प्रवासी मजदूरों का दर्द-अगर हमें यहीं काम मिले तो क्यों बाहर जाऐंगें

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संवाददाता.खगौल. लोक डाउन में करीब डेढ महिना से फंसे गुजरात के गोधरा से ट्रेन से दानापुर लौटे प्रवासी मजदूरों का कहना है कि कोरोना संक्रमण के कारण काम बंद होने से हम मजदूरों के  परिवार का तो क्या अपना पेट भरना मुश्किल हो गया है |

अग्रवाल मित्तल स्टील कम्पनी में काम  करने वाले मजदूर मनोज और महेश राय आदि का कहना है कि फैक्ट्री के मालिक या काम कराने वाले दलाल भी आर्थिक मदद देने से हाथ खड़े कर लिए | किसी तरह से पैसे का जुगाड़ कर खाना नहीं लिया 650 रूपये का टिकट ले कर यहाँ लौटा हूँ | इस दौरान किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बाद भी न तो ट्रेन भाड़ा मिला और न ही खाने के लिए ही कुछ ,उल्टे गाली बात भी सुनने को मिला है , क्या कहें बहुत बुरा लगा कि, इस परिस्थित में हम गरीब असहाय लोगों का अब होगा क्या ? गाली बात सुन कर लगा अब फिर लौट कर गुजरात नहीं आऊंगा | अगर बिहार सरकार हमें घर में ही काम दे दें तो फिर बाहर क्यों जाएँ |

शुक्रवार को गोधरा से अपने पांच बच्चों के साथ छपरा जाने वाली नूर नशा खातून ने अपनी दर्द भरी दास्ताँ बतायी कि कैसे पैसे का जुगाड़ कर हम दोनों महिला यहाँ लौटी हूँ ,सुन कर ही क्या करेंगे ,बस यही कहना है कि आज गरीब का सुनने वाला कोई नहीं है | ट्रेन में चढने के समय खाना बंटा,मर्द लोग लूट लिए ,हम पांच छोटे-छोटे  और गोद के बच्चे को छोड़ कर क्या खाना लूटने जाते |  यह कोई व्यवस्था है क्या , आज महिला उपेक्षित हो कर अपने किस्मत पर रोने के सिबा कर ही क्या सकती है | यह तो सरकार और जो लोग व्यवस्था में लगे हैं उसे सोंचना चाहिए की जिस के पास पैसा या खाना नहीं है,उस की मदद कर | इन लोगों ने बताया सोशल डिस्टेंसिंग न तो ट्रेन में दिखा और न बस में ही |

 

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