जब्त हो सकता है जदयू का चुनाव चिन्ह तीर ?

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प्रमोद दत्त.पटना.चुनाव आयोग और राज्यसभा में मात खाए शरद यादव गुट ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.दरअसल,पार्टी और राज्यसभा सदस्यता गंवाने के बाद उनका लक्ष्य है जदयू का चुनाव चिन्ह तीर जब्त हो जाए.तीर अगर शरद का नहीं तो नीतीश का भी नहीं रहे.इस कानूनी लड़ाई पर यह सवाल उठने लगा है कि क्या जदयू का चुनाव चिन्ह तीर जब्त होगा ?

शरद गुट के महासचिव अरूण श्रीवास्तव स्पष्ट कर चुके हैं कि चुनाव आयोग के फैसले में हुई देरी के कारण शरद गुट को गुजरात में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए जल्दीबाजी में कुछ निर्णय लेने पड़े.गुजरात चुनाव के बाद दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में नवगठित पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन होगा.उन्होने कहा- चुनाव आयोग में जदयू पर दावे की कानूनी लड़ाई जारी रहेगी.लेकिन इस वजह से राजनीतिक उद्देश्य प्रभावित नहीं हो इसके लिए नई पार्टी बनाने का फैसला लिया गया.

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने शरद गुट के दावे को खारिज करते हुए नीतीश नेतृत्व वाले जदयू को मान्यता दे दी है और आयोग के इस फैसले को शरद गुट ने दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है.मामले पर सुनवाई चल रही है.शरद गुट लंबी लड़ाई लड़ने के मूड में दिखती है.

उल्लेखनीय है कि जब लालू प्रसाद ने जनता दल का विभाजन करते हुए राष्ट्रीय जनता दल बनाया था जब चक्र चुनाव चिन्ह की लड़ाई लालू-शरद के बीच चली थी.चुनाव आयोग ने लालू को चुनाव चिन्ह के नाम पर कप-प्लेट थमा दिया था और शरद चक्र लेकर घूम रहे थे.विवाद बढा और दोनों को लालटेन व तीर के रूप में नया चुनाव चिन्ह मिल गया.तब नीतीश कुमार की समता पार्टी के पास मशाल चुनाव चिन्ह था.1995 में समता पार्टी का भाजपा के साथ तालमेल हुआ.1996 लोकसभा चुनाव से शरद और रामविलास पासवान ने जदयू को भी एनडीए में शामिल करा दिया.2000 के विधान सभा चुनाव के बाद एक सप्ताह में ही नीतीश नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार गिर गई.बाद में भाजपा विधायकों की तुलना में अपने दल की संख्या बढाना और प्रतिपक्ष के नेता का पद पर कब्जा करने के उद्देश्य से नीतीश ने समता पार्टी का जदयू में विलय कर दिया.शरद यादव जदयू के राष्ट्रीय नेता व एनडीए के संयोजक बने तो नीतीश बिहार की सत्ता पाने के संघर्ष में जुट गए.

आज जदयू का विवाद उसी दोराहे पर खड़ा है.शरद की भावना तीर चुनाव चिन्ह से जुड़ी है.चुनाव आयोग ने भले ही नीतीश गुट को जदयू मान लिया है लेकिन कानूनी विवाद बढाकर तीर चिन्ह को ही जब्त कराना शरद गुट का अंतिम लक्ष्य हो सकता है.नई पार्टी बनाने के साथ-साथ जदयू पर दावेदारी की कानूनी लड़ाई का असली मकसद यही है.तीर मेरा नहीं तो तेरा भी नहीं- देखना दिलचस्प होगा कि इस लड़ाई में जदयू अपने तीर को बचा पाता है या नहीं.

 

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