. चुनाव में चिराग खुद को नरेन्द्र मोदी का हनुमान बताते हुए नीतीश कुमार को टारगेट बनाकर प्रचार अभियान चलाया.नतीजतन विधायकों की संख्या के हिसाब से 2005 से लगातार एक नंबर पर रही जदयू तीसरे नंबर पर चली गई.चिराग पासवान के इस निर्णय से चाचा पारस नाराज थे.इस नाराजगी को तूल दी गई और पार्टी विभाजित हो गई.
बताते चलें कि बिहार की 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद 2020 के विधान सभा चुनाव में एनडीए के सभी उम्मीदवारों को कुल 1,57,02,650 वोट और महागठबंधन के उम्मीदवारों को कुल 1,56,91,500 वोट मिले.हालांकि एनडीए की सरकार बन गई लेकिन दोनों गठबंधन में वोटों का अंतर मात्र 11,150 ही था. जबकि लोजपा के 135 उम्मीदवारों ने 23,83,739 हासिल किए थे.नीतीश-विरोधी छवि बनाते हुए चिराग ने बिहार का दौरा शुरू किया तो उनकी सभा में अच्छी भीड़ जुटती गई.इधर राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी अपना राजनीतिक कद बढा लिया.स्वाभाविक तौर पर चिराग एनडीए के लिए जरूरी बन गए और चाचा पारस उपेक्षित हो गए.