बिहार सरकार में जब नहीं गली दाल,तो आ गए बीसीए को करने कंगाल

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मोहन कुमार.

 किसी भी व्यक्ति के द्वारा पूर्व में किए गये कार्य उसके व्यक्तित्व और कृतित्व का आधार माना जाता है, बीसीए के अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी के कुछ पूर्व की के कारनामों से रूबरू होना आवश्यक है, इसे पढ़कर स्वयं तय करें कि क्या इसके साथ जाना चाहिए,  या इस व्यक्ति का तत्काल प्रभाव से वहिष्कार किया जाना चाहिए। प्रमाण सहित प्रस्तुत है विशेष रिपोर्ट की पहली किस्त।

पटना: वैसे तो बीसीए अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी का नाम आते हीं बिहार क्रिकेट से जुड़े अधिकांश लोगों के मन में असंवैधानिक कार्यों की गूँज सुनाई देने लगती है, या यों कहें कि  संविधान के विरुद्ध काम करना बीसीए अध्यक्ष की पहचान बन गई है, लेकिन आज जिन मामलों से पर्दा उठाने जा रहा हूँ,  वो बीसीए, बीसीए के जिला संघों के पदाधिकारियों और बिहार क्रिकेट से जुड़े लोगों को बीसीए अध्यक्ष की सच्चाई और बीसीए में आने और लगातार असंवैधानिक कार्यों को अंजाम देने आदि के उद्देश्य से प्रमाणिक रूप से रूबरू करा देगा।

जो व्यक्ति आज बीसीए अध्यक्ष राकेश कुमार तिवारी के छद्म जाल में उलझ कर उसके ग़लत काम में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भागीदार बन रहे हैं, उन सबों को सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि इस व्यक्ति के साथ क्यों रहूँ। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि जो भी जिला संघ, बीसीए के पदाधिकारी, कर्मचारी या समाज में एक अच्छी छवि के साथ जीने वाले लोग, सब के सब इस राकेश कुमार तिवारी से किनारा करने में हीं अपनी भलाई समझेंगे।

यह छद्मवेशी राकेश कुमार तिवारी  बीसीए अध्यक्ष बनने से पहले कहां अपने जाल को बिहार सरकार में किस तरह से फैलाया इसके लिए एक एक करके तीन घटनाओं से आप सबों को परिचित करवाता हूँ।

घटना संख्या -1

बिहार सरकार के दस्तावेज के मुताबिक राकेश कुमार तिवारी की फ़र्म एश्वर्या फाउंडेशन ने 27 मई 2009 को पाटलिपुत्रा औद्योगिक क्षेत्र की E-2 और E-3 को लीज पर लेने का प्रस्ताव बिहार इंडस्ट्रीयल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (बियाडा), उद्योग भवन पटना को दिया।

बियाडा ने भी तीन माह से भी कम समय में 4 अगस्त 2009 को इन महाशय को इस 72,759 वर्ग फीट जमीन को सकल कीमत 15% लेकर इनके नाम कर दिया।

अब यहाँ से इन्होंने बिहार सरकार के साथ पहला खेला शुरू किया। तीन साल तक बियाडा से कोई संपर्क नहीं,  फिर बियाडा के साथ पटना उच्च न्यायालय के मुकदमा और एक नया प्रस्ताव बियाडा को दिया कि हम इस भूमि पर बिहार ट्रेड टावर बनाना चाहते हैं, जो एश्वर्या फाउंडेशन और एम भी होटल्स का संयुक्त उपक्रम (20:80) होगा। अब हम आपलोगों को इन दोनों कंपनियों के निदेशकों से रुबरु करवाता हूँ।

एश्वर्या फाउंडेशन के निदेशकों में राकेश कुमार तिवारी, उनकी धर्मपत्नी रंजना तिवारी और इनके पिता सुरेश तिवारी का नाम है, जबकि एम भी होटल्स के निदेशकों में राकेश कुमार तिवारी के अलावा इनकी धर्मपत्नी रंजना तिवारी है।

पैरवी और पहुंच के बदौलत  बियाडा ने इनके इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, मगर यह मामला यहीं तक नहीं रुका, पटना उच्च न्यायालय होते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक यह मामला गया, नये नये कहानी गढ़े गए, एकाध नये भागीदार की भी इंट्री हुईं,  लेकिन जो नहीं हुआ वो यह कि बियाडा को अपने भूमि के बदले समय पर तय निश्चित राशि नहीं मिली और प्रोजेक्ट में भी संविधान के विरुद्ध जाकर बदलाव करने का दवाब दिया जाने लगा।

