प्रमोद दत्त.
पटना। अभी अभी संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जब कुम्हार सीट से अरूण कुमार सिन्हा (कायस्थ) का टिकट काट दिया गया था तब इस जाति के बीच जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी।समाज के एक खास तबका ने भाजपा का विरोध करते हुए जनसुराज पार्टी के कायस्थ उम्मीदवारों के पक्ष में जोरदार मुहिम चलाया था। भाजपा को सबक सिखाने में यह वर्ग कामयाब नहीं हुआ।
नितिन नवीन को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने ऐसे लोगों को जोर का झटका दे दिया जो भाजपा को कायस्थ विरोधी प्रचारित करने में लगे थे। यहां यह समझना भी जरूरी है कि न तो अरूण सिन्हा को कायस्थ होने के कारण टिकट काटा गया था और न ही नितिन नवीन को सिर्फ कायस्थ होने के कारण पार्टी का सिरमौर बना दिया गया।कई ऐसे कारण हैं जिसके कारण नितिन नवीन पर भरोसा किया गया।

यह जानने से पहले नितिन नवीन का राजनीतिक विरासत और सफ़र जानना जरूरी है।नीतिन नवीन के पिता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा भाजपा के उभरते युवा नेता थे। जनता के बीच लोकप्रिय और विधानसभा के अंदर जुझारू विपक्षी विधायकों में गिने जाते थे।
बिहार भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के पिता ठाकुर प्रसाद ने अपने पुत्र को नजरंदाज कर नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा को अपना आशीर्वाद देकर राजनीति में उन्हें बढ़ाया था। उन्होंने नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा में नेतृत्व क्षमता को परख लिया था।
उन्होंने इसे साबित भी किया।1990 में पहली बार पटना पश्चिम से चुनाव जीते। इसके बाद लगातार वे इस सीट से जीत हासिल की। अक्टूबर 2005 चुनाव बाद बिहार में पहली बार एनडीए की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। वरिष्ठता को नजरंदाज करते हुए नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा को मंत्री नहीं बनाया गया।दो महीने बाद ही 31 दिसंबर 2005 को अचानक उनका निधन हो गया।
उनके निधन के बाद इस सीट पर 2006 में हुए उपचुनाव में इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने वाले उनके पुत्र नितिन नवीन को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया।65 हजार से अधिक मतों से नितिन नवीन की जीत हुई।
पहले चुनाव में यह माना गया कि उन्हें पिता के निधन से सहानुभूति मिली।2010 का चुनाव नितिन नवीन के लिए अग्निपरीक्षा के समान था।एक तो परिसीमन के कारण क्षेत्र का भूगोल और नाम बदल गया था।
बांकीपुर नाम से नई बनी सीट से वे दूसरी बार चुनाव लड़े और जीते का बड़ा अंतर (लगभग 65 हजार) बरकरार रखा। फिर 2015,2020, और 2025 में बड़ी जीत का सिलसिला जारी रखा।इसी बीच 2021 में पहली बार मंत्री बनाए गए और पथ निर्माण जैसा महत्वपूर्ण विभाग सौंपा गया।तब से लगातार वे एनडीए सरकार में नीतीश मंत्रिमंडल में शामिल किए जाते रहे।

नितिन नवीन को जब भी संगठन का दायित्व सौंपा गया उन्होंने उसका बखूबी निर्वहन किया।2008 में राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य, भाजयुमो के बनाए गए। फिर 2010 में भाजयुमो के राष्ट्रीय महामंत्री,2016 में बिहार भाजयुमो के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। इस बीच छत्तीसगढ़ और सिक्किम चुनाव में प्रभारी की जिम्मेदारी मिली।2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं के दौरे को मैनेज करने की जिम्मेदारी संभाल रखी थी।
सड़क पर कार्यकर्ताओं के साथ संघर्ष करने, संगठन के स्तर पर जिम्मेदारी संभालने और सरकार के स्तर पर काम करने के अनुभव ने नितिन नवीन को पार्टी ने इतना बड़ा तोहफा दिया है। जिम्मेदारी भी बड़ी है।
हिंदी पट्टी में भाजपा के मजबूत जनाधार को बनाए रखने और बंगाल चुनाव में भाजपा की सरकार बनाने के लक्ष्य को नितिन नवीन को प्राप्त करना है।
जेन जी के जमाने में भाजपा ऐसे ही युवा नेता की तलाश में थी जिसमें हर तरह की क्षमता हो।बार बार युवा नेता के रूप में रिलांच किए जा रहे राहुल गांधी के सामने रियल युवा को लांच किया गया है।















