मंत्रजाप से करें हर परेशानियों को दूर ….

2063
0
SHARE

mantra jaap2

मुकेशश्री.

इंसान अपने जीवन में कई कारणों से परेशान रहता है. और इससे छुटकारा पाने के लिए कई जतन भी करता है.इस क्रम में कई बार वह सफल भी होता है तो कई बार वह  फ्राड का भी शिकार हो जाता है.ऐसे ही फ्राड से बचने के एक सरल उपाये पर यहां चर्चा की जा रही है. रामचरितमानस को एक पवित्र ग्रंथ माना जाता है यह भी मान्यता है कि इसके पाठन और श्रवण से स्वमेव ही कई परेशानी दूर हो जाती है.यही कारण है कि नियमित रूप से इसे पढ़ने वाला व्यक्ति आपको हमेशा खुश और संतुष्ट महसूस करता है. दरअसल रामचरितमानस की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।ऐसा देखा गया है.अतःआप इसका पाठ नियमित करें और अगर आप इसका नियमित पाठ नहीं कर कर सकते हैं तो अपनी आवश्यकतानुसार इसके चौपाइयों और दोहों का पाठ मंत्र के रुप में कर सकते हैं और इससे लाभ उठा सकते हैं।

आप की सुविधा के लिए यहां कुछ परेशानियों के लिए रामचरितमानस के कुछ खास मंत्र दिए जा रहे हैं. आप अपनी आवश्यकतानुसार उसका प्रयोग कर सकते हैं और अपनी परेशानी से बाहर निकल सकते हैं ।

1...रक्षा के लिए...
मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||
2... विपत्ति दूर करने के लिए...
राजिव नयन धरे धनु सायक ।।
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||
3...सहायता के लिए
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||
4….सब काम बनाने के लिए...
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||
5...वश मे करने के लिए...
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||
6. संकट से बचने के लिए...
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||
7...विघ्न विनाश के लिए…
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||
8...रोग विनाश के लिए...
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||
9…ज्वार ताप दूर करने के लिए...
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||
10...दुःख नाश के लिए...
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||
11...खोई चीज पाने के लिए
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||
12...अनुराग बढाने के लिए...
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||
13...घर मे सुख लाने के लिए...
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||
14.सुधार करने के लिए...
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||
15... विद्या पाने के लिए...
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||
16... सरस्वती निवास के लिए…
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||
17निर्मल बुद्धि के लिए...
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||
18मोह नाश के लिए
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||
19...प्रेम बढाने के लिए...
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||
20...प्रीति बढाने के लिए...
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||
21....सुख प्रप्ति के लिए...
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||
22...भाई का प्रेम पाने के लिए..
सेवाहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||
23... बैर दूर करने के लिए
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||
24मेल कराने के लिए
गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||
25...शत्रु नाश के लिए...
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
*नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||
26... रोजगार पाने के लिए...
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||
27... इच्छा पूरी करने के लिए...
राम सदा सेवक रूचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||
28... पाप विनाश के लिए...
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||
29अल्प मृत्यु न होने के लिए...
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||
30… दरिद्रता दूर के लिए...
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना ||
31... प्रभु दर्शन पाने के लिए...
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||
32...शोक दूर करने के लिए...
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||
33क्षमा माँगने के लिए..
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||

LEAVE A REPLY