अंततः बियाडा ने सभी पैरवीकारो की बातों और दवाब को दरकिनार करते हुए इस भूमि का आवंटन 15 जनवरी 2020 को रद्द करते हुए इसकी सूचना राकेश कुमार तिवारी को दे दिया, यानी यह भी कह सकते हैं कि घटना संख्या एक में बियाडा ने राकेश कुमार तिवारी से पीछा छुड़ा लिया। इस महानुभाव से बियाडा को मुक्त करवाने में कमोबेश 12 वर्ष यानी एक युग का समय लगा।

प्रमाण के लिए बियाडा द्वारा जारी पत्र जिसमें इनकी पूरी राम कहानी दर्ज है संलग्न किया जा रहा है।

घटना संख्या 2

एक कहावत है कि झूठ का जादू चल रहा हो, तो जितना हो सके समेट लो, वरना कब भांडा फूट जाएगा, कहना मुश्किल है। यही कहावत चरितार्थ हुई, एश्वर्या फाउंडेशन और बिहार ट्रेड टावर का मामला पटना उच्च न्यायालय से सुप्रीम कोर्ट तक दौर रहा था, बियाडा के अधिकारी गण पैरवी और मुकदमे से जूझ रहे थे, इसी बीच राकेश कुमार तिवारी ने एक नई फर्म उत्तम पाईप प्राइवेट लिमिटेड को बनाया और बियाडा से वर्ष 2013 में फ्लाई ऐश ब्रिक्स और पेवर ब्लाक के निर्माण के लिए पाटलीपुत्र इंडस्ट्रीयल एरिया की सी 8 ,कुल 17688 वर्ग फीट जमीन को आवंटित करवा लिया। छह वर्षों तक इस भूमि पर कोई काम नहीं हुआ, नतीजतन बियाडा ने इस निष्कर्ष के साथ कि” बियाडा के द्वारा सारी प्रक्रिया पूरी किए जाने के बावजूद इकाई को प्रारंभ करने की कोई अभिरुचि नहीं है, बकाया राशि एक लाख अठ्ठासी हजार  भी अप्राप्त रहा, इनकी मंसा केवल औद्योगिक क्षेत्र की भूमि को कब्जे में रखने की है, अतः दिनांक 9 जुलाई 2020 को इस भूमि का आवंटन रद्द कर दिया गया।

घटना संख्या 3

यह मामला भी उत्तम पाईप के नाम पर हीं हुआ, और वर्ष 2016 में पाटलिपुत्रा औद्योगिक क्षेत्र की भूमि संख्या डी 12, 10170 वर्ग फीट को भी फ्लाई ऐश ब्रिक्स और पेवर ब्लाक के नाम पर आवंटित कराया गया।

स्थिति वही रही , हवा-पानी देने के अतिरिक्त कुछ नहीं हुआ, कोई काम नहीं हुआ, और अंततः बियाडा ने बकाए की लगभग चालीस लाख रुपये का भुगतान न पाकर, भूमि पर कोई काम नहीं हुआ, और बियाडा ने भूमि आवंटन को रद्द कर दिया।

अब सोचिये कि जिस व्यक्ति ने सरकार की कुल एक लाख वर्ग फीट औद्योगिक क्षेत्र की भूमि को बगैर किसी काम के छह से बारह वर्ष तक उलझाए रखा, इतनी बड़ी सक्षम सरकारी तंत्र को इस छद्म जाल को समझने और तोड़ने में इतना वक्त लग गया, वो बीसीए को कितने वर्षों तक उलझाए रखेगा? क्या ऐसे व्यक्ति केहाथ में बिहार क्रिकेट और बिहार के लाखों क्रिकेटरों का भविष्य सुरक्षित रहेगा?

सभी जिला संघो के प्रतिनिधियों और बीसीए कमेटी ऑफ मैनेजमेंट के सदस्यों को इस व्यक्ति के साथ होने से पहले , इसकी योजना में फंसने से पहले जरूर सोंचना चाहिए।

यह व्यक्ति समाज का दुश्मन है, अपने छद्म गुणों से लोगों को और सरकार को ठगने का काम कर रहा है, जिसे  कमोबेश इसका पेशा भी कह सकते हैं।  अगर यही भूमि किसी कुशल  व्यवसायी को मिली होती तो इसमें कम से कम दो से तीन हजार बिहार के लोग रोजगार प्राप्त कर रहे होते, जिसमें आपके गांव और समाज से भी लोग होते, अब सोचिये कि इस व्यक्ति ने किस तरह से समाज में बेरोजगारी को बढाने का काम किया।

इस मामले से जुड़े सभी सरकारी आदेश संलग्न है, आप सब इसे पढ़कर स्वयं तय करें कि क्या इसके साथ जाना या इसका साथ देना सही है।  कहीं ऐसा न हो कि आप अनजाने में बड़ी गलती कर जाएं।विचार आपका — निर्णय आपका।( लेखक अरवल जिला क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव हैं)

 

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