दूसरी भाषाओं में भोजपुरी से भी ज्यादा फू‍हड़ फिल्में बनती है- रवि किशन

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निशिकांत सिंह.पटना.बिहार राज्‍य फिल्‍म विकास एवं वित्त निगम और कला संस्‍कृति विभाग, बिहार के संयुक्‍त तत्‍वावधान आयोजित पटना फिल्‍म फे‍स्टिवल 2016 के पांचवे दिन आज रिजेंट सिनेमा में लिसन अमाया, द हेड हंटर और यंग सोफी बेल फिल्‍म का प्रदर्शन हुआ. वहीं, रविंद्र भवन के दूसरे स्‍क्रीन पर भोजपुरी फिल्‍म सैंया सिपहिया, कब होई गवना हमार और खगडि़या वाली भोजी दिखाई.इसके अलावा तीसरे स्‍क्रीन पर परशॉर्ट एवं डॉक्‍यमेंट्री फिल्‍मों भी दिखाई गई.

फिल्‍म फेस्टिवल में आज बिहार में फिल्‍म मेकिंग की संभावना और फिल्‍मी गीतों में फोक इलिमेंटस विषय पर विस्‍तार से चर्चा हुई. वहीं, रविंद्र भवन में ओपन हाउस डिशकसन में भोजपुरी सुपर स्‍टार समेत अन्‍य अतिथियों ने दर्शकों के सवाल का जवाब दिया. अंत में सभी अतिथियों को बिहार राज्‍य फिल्‍म विकास एवं वित्त निगम के एमडी गंगा कुमार ने शॉल और स्‍मृति चिन्‍ह देकर सम्‍मानित किया. इस दौरान बिहार राज्‍य फिल्‍म विकास एवं वित्त निगम की विशेष कार्य पदाधिकारी शांति व्रत भट्टाचार्य, अभिनेता विनीत कुमार, फिल्‍म समीक्षक विनोद अनुपम, मनोज राणा, अजीत अकेला, फिल्‍म फेस्टिवल के संयोजक कुमार रविकांत, मीडिया प्रभारी रंजन सिन्‍हा मौजूद रहे.

ओपेन हाउस डिशकसन में भोजपुरी के सुपर स्टार रवि किशन ने कहा कि भोजपुरी इंडस्‍ट्री की गरिमा पर कुछ अनपढ़ लोगों की वजह से सवाल उठते हैं. लोग अध्‍ययन कम करते हैं. इसलिए अच्‍छी स्‍टोरी के अभाव का असर भोजपुरी फिल्‍मों पर पड़ता है. इसके अलावा बजट भी एक बड़ी समस्‍या है. हालांकि भोजपुरी इंडस्‍ट्री में जुनून और जज्‍बा तो है, मगर सपोर्ट और संसाधन नहीं है. अब बिहार सरकार ने इस ओर पहल की है तो हमें इससे काफी सहायता मिलेगी. भोजपुरी में भी अच्‍छी फिल्‍में बनती है. लेकिन अब जरूरत है एक सैराट जैसी फिल्‍मों की, जो फिर से भोजपुरी के प्रति लोगों का नजरिया बदल सके. उन्‍होंने अश्‍लीलता के बारे में कहा कि दूसरी भाषाओं में भोजपुरी से भी ज्‍यादा फू‍हड़ फिल्‍में बनती है, लेकिन कोसा भोजपुरी को ही जाता है. उनकी फिल्‍मों को कला के नजरिए से देखा जाता है. हां कुछ बेकार लोग हैं, जिसके कारण भोजपुरी सिनेमा बदनाम हुई. इसकी एक और वजह यहां ईगो की समस्‍या भी. जो भोजपुरी इंडस्‍ट्री के लिए सही नहीं कहा जा सकता है. उन्‍होंने रंगमंच में पर कहा कि अगर अभिनय के क्षेत्र में लंबे समय तक रहना है तो सबसे अच्‍छी पाठशाला रंगमंच है. एक कलाकार को अपने अभिनय के प्रति पूर्ण रूप से समर्पि‍त करना पड़ा है, तभी वे मंझे हुए अभिनेता बन सकते हैं.

 

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