…तभी होगी शहीद पत्रकारों को सच्ची श्रद्धांजलि

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मोहन कुमार.

” सुनो जी रुक जाओ…. अभी घर से बाहर मत निकलो, सभी लोग छुट्टी पर है, हे प्रभु ये कैसी नौकरी है, तुम्हें मेरी और बच्चों की कसम, बाहर स्थिति बहुत खराब है, करोना संक्रमण से कितने पत्रकारों के साथ हादसा हो गया है | मुझे बहुत डर लगता है, कुछ दिन तो घर पर रहकर काम कर लो, फिर मैं कभी नहीं रोकूंगी, वादा,,,, हे भगवान क्या करूं ये तो मानते ही नहीं ?”

इस पत्नीत्व भावना को सोचने पर मजबूर कर देने वाला ऐसा गंभीर वाक्या झारखंड ही नहीं इस पेशे से जुड़े अमूमन देश भर के कलम के सिपाहियों की पत्नियों की दर्दभरी दास्तान है।जहां एक तरफ देश भर के लोग, परिवार के साथ अपने घर के अंदर बंद (महफूज) है वहीँ ऐसे में पत्रकार / कलमकार पति के बाहर निकलने की मजबूरी से भयभीत पत्नियों का यह दर्द लाजमी है। हेल्थ वर्कर की पत्नियों व परिवारों के जैसा।

हम पत्रकार, जो इस महामारी के बीच अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी उठा रहें हैं, वहीँ हमारी पत्नियाँ और परिवार अपने कार्यों में व्यस्त होने के बावजूद तबतक सुकून से नहीं बैठते जब तक पति/पिता/बेटा/भाई सही सलामत घर नहीं वापस आ जाता। वहीँ पत्रकार परिवार और कार्य के धर्मसंकट के बीच अनेकों दर्द छुपाए चेहरे पर बिना कोई शिकन, खबरों का पारदर्शिता से संकलन करते आ रहे हैं।

देश जब कोरोना महामारी से लड़ रहा है, इस तबाही के बीच समाज के चौथे स्तंभ की मर्यादा, विश्वास और उसकी शाख को बचाए रखने के लिए प्रत्येक दिन जान जोखिम में डालकर पत्रकार पारिवारिक भावनाओं को त्याग घर की दहलीज को लांघ रहे हैं और पहले लहर के लॉकडाउन से लेकर अब तक सभी परिस्थितियों में संक्रमण से बचकर, देशभर में घर पर बैठी जनता को देश की हर छोटी से बड़ी खबरें, महत्वपूर्ण जानकारियों आदि को इकट्ठा कर उन तक सुगमता से पहुंचा रहा है| महामारी में फ्रंट लाइन वरीयर्स की तरह ही वह आम जन मानस की जान बचाने में अहम योगदान कर रहा हैं।

गांवों के पत्रकार हो या शहरों के, सबकी भूमिका सराहनीय है। जो अपने आप में एक बहुत बड़ी मिसाल है। इस पेशे की आत्मा दूरसंचार कनेक्टविटी बनी है, इसे नकारा भी नही जा सकता।कहा गया है किसी भी विकासशील राष्ट्र के विकास में अच्छे पत्रकारों की अहम भूमिका होती है।

देश के जाबांज सिपाहियों की भांति, देश के चौथे स्तंभ की बुनियाद गढ़ते हुए ना जाने कितने दिग्गज पत्रकारों को राष्ट्र ने खो दिया है। जो देश और सवा करोड़ देश वासियों के लिए गहरी क्षति है।समाज के लिए समर्पित और त्याग भावना के साथ कार्य कर रहे देश के पत्रकारों की स्थिति पर आजादी से अब तक कोई सरकार गंभीर नहीं रही है। हालांकि पत्रकार हित के लिए देश में आईएफडब्लूजे सहित अनेक संगठन है, वर्षों से हर संगठन ने अपने हक की लड़ाई सरकार के समक्ष लड़ी है। परन्तु सरकार है कि सुनती नहीं।

आईएफडब्लूजे देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा श्रमजीवी पत्रकारों का संगठन है| आईएफडब्लूजे ने ही अपने जैसलमेर (राजस्थान) के अधिवेशन में “पत्रकार सुरक्षा कानून का मसौदा” पेश करते हुए केंद्रीय और राज्य सरकारों से मांग की थी की इसे तत्काल लागु किया जाये| इस तरह का कानून अपने पडोसी मुल्क पाकिस्तान तक में लागु है, पर भारतवर्ष में इस पर विचार तक नहीं किया गया| आईएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के जाने माने पत्रकार डा० के विक्रम राव ने इस “पत्रकार सुरक्षा कानून” का मसौदा देश के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को प्रेषित कर उनसे मांग की है की इसे जल्द से जल्द लागू होना चाहिये| भारत में महाराष्ट्र सरकार (देवेन्द्र फडणवीस) की सरकार ने इसे सबसे पहले इस तरह के कानून को लागु किया है| कई अन्य सरकारें इसे लागू करने की योजना बना रहीं हैं| हम आशान्वित हैं की आने वाले समय में हम सभी कलमकार (छोटे बड़े और मझोले सभी) इससे लाभान्वित होंगे|

सरकारी संवेदनहीनता का दंश झेल रहे कोरोना में अनेक पत्रकारों की मौत\शहादत, कार्य करते हुए हो गई। उनका परिवार आनाथ हो गया। जिन्हे संगठन के दबाव पर महज छोटा-मोटा सरकारी मुआवजा देकर खानापूर्ति कर दी गई। जो इस समुदाय के लिए एक गंभीर मसला है। अब समय आ गया है महामारी में अपनी चट्टानी महत्ता साबित किए पत्रकारों को अब “पत्रकार सुरक्षा कानून”, पेंशन, बीमा, के साथ सभी संगठनों की मांगों को राज्य और ऐतिहासिक निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अविलंब निर्णय लेकर इसे पूरा करें एवं उन्हे सम्मान जनक उपहार दें। तभी देश में अबतक के शहीद सभी पत्रकारों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।( लेखक-मोहन कुमार पत्रकार संगठन आईएफडब्लूजे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

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