आलोक नंदन शर्मा, पटना।
रूठने–मनाने की प्रक्रिया के बाद सब कुछ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छोड़ने के साथ ही, एनडीए में 29 सीटें हासिल कर चिराग पासवान ने बिहार की सियासत में खुद को गेमचेंजर के रूप में स्थापित कर लिया है। इस बार बीजेपी ने 101-101 सीटें लेकर जदयू के बड़े भाई की भूमिका को समाप्त कर बराबरी की स्थिति हासिल की है। अब 2025 के चुनाव के बाद बिहार विधानसभा की तस्वीर काफी हद तक चिराग पासवान की पार्टी की सफलता पर निर्भर करेगी। इसलिए यदि सरकार बनाने की कुंजी उनके हाथ लग जाए, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा।
दरअसल, चिराग पासवान अब इतने भोले नहीं हैं। समय के साथ मौका पर चौका लगाना वह भली-भांति जानते हैं। यदि एनडीए को सफलता मिलती है और जदयू की स्थिति थोड़ी भी कमजोर होती है, तो चिराग की महत्वाकांक्षा को नई हवा मिल सकती है। तब मुख्यमंत्री के तौर पर बिहार की कमान संभालने की उनकी लालसा फिर से सिर उठा सकती है।
इधर, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को 6-6 सीटें मिलने के बावजूद असंतोष है। चुनाव परिणाम के बाद मंत्रिमंडल में अधिक भागीदारी की उम्मीद में उनके फिसलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
चिराग पासवान को एक परिपक्व नेता बनाने में उनके चाचा पशुपति कुमार पारस की भूमिका अहम रही है। जब पशुपति कुमार ने लोजपा पर कब्ज़ा किया, तो चिराग लगभग पैदल हो गए थे। इससे पहले वे हमेशा अपने पिता राम विलास पासवान की छत्रछाया में राजनीति करते रहे थे। इसलिए उन्हें संघर्ष का अनुभव नहीं था। फ़िल्मी दुनिया में असफल रहने के बाद उन्होंने अपने पिता की इच्छा से राजनीति में कदम रखा था। राजनीति में उन्हें बनी-बनाई ज़मीन मिली थी।
लेकिन, चाचा से झटका मिलने के बाद चिराग ने लोजपा (रामविलास) बनाकर संघर्ष का रास्ता अपनाया। धीरे-धीरे वे व्यवहारिक राजनीति के दांव-पेंच सीखते गए और एक मैच्योर पॉलिटिशियन के रूप में उभरे।
2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन के तहत उन्हें पाँच सीटें मिलीं और पाँचों पर उनकी पार्टी ने जीत हासिल की। ये सीटें थीं — हाजीपुर, खगड़िया, समस्तीपुर, वैशाली और जमुई। चिराग पासवान खुद हाजीपुर से जीते। वहीं, खगड़िया से राजेश वर्मा, समस्तीपुर से शांभवी चौधरी, वैशाली से वीणा देवी और जमुई से अरुण भारती विजयी हुए।
इस कामयाबी के साथ ही चिराग पासवान को अपने पिता की राजनीतिक विरासत पर जनता की स्वीकृति मिल गई। परिणामस्वरूप उनके आत्मविश्वास में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। अब वे खुद को बिहार के भावी मुख्यमंत्री के रूप में देखने लगे हैं।
साल 2020 में उन्होंने “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” का नारा देकर अकेले चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। उस समय उन्होंने 135 उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि जीत केवल बेगूसराय की मटिहानी सीट पर हुई, जहाँ राजकुमार सिंह विजयी रहे। पूरे बिहार में उनकी पार्टी को 23,83,457 वोट मिले, जो कुल मतों का 5.6 प्रतिशत था। इसके अलावा, लोजपा (आर) 9 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही। कई सीटों पर उसने जदयू के उम्मीदवारों को नुकसान पहुँचाया और नीतीश कुमार की राजनीतिक हैसियत को चुनौती दी।
जर्मनी के लौह पुरुष बिस्मार्क कहा करते थे कि “राजनीति संभावना की कला है।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि चिराग पासवान अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए सही अवसर पर अड़ियल रुख़ अपना सकते हैं। फिलहाल वे अपनी पूरी ताकत सभी 29 सीटों पर जीत हासिल करने में झोंक देंगे।