स्थगित करे सरकार व्याख्याताओं का साक्षात्कार – सुशील मोदी

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संवाददाता.पटना.  राज्य के विश्वविद्यालयों  के लिए हो रही सहायक प्राध्यापकों की बहाली में यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन की वजह से बिहार के हजारों अभ्यर्थियों का भविष्य दांव पर लगा है. ऐसे में बिहार सरकार से अपील है कि जब तक केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से गठित प्रो. अरुण निवलेकर कमिटी की रिपोर्ट नहीं आ जाती है, वह बिहार लोक सेवा आयोग को निर्देश दें कि सहायक प्राध्यापकों की बहाली के लिए आयोजित साक्षात्कार को स्थगित करें. विधान परिषद में इस विषय पर चर्चा के दौरान शिक्षा मंत्री ने आश्वस्त किया था कि वे मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री से मिल कर अभ्यर्थियों को यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन से राहत दिलायेंगे.

इस आधार पर भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने तत्काल व्याख्याता पद के साक्षात्कार को स्थगित करने की मांग की है.गौरतलब है कि 1997 के बाद पहली बार 2014 में सहायक प्राध्यापकों की बहाली के लिए बीपीएससी की ओर से विज्ञापन निकाला गया. विज्ञापन की शर्तों  के अनुसार जो अभ्यर्थी यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन के आधार पर पीएचडी धारक हैं या जो नेट उत्तीर्ण हैं वही इसके पात्र होंगे. यूजीसी द्वारा एम.फील और पीएचडी के लिए 11 जुलाई, 2009 में अधिसूचित रेगुलेशन तीन साल बाद 6 नवम्बर, 2012 को बिहार में अधिसूचित की गई. नतीजतन बिहार में यूजीसी के 2009 के पूर्व के दिशा  निर्देश  पर ही पीएचडी निबंधन की प्रक्रिया अपनाई जाती रही. इसलिए बिहार में यूजीसी के 2009 के पूर्व के रेगुलेशन के आधार पर जहां करीब 30 हजार पीएचडी धारक हैं वहीं 2009 के बाद के एक भी पीएचडी धारक नहीं है.

सुप्रीमकोर्ट के निर्देश  के आलोक में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से अरुण निवलेकर की अध्यक्षता में गठित कमिटी को तय करना है कि यूजीसी के 2009 के रेगुलेशन के पूर्व के पीएचडी धारक व्याख्याता नियुक्ति के पात्र होंगे या नहीं. इसलिए बिहार सरकार निवलेकर कमिटी की रिपोर्ट के आने तक बीपीएससी को साक्षात्कार स्थगित करने का निर्देश दें ताकि बिहार के 2009 के पूर्व के हजारों पीएचडी धारकों के भविष्य को बचाया जा सके

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