सीएजी ने किया खुलासा,पुल निर्माण में घोटाला ही घोटाला

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निशिकांत सिंह.पटना.सीएजी ने नीतीश सरकार के 10 वर्षों के कार्यकाल में हुई विकास दर की वृद्धि की सराहना करते हुए राज्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन व बजटीय नियंत्रण पर गंभीर सवाल उठाए हैं.सीएजी के अनुसार अनुचित बजट बनाने से वर्ष के अंत में एक तिहाई राशि बच जा रही है.सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार 2014-15 के अंतिम दिन 83.20 राशि सरेंडर हुई.पिछले पांच वर्षों से एसी-डीसी बिल को लेकर लगातार नोटिस में लाने के बावजूद 2014-15 तक 5381.42 करोड़ के एसी बिल का डीसी बिल महालेखागार को उपलब्ध नहीं कराए गए हैं.

विधानमंडल में प्रस्तुत सीएजी के ताजा प्रतिवेदन में कई वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया गया है.पुल निर्माण के क्षेत्र में नीतीश सरकार अपनी पीठ थपथपाती रही है,उसी क्षेत्र में सीएजी ने कई खुलासा किया है. मुजफ्फरपुर में रून्नीसैदपुर-कटरा-केवटसा पथ पर बने पुल की डीपीआर में छेड़छाड़ की गई थी. पाए की गहराई ही घटा दी, जिससे पुल ढह गया. डेढ़ वर्ष बाद भी निर्माण एजेंसी डीपीआर में बदलाव का कारण नहीं बता रही है. सीएजी की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.

पुल परामर्शदाता द्वारा कंपनी को ड्राइंग व डीपीआर दी गई. पुल की लंबाई 111.84 मीटर और आधार कुएं की गहराई 30 मीटर तय थी. पहुंच पथ समेत पुल की लागत 5.94 करोड़ रुपए थी. जनवरी, 2014 में डीपीआर में संशोधन कर दिया गया. पुल की लंबाई 111.84 मीटर से घटाकर 99.6 मीटर कर दी व आधार कुएं की गहराई 30 मीटर से घटाकर महज 20 मीटर कर दी. एक आधार कुएं में छह पाइन होना था. 27 अगस्त, 2014 को एक पॉयर जिसपर ढांचा का निर्माण लगभग पूरा हो चुका था, अचानक धंस गया. इससे पुल बीच में ही ढह गया. इससे पुल बेकार हो गया. तब तक पुल पर 5.42 करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे.

ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए प्रस्तावित पुल की लंबाई ही घटा दी. यही नहीं योग्य निर्माण एजेंसी को बाहर का रास्ता दिखा दिया. यह सनसनीखेज मामला सीएजी की रिपोर्ट में सामने आया है. मामला नालंदा में सूरजीचक के निकट हरोहर नदी पर बनने वाले पुल का है. 100 मीटर लंबे पुल के लिए टेंडर किया गया. लेकिन एक खास निविदाकर्ता के अनुरोध पर पहल पुल की लंबाई घटाकर 90 मीटर और फिर 70 मीटर कर दी गई. रिपोर्ट में इसपर कड़ी आपत्ति की गई है पूछे जाने पर प्रबंधन ने कहा कि निविदाकर्ता 100 मीटर पुल लंबाई मापदंड की योग्यता पूर्ण नहीं कर पाए थे. इसीलिए पुल की लंबाई घटाई गई. हालांकि जांच में पाया गया कि प्रबंधन का उत्तर सही नहीं था, क्योंकि निविदाकर्ताओं में एक ऐसा भी था, जिसके पास 154 मीटर लंबी पुल के निर्माण का अनुभव भी प्राप्त था.

पटना, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, बेतिया, नालंदा और भागलपुर में 81 पुलों का निर्माण होना था. इनमें से 17 पुलों का निर्माण समय पर पूरा नहीं हो पाया. इससे 36.19 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. सीएजी की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. इनके निर्माण में 30 माह तक का विलंब हुआ, जिसे रोका जा सकता था. इसी तरह कोसी क्षेत्र में बिहार आपदा पुनर्वास एवं पुनर्निर्माण द्वारा 70 पुल निर्माण का कार्य बगैर किसी कान्ट्रैक्ट के दे दिया गया. वर्ष 2011 से 2015 के बीच बने इन प्रोजेक्ट में 12.66 करोड़ रुपए की चपत लगी. यदि कान्ट्रैक्ट पर काम दिए गए होते तो इस राशि की क्षति नहीं होती. यह राशि एजेंसी निर्माण के पहले जमा करती है. चूंकि काम बगैर कान्ट्रैक्ट के दिए गए इसलिए सरकार को करोड़ों की चपत लगी.

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