सुख-दुख से अप्रभावित रहने वाला ही स्थिरप्रज्ञ है-सुशील मोदी

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संवाददाता.पटना.श्रीकृष्ण स्मारक हाल में आयोजित ‘अखिल भारतीय भगवद्गीता महासम्मेलन’ को सम्बोधित करते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि ‘स्थिरप्रज्ञता’ वह स्थिति है जब हम दुख और सुख में तटस्थ रहें। जो स्थिरप्रज्ञ है वहीं सही व सर्वहित में निर्णय ले सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चर्चा करते हुए कहा कि एक बार उनसे पूछा कि विपरीत परिस्थितियों में भी वे कठिन निर्णय कैसे लेते हैं तो उन्होंने बताया कि ईश्वर ने उन्हें ऐसी शक्ति दी है कि विषम स्थितियां उन्हें विचलित नहीं करती है।

समस्त वैदिक धर्मों का सार गीता संशय और द्वंद्व से बाहर निकलने का मार्ग बताती है। सभी धर्म कहते हैं कि अहिंसा व सत्य बोलना, गुरुजनों की सेवा करना परम धर्म है, मगर आत्म व सम्मान तथा अन्य प्राणियों की रक्षा के लिए की जाने वाली हिंसा व असत्य संभाषण भी धर्म है। धर्म का मतलब पूजा-पाठ नहीं बल्कि कत्र्तव्य होता है।

श्री मोदी ने कहा कि महाभारत के कई प्रसंगों में धर्म पालन को लेकर उत्पन्न द्वंद्व का समाधान कर्म को प्रधानता देकर सुझाया गया है। अर्जन जब बंधु-बांधव के मोह, क्या करुं, ना करुं के संशय और कत्र्तव्य पालन के द्वंद्व में उलझ गए थे तो गीता के उपदेशों केे जरिए श्रीकृष्ण ने उनकी शंकाओं को समाधान किया था। गीता में कहा गया है कि आत्मा अजर, अमर है, जब उसकी नाश हो ही नहीं सकती तो फिर चिन्ता क्या?

चोरी करना पाप है, मगर महाभारत का ही प्रसंग है कि भूख से अपने प्राण की रक्षा के लिए विश्वामित्र ने चंडल के घर से कुत्ते के मांस की चोरी की। इसी लिए कहा गया है कि जब हम जिन्दा रहेंगे तभी धर्म की रक्षा कर पायेंगे। राजा शिवी और महर्षि दधीचि ने प्राणियों की रक्षा व असुर बकासूर के विनाश के लिए अपनी जंघा के मांस व अस्थियों को सर्वोत्तम दान किया। दरअसल गीता हमें सर्व कल्याण के लिए कत्र्तव्योन्मुख करने का श्रेष्ठ ज्ञान देती है।

 

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