जेपी आंदोलन का सच-आंदोलन का आंखो देखा हाल

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प्रमोद दत्त.

जेपी के करीबी रहे वाणिज्य महाविद्यालय(पटना विवि) के पूर्व प्राचार्य डॉ (प्रो) रमाकांत पाण्डेय की हाल में प्रकाशित पुस्तक ”जेपी आंदोलन का सच“ एक ऐसा संस्मरण है जिसे पढने के दौरान आंदोलन की एक-एक घटना आंखों के सामने घूमने लगती है.लेखक आंदोलन के प्रारंभ से लेकर 1977 के चुनाव व फिर जनता पार्टी के बिखरने तक जेपी के साथ सक्रिय रहे हैं.सिर्फ 1976 में कुछ महीने तक मुंबई जेल में बंद होने के कारण आंदोलन से कटे रहे.प्रो पाण्डेय ने आंदोलन को नजदीक से देखा और जो उन्होंने आंदोलन के लिए किया-इन्ही घटनाओं का संकलन है यह पुस्तक.

इस पुस्तक में आंदोलन के संबंध में कई ऐसी जानकारियां दी गई है जो अन्य किसी पुस्तक में नही है.उदाहरणार्थ- जेपी अक्सर सवाल करते थे कि क्या आंदोलन लंबी अवधि तक चलेगा-क्या यह अहिंसक रहेगा? इन प्रश्नों का समाधान नानाजी देशमुख ने एक विशेष बैठक में किया था.इस पुस्तक में इसकी चर्चा विस्तार से है.

जसलोक अस्पताल से लौटने के बाद भी जब जेपी लगातार बीमार चल रहे थे तब पूजा करवाया गया था और जेपी चलने फिरने लगे थे.इसके बाद जेपी काली मंदिर (दरभंगा हाऊस) पूजा करने गए थे.वहां छात्रों की भारी भीड़ जुटी थी.भीड़ देखकर गदगद जेपी ने कहा था-द्विविधा दूर हो गई कि आंदोलन पस्त हो गया है- भरोसा हो गया कि आंदोलन अभी जिंदा है.

इस पुस्तक में लेखक ने कुछ ऐसे बिंदु उठाए हैं जिसमें और रिसर्च की जरूरत है.यह रिसर्च केन्द्र सरकार के सहयोग के बिना संभव नहीं है.जैसा कि पुस्तक में लेखक ने यह सवाल उठाया है कि जेपी 26 जून 75 को गिरफ्तार हुए और उन्होने अपनी जेल डायरी 21 जुलाई 75 से लिखा है.इस बीच के समय उन्होंने क्यों नहीं लिखा- उनकी क्या स्थिति थी? लेखक ने इस पुस्तक में यह भी सवाल उठाया है कि जेपी की किडनी कैसे खराब हुई थी? इसपर जांच हुई थी लेकिन सारे कागजात जला दिए गए.

पुस्तक का प्रकाशन वातायन ने किया है.पुस्तक का मूल्य तीन सौ रूपए है.छपाई साफ सुथरी है.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पुस्तक जेपी आंदोलन का प्रमाणिक दस्तावेज जैसी है.

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