बंद हुई सांसें पर गूंजती रहेगी किशोरी अमोनकर की आवाज

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डॉ नीतू नवगीत. सुर को सागर की अतल गहराईयों से हिमालय के उच्चश्रृंगों तक साधने वाली गायिका किशोरी अमोनकर हमारे बीच नहीं रही । उनके निधन से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के शीर्ष पर स्थापित एक दैदीप्यमान सितारे का अंत हो गया । एक ऐसा सितारा जिसके लिए गायन कभी महज गायन नहीं रहा बल्कि शरीर और आत्मा के मिलन से निकली एक ऐसी  आवाज रही जिसने करोड़ों संगीत प्रेमियों को संगीत के बहते रसधार में डुबकी लगाने के लिए मजबूर किया ।

गायिका मोगीबाई कुर्डीकर और गायक पिता वामन राव सोडिलकर की संतान किशोरी अमोनकर का जन्म 10 अप्रैल, 1932 को मुंबई में हुआ था । जब वह छोटी थी, तभी पिता का साया सर से उठ गया और स्कूली शिक्षा-दीक्षा से लेकर संगीत सिखाने की जिम्मेदारी माता मोगीबाई कुर्डीकर के कंधे पर आई । उन्होंने स्वयं जयपुर घराने में अल्लादिया खाँ से संगीत की शिक्षा ली थी । उन्होंने ही किशोरी अमोनकर को जयपुर घराने से संबंधित संगीत की बारीकियों को सिखाया ।  बाद में किशोरी अमोनकर ने नए-नए प्रयोग करते हुए रागों को कल्पना की उड़ान से आसमान में बादलों के पार ले जाने का काम किया । संगीत उनकी पहली मोहब्बत रही और साधना भी । अपनी साधना के लिए उन्हें एकांत पसंद था और उस एकांत के प्रति वह काफी संवेदनशील रहीं ।  इसी संवेदनशीलता के कारण कई बार उन पर तुनकमिजाजी के आरोप भी लगे । लेकिन ठुमरी और ख्याल गायन के साथ-साथ भजन गायकी और फिल्मी गायन के क्षेत्र में भी सक्रिय रहने वाली किशोरी अमोनकर ने कभी भी समझौता करना या झुकना मंजूर नहीं किया । संगीत शास्त्र पर आधारित स्वरार्थ मणि राग रस सिद्धांत की रचना करने वाली किशोरी अमोनकर ने अनेक  विश्वविद्यालयों में संगीत शास्त्र पर व्याख्यान भी दिए और साबित किया कि ना सिर्फ गायकी बल्कि संगीत के रसों और सिद्धांतों पर भी उनकी मजबूत पकड़ है । वस्तुतः किशोरी अमोनकर की अक्खड़ता ने उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाया जिससे गायन के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करने में उन्हें सहूलियत मिली और वह संगीत की ऊंचाइयों को छूने में सफल रही

विशिष्ट शैली और शास्त्रीय गायन को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए किशोरी अमोनकर को कई बार सम्मानित भी किया गया । उन्हें वर्ष 1985 में संगीत नाटक अकादमी दिया गया । 1987 में उन्हें पदम भूषण और 2002 में पदम विभूषण से सम्मानित किया गया । 1997 में उन्हें संगीत साम्राज्ञी सम्मान मिला । वर्ष 2002 में संगीत संशोधन अकादमी सम्मान तो वर्ष 2010 में उन्हें संगीत नाट्य अकादमी का फेलोशिप प्रदान किया गया । 1964 में आई फिल्म गीत गाया पत्थरों ने का शीर्षक गीत किशोर अमोनकर ने गाया था । गोविंद निहलानी की 1990 में रिलीज हुई फिल्म दृष्टि के गीत भी किशोरी अमोनकर ने गाए ।

अपने जीवन और संगीत साधना में एकांत और शांति पसंद करने वाली किशोरी अमोनकर ने अपनी पसंद के अनुसार ही 3 अप्रैल 2017 को मुंबई में बड़ी ही शांति और सादगी के साथ अपने कंठ पर पूर्णविराम लगाया । उनकी जीवन यात्रा समाप्त हुई है लेकिन अपने गाये गीतों के माध्यम से वह सदियों तक अपनी मौजूदगी का एहसास कराते रहेंगी ।

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