बिहार में एजुकेट गर्ल्स अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है एडेंट

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आलोक नंदन शर्मा

 

लड़कियों की शिक्षा भारत ही नहीं, बल्कि पूरे तीसरी दुनिया के देशों में हमेशा प्राथमिकता के एजेंडे में रही है। इस बात को एक बार फिर रेखांकित किया गया है जब एजुकेट गर्ल्स को इस वर्ष उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों, जिनमें बिहार भी शामिल है, में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अपने योगदान के लिए रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

इससे यह भी पता चलता है कि आज़ादी के 75 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी हम उस मुकाम तक नहीं पहुँचे हैं जहाँ यह कहा जा सके कि इस देश की हर एक लड़की स्कूल जा रही है।

लड़कियों के स्कूल छोड़ने की समस्या व्यापक है। इस मामले में बिहार और झारखंड सबसे आगे हैं। बिहार में स्कूल छोड़ने वाली लड़कियों की संख्या सबसे अधिक है। पिछले तीन-चार वर्षों से एजुकेट गर्ल्स इस समस्या के समाधान के लिए बिहार में काम कर रही है।

एडेंट सोशल वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन बिहार में एजुकेट गर्ल्स की शुरुआती साझेदारों में से एक रही है। मधुबनी, सीतामढ़ी और शिवहर से शुरू होकर अब इसका विस्तार समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर तक हो चुका है।

 

टीम एडेंट इस कार्य को पिछले 25 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे अपने प्रयासों की निरंतरता मानती है। दिल्ली की झुग्गियों में टिन की छत वाले स्कूल से शुरुआत करते हुए इसने हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, ओडिशा और बिहार जैसे राज्यों में पचास हज़ार से अधिक बच्चों के साथ काम किया है।

पानीपत के बाल श्रमिकों से शुरू हुआ एडेंट का हस्तक्षेप अब सड़क पर रहने वाले बच्चों से लेकर स्मार्ट क्लास तक के पूरे दायरे को कवर करता है।

 

बाल श्रम के खिलाफ अभियान चलाकर उन्हें औपचारिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ने के लिए एडेंट ने 60 से अधिक केंद्र चलाए हैं, जो इस दिशा में संभवतः सबसे बड