राष्ट्रपति चुनाव के बहाने राजद-कांग्रेस को नीतीश का कड़ा संदेश..पढें यह खबर

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रिंकू पांडेय.

पटना.राष्ट्रपति चुनाव में बिहार में सत्तारूढ़ महागठबंधन में शामिल जदयू की ओर से एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के समर्थन के बाद से यह कयास जारी है कि अंदरखाने सबकुछ ठीक ठाक नहीं है.जदयू के समर्थन के बाद उठे सवालों के अंदर सवालों को खोजा जाये, तो यह स्पष्ट है कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की रणनीति को न राजद समझ पा रही है और न ही कांग्रेस. चंहुओर सिर्फ यही चर्चा है कि कोविंद को समर्थन करने, जीएसटी का समर्थन करने की वजह जदयू की भाजपा से बढ़ती नजदीकियां हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बिल्कुल ऐसा नहीं है, यहां सियासत में सहमति को हमेशा अपने-अपने व्यक्तिगत विचारों के आईने में देखने की आदत सी हो जाती है. बात कांग्रेस को समझनी होगी कि आखिर आगामी 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार कौन होगा ? लोकसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जायेगा ? इन सवालों पर कांग्रेस और महागठबंधन में शामिल दलों को विचारना होगा.
कई मौकों पर ऑन द रिकार्ड बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह चुके हैं कि वह आगामी लोकसभा चुनाव में पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं. अब सवाल यह है कि उन्होंने पीएम पद के उम्मीदवार नहीं होने की बात कही है. इसका मतलब यह नहीं कि वह विपक्ष के नेता के रूप में आगे नहीं आयेंगे. कांग्रेस को लगता है कि एक बार फिर राहुल गांधी 2019 में पूरी तैयारी के साथ आगे आयेंगे और मामला संभल जायेगा, लेकिन राहुल गांधी के प्रयोग केंद्रीय स्तर की राजनीति में अबतक सफल हुए हों, ऐसा दिखता नहीं है. राहुल के भरोसे 2019  की परीक्षा विपक्ष पास कर लेगा, इसका उत्तर किसी के पास नहीं है. अब राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विपक्षी एकता की कवायद पर जरा गौर से देखने की जरूरत है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जैसे ही रामनाथ कोविंद के समर्थन की बात कही, ऐसा लगा मानों पूरा विपक्ष बिखर सा गया. लालू यादव ने दिल्ली में मीडिया से यहां तक कह दिया कि नीतीश कुमार ऐतिहासिक भूल कर रहे हैं. लालू का यह कहना नीतीश के अबतक के सियासी फैसलों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. हालांकि, नीतीश कुमार ने एंटी एनडीए फ्रंट की उम्मीदवार मीरा कुमार को लेकर एक ऐसा बयान दे दिया, जिसके बाद महागठबंधन में जुबानी जंग शुरू हो गयी. नीतीश कुमार ने चुनाव में आंकड़ों को मद्देनजर रखते हुए कह दिया कि बिहार की बेटी को हराने के लिए खड़ा किया जा रहा है. यह सोचने वाली बात है कि जो विपक्ष पूरी तरह एंटी एनडीए फ्रंट बनाकर 2019 में नरेंद्र मोदी से भिड़ने का मन बना रहा था, वह एक राष्ट्रपति चुनाव के पहले बिखर गया. इतना ही नहीं कांग्रेस नेताओं ने कुछ आगे बढ़कर बयानबाजी कर डाली. कांग्रेस नेता सीपी जोशी तो यहां तक बोल गये कि महागठबंधन का स्वरूप सिर्फ बिहार तक सीमित है.
बिहार के राजनीतिक पंडितों की मानें तो महागठबंधन में शामिल दलों को बहुत सारी बातें समझ में नहीं आ रही है. यह बात सामने आ गयी है कि नीतीश कुमार महागठबंधन से ज्यादा बेहतर स्थिति में भाजपा के साथ सरकार चला रहे थे. जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने यह कहकर इस पर मुहर लगा दी कि भाजपा के साथ सरकार चलाना काफी सहज था. जरा सोचिए, सिर्फ नीतीश कुमार के एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन कर देने भर से विपक्षी एकता बिखर सी गयी. मीरा कुमार के नामांकन में भी बड़े नेताओं की अनुपस्थिति, क्या नीतीश की उस बात पर मुहर नहीं लगाती है कि बिहार की बेटी को हारने के लिए मैदान में उतारा गया है. नामांकन में ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती, अजीत सिंह, लालू यादव और राहुल गांधी नहीं पहुंचे. लालू ने अपने प्रतिनिधि भेजकर उससे छुट्टी पा ली.
विपक्षी एकता के लिए राष्ट्रपति चुनाव मुख्य बिंदु है. विपक्ष को इस बात का इशारा समझ लेना चाहिए कि 2019 में बिना नीतीश के नैया का पार लगना संभव नहीं है. दूसरी बात नीतीश कुमार नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक, जीएसटी और राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर एनडीए का समर्थन कर चुके हैं. कांग्रेस और राजद को यह समझना होगा कि नीतीश कुमार का अगला कदम क्या हो सकता है. कांग्रेस राहुल का मोह छोड़े और नीतीश कुमार पर नजर टिकाये, तब ही कुछ मामला बन सकता है, वरना जब महागठबंधन में ही रहना है तो एनडीए के साथ क्यों नहीं ? जदयू को यह विचार सुझते कितनी देर लगेगी.

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