बोधगया का महाबोधी मंदिर

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बिहार की राजधानी पटना  के दक्षिणपूर्व में लगभग 101  किलोमीटर दूर स्थित  बोधगया  गया जिले से सटा एक छोटा शहर है। बोधगया में बोधी वृक्ष  के नीचे तपस्या कर रहे भगवान  गौतम बुद्ध  को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तभी से यह स्थल  बौद्ध धर्म  के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्ष 2002 में यूनेस्को  द्वारा इस शहर को  विश्व विरासत स्थल  घोषित किया गया।

करीब 500 ई॰पू. में गौतम बुद्ध फाल्गु नदी के तट पर पहुंचे और बोधी वृक्ष के नीचे तपस्या करने बैठे। तीन दिन और रात के तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिस्के बाद से वे बुद्ध के नाम से जाने गए। इसके बाद उन्होंने वहां 7 हफ्ते अलग अलग जगहों पर ध्यान करते हुए बिताया और फिर सारनाथ  जा कर धर्म का प्रचार शुरू किया। बुद्ध के अनुयायिओं ने बाद में उस जगह पर जाना शुरू किया जहां बुद्ध ने वैशाख महीने में पुर्णिमा के दिन ज्ञान की प्राप्ति की थी। धीरे धीरे यह जगह बोधगया के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

माना जाता है कि महाबोधि मंदिर में स्‍थापित बुद्ध की मूर्त्ति संबंध स्‍वयं बुद्ध से है। कहते हैं कि जब इस मंदिर का निर्माण किया जा रहा था तो इसमें बुद्ध की एक मूर्त्ति स्‍थापित करने का भी निर्णय लिया गया था। लेकिन लंबे समय तक किसी ऐसे शिल्पकार को खोजा नहीं जा सका जो बुद्ध की आकर्षक मूर्त्ति बना सके। सहसा एक दिन एक व्यक्ति आया और उसे मूर्त्ति बनाने की इच्‍छा जाहिर की। लेकिन इसके लिए उसने कुछ शर्त्तें भी रखीं। उसकी शर्त्त थी कि उसे पत्‍थर का एक स्‍तम्‍भ तथा एक लैम्‍प दिया जाए। उसकी दूसरी शर्त्त यह भी थी इसके लिए उसे छ: महीने का समय दिया जाए तथा समय से पहले कोई मंदिर का दरवाजा न खोले।

सभी शर्त्तें मान ली गई लेकिन व्‍यग्र गांववासियों ने तय समय से चार दिन पहले ही मंदिर के दरवाजे को खोल दिया। मंदिर के अंदर एक बहुत ही सुंदर मूर्त्ति थी जिसका हर अंग आकर्षक था सिवाय छाती के। मूर्त्ति का छाती वाला भाग अभी पूर्ण रूप से तराशा नहीं गया था। कुछ समय बाद एक बौद्ध भिक्षु मंदिर के अंदर रहने लगा। एक बार बुद्ध उसके सपने में आए और बोले कि उन्‍होंने ही मूर्त्ति का निर्माण किया था। बुद्ध की यह मूर्त्ति बौद्ध जगत में सर्वाधिक प्रतिष्‍ठा प्राप्‍त मूर्त्ति है।

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