प्रजातंत्र में अधिकार व कर्तव्य का साथ-साथ होना जरूरी-सुमित्रा महाजन

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हिमांशु शेखर.रांची.लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक देश है। सभी के मन में मेरा राष्ट्र का भाव जरूरी है, नहीं तो प्रजातंत्र का लक्ष्य समाप्त हो जायेगा। प्रजातंत्र में अधिकार व कर्तव्य का साथ-साथ होना जरूरी है। जब हम देश व अपने कर्तव्य के प्रति जागरूक नहीं थे, हमारे देश को लूटा गया। इंग्लैंड के म्यूजियम में आज भी हमारे देश से ले जाये गये बेशकीमती समान रखे हुए हैं।

रविवार को रांची में लोकमंथन कार्यक्रम के समापन के अवसर पर श्रीमती महाजन ने कहा कि प्रजातंत्र में सरकार की आलोचना जरूरी है। लेकिन आलोचना से सकारात्मक सोच आनी चाहिए। देश में सामाजिक समरसता के लिए आत्मचिंतन, आत्म निरीक्षण जरूरी है। आजादी के 70 साल के बाद हम कहां पहुंचे हैं, इसका चिंतन जरूरी है। लोकमंथन विचारों का कुंभ है। इसमें देश, काल व स्थिति पर तीन दिन मंथन हुआ है। प्रज्ञा प्रवाह की परिकल्पना वाद और संवाद है। संवाद से समाज के लिए भविष्य की दिशा तय होती है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि देश में सबसे ज्यादा समय तक शासन करनेवालों ने हमारे महापुरुषों के साथ भेदभाव वाला रवैया रखा। जिन लोगों ने देश के लिए कुर्बानी दी उन्हें भी इतिहास में उचित स्थान दिलाना जरूरी है। सरदार पटेल, नेताजी, शहीद भगत सिंह से लेकर सुखदेव, राजगुरु जैसे वीर सपूतों को वैसा सम्मान नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे। इसी प्रकार झारखंड के वीर शहीद भगवान बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, सिदो-कान्हू समेत सभी शहीदों के योगदान को कमतर दिखाया गया। मार्टिन लुथर किंग की तरह ही बाबा साहब ने वंचितों के लिए लड़ाई लड़ी। देश को संविधान दिया। लेकिन उन्हें भारत रत्न के लायक नहीं समझा गया। श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने उन्हें भारत रत्न दिया, जो उन्हें काफी पहले मिल जाना चाहिए था।

मुख्यमंत्री ने कहा,आज देश में मुट्टीभर लोग राष्ट्रवाद, भारत की मुख्य भावनाओं को जीवित रखने के बजाए इसे कमजोर करने की कोशिश रहे हैं। वामपंथी इतिहासकारों ने दुनिया भर में भारत की गलत छवि पेश कर रहे हैं। ऐसे समय में लोक मंथन में चिंतन से निकला अमृत देश को संस्कृतिक राष्ट्रवाद को नयी दिशा देगी। हमारे देश में कई धर्म, कई संस्कृति के लोग रहते हैं। इसलिए हम सर्वधर्म सद्भाव को मानते हैं। हमारे लिए सभी धर्म एक जैसे हैं। हम सभी धर्मों में विश्वास करते हैं। भारत की परम्परा सभी धर्मों की इज्जत करना रहा है। हमारी संस्कृति सभी को साथ लेकर चलने वाली संस्कृति है। हम धरती को माँ कहते हैं, धरती के साथ माँ और बेटे का संबंध सिर्फ भारत में ही है। इसलिए लोकमंथन के माध्यम से पूरे विश्व में भारत की संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम को विस्तार देने की जरूरत है।

लोकमंथन कार्यक्रम के समापन अवसर पर झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष दिनेश उरांव, कला संस्कृति मंत्री अमर कुमार बाउरी, कला संस्कृति विभाग के सचिव मनीष रंजन, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंद कुमार, केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नंद कुमार इंदू, वेद विशेषज्ञ डॉ देवी सहाय पांडेय, रांची की मेयर आशा लकड़ा सहित काफी संख्या में लोग मौजूद थे।

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