बीमारी है खुद को वी.आई.पी. समझना

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PSYCO SIGN 1

डा.मनोज कुमार

( काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट)

सरकारी विभाग में काम कर रहे वर्मा जी अपने लाडले राहत से परेशान हैं। अभी दो दिन पहले ही ट्रैफिक पुलिस को सलाने की रकम सौंपी थी। और आज फिर लहरिया कट बाइक चलाने के जुर्म में साथियों के साथ पकड़े गए। नेहा अच्छे घर से है, लेकिन कई बार हेलमेट न पहनने के कारण फाईन भर चुकी है। फिर भी बगैर हेलमेट और सिग्नल तोड़ना अपनी शान समझती है। दरअसल, पटना में इस तरह का वाकया रोजाना देखा जाता है और कई तरह की असफलताएँ मिल रही हैं जिस वजह से खास उम्र में आकर लोग मेगलोमेनिया के शिकार हो रहे हैं।

क्या है मेगलोमेनिया-

मेगलोमेनिया व्यक्तित्व का एक ऐसा विकार है जिसमें इंसान हर वक्त, सभी जगह खुद को आम इंसान से अत्याधिक योग्य, गुणी व श्रेष्ठ समझता है। जबकि सच्चाई इसके उलट होती है। सच्चे शब्दों में मोगलोमेनिया पीड़ित खुद को वी.आई.पी. से कम नहीं आंकता। हमेशा कुछ उसी तरह का व्यवहार करता है। इसका खामियाजा खुद तो भुगतना ही है कई बार दूसरों को भी उसका नुकसान उढ़ाना पड़ता है।

कैसे करें पहचान-

  1. इस तरह के व्यक्ति दौलत में, शक्ति और रुतबे में स्वयं को दूसरे की अपेक्षाकृत ज्यादा समझते हैं।
  2. ऐसे समस्या वाले पुरूष या महिलाएं किसी के लिए इंतज़ार करना या लाइन में खड़े रहना बर्दाश्त नहीं करते।
  3. नियमों व कायदे-कानूनोंको हमेशा ताक पर रख कर चलते हैं।
  4. इस तरह के मरीज अपने सामने दूसरों की पीड़ाओं व जरूरतों को नहीं समझते और अक्सर इनसे जुड़े लोग शोषण के शिकार होते है।
  5. अपने ईर्ष्यालु व अभिमानी स्वभाव की वजह से ये अक्सर सामाजिक व व्यावसायिक स्तर पर अलग-थलग पड़ जाते हैं और अपने ही लोगों के लिए पीड़ा का कारण बनने लगते हैं।

बिमारी का कारण-

मेगलोमेनिया मर्ज से संबंधित विकारग्रस्त मानसिकता 15 से 20 वर्ष के युवावस्था में शुरू हो जाती है। इस रोग के पीछे आनुंवशिक कारणों के अलावा पारिवारिक माहौल का भी महत्वपूर्ण हाथ है। परिजनों व माता-पिता का बच्चों की गलतियों की लगातार अनदेखी करना इस रोग की मानसिकता को जन्म दे रहा।

क्या है समाधान-

यह रोग उम्र के साथ और भी गंभीर रूप ले लेता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे रोगी जीवन में मिली असफलताओं व ढ़लती उम्र को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे में रोगी को लंबी अवधी तक लगातार साइकोथेरेपी और कांउसलिंग की जरूरत पड़ती है। अक्सर रोगी में पनप रहे अत्याधिक आवेश व कुण्डा को नियंत्रित करने के लिए दवाओं का भी उपयोग किया जाता है। परिवार का सहयोग और व्यक्ति की इच्छाशक्ति के साथ सूझ जगा कर इसपर काबू किया जा सकता है।

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