आलोक नंदन शर्मा
जरूरी नहीं है कि गलती करके ही सीखा जाए। विगत की घटनाओं से सबक लेने से व्यक्ति वर्तमान में तो गलती करने से बच सकता है और भविष्य को भी बर्बाद होने से रोक सकता है। कभी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से ज्यादा ईमानदार कोई नहीं था — जैसा कि उन्होंने दावा किया था। दिल्ली की जनता ने उनके इस दावे पर यकीन किया, यह जानते हुए कि वह अन्ना के सिर की टोपी उठाकर दिल्ली की जनता को पहना रहे हैं। राष्ट्रीय मीडिया उन्हें एक अवतारी ईमानदार पुरुष मानती थी। कुछ इसी तर्ज पर अब बिहार में प्रशांत किशोर एक ईमानदार अवतारी पुरुष के तौर पर अवतरित होते दिख रहे हैं।
मुख्यधारा के पत्रकारों की टोलियां अरविंद केजरीवाल के लिए सलाहकार का काम करने लगी थीं और कुछ तो उनकी धारा में बहते हुए खुद भी केजरीवाल के साथ खड़े हो गए थे। सोशल मीडिया पर इंडिया अगेंस्ट करप्शन जैसे आंदोलन चलाने वाले केजरीवाल देखते-देखते भारतीय राजनीति का एक चमकता हुआ सितारा बन गए थे। उनके आंदोलन से संबंधित कोई भी सवाल पूछे जाने पर वे धुआंधार तरीके से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस की नीतियों व कारनामों पर सवाल उठाते थे, खुद को धरती का परम ईमानदार व्यक्ति घोषित करते थे और वीआईपी कल्चर के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे। बिहार में प्रशांत किशोर और उनकी सुराज पार्टी का भी रंग-ढंग कुछ केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी जैसा ही है।
प्रशांत किशोर भाजपा, राजद और जद(यू) के नेताओं पर हमला करते हुए खुद को ईमानदार व्यक्ति के तौर पर पेश कर रहे हैं। उनके पास हर सवाल का जवाब है और बिहार की हर समस्या का समाधान भी। वे जाति-पाति से ऊपर उठकर बिहार में एक नई राजनीतिक शैली की बात कर रहे हैं। बिहार के चुनावी समर को कवर करने आई राष्ट्रीय मीडिया की टोली उन्हें भरपूर तवज्जो भी दे रही है। वैसे भी वे मीडिया मैनेजमेंट के गुरु हैं और उन्हें भली-भांति पता है कि मीडिया को कैसे हैंडल किया जाता है।
प्रशांत किशोर सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हो रहे हैं। उनके पॉडकास्ट को लोग बड़ी संख्या में देख रहे हैं। जिस तरह से केजरीवाल के पीछे एक एनजीओ लॉबी काम कर रही थी, उसी तरह पीके के पीछे अवकाशप्राप्त आईएएस अधिकारियों की लॉबी सक्रिय है। प्रशासनिक अनुभव से युक्त इस लॉबी के पास पैसों की कोई कमी नहीं है। नौकरी के दौरान इन लोगों ने बिहार के उत्थान की चिंता नहीं की थी, लेकिन अब प्रशांत किशोर के नेतृत्व में इनके भीतर बिहार उत्थान का जोश उबाल मार रहा है।
पीके बिहार की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने की बात कर रहे हैं। यानी बिहार में वही एकमात्र पार्टी होगी जो लगभग सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, यदि तेज प्रताप यादव की जनशक्ति जनता दल पार्टी किसी से गठबंधन नहीं करती तो। अन्य सभी पार्टियां गठबंधन के दांवपेंच में उलझी हुई हैं और अकेले अपने दम पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं।
प्रशांत किशोर दावा कर रहे हैं कि उन्हें या तो 10 सीटें मिलेंगी या फिर वे 150 सीटों तक पहुंच जाएंगे। उनका बैकग्राउंड एक पीआर विशेषज्ञ का रहा है। भारतीय राजनीति में ब्रांड का कॉन्सेप्ट विधिवत रूप से पेश करने का श्रेय प्रशांत किशोर को ही जाता है। हार्डकोर प्रोफेशनल भावना से संचालित होकर वे देश के लगभग सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए काम कर चुके हैं। राजनीति में वैचारिक प्रतिबद्धता से अलग वे ब्रांड पर जोर देते रहे हैं, और उनके तमाम राजनीतिक क्लाइंट्स भी उनकी बातों में आकर खुद को उनके हाथों में सौंपते रहे हैं। पारंपरिक जनसेवक की जगह उन्होंने हिंदुस्तान के राजनेताओं को एक ‘प्रोडक्ट’ के रूप में तब्दील कर दिया है — और अब वे अपनी मार्केटिंग खुद कर रहे हैं।
जैसा कि वे दावा करते हैं, कई कंपनियों को सलाह देने के बदले जो भी उन्हें प्राप्त होता है, वह सब वे अपनी पार्टी में लगा रहे हैं। खुद को सेल्फ मेड बताते हैं और अब अपना पूरा जीवन बिहार के लिए समर्पित करने का दम भर रहे हैं। बिहार के लोग उनकी बातों से आकर्षित हो रहे हैं और इसका सकारात्मक प्रभाव भी दिखाई दे रहा है। बिहार में एक तबका ऐसा है जो भाजपा, लालू और नीतीश की राजनीति से इतर एक नई शक्ति की तलाश में है। प्रशांत किशोर में उन्हें उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दे रही है — ठीक वैसे ही जैसे कभी अरविंद केजरीवाल दिल्लीवालों को दिखाई दिए थे।
पीके के पास सोशल मीडिया पर काम करने वाले विशेषज्ञों की कमी नहीं है। मीडिया घरानों और पत्रकारों को भी उन्होंने मैनेज कर रखा है। बिहार में फिर से शराब शुरू करने की तैयारी में जुटी शराब लॉबी भी उनके साथ खड़ी है। गांधीजी को अपना आदर्श बताने वाले पीके को बिहार में शराबबंदी हटाने से कोई गुरेज नहीं है। जन सुराज की सभाओं में भीड़ एकत्र करने के लिए हर तरह के हथकंडे का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि इन सभाओं में आने के लिए प्रति व्यक्ति 5-5 सौ रुपए भी दिए जा रहे हैं।
सियासत में डर भ्रष्टाचार, वादा खिलाफी से नहीं बल्कि ईमानदारी से लगता है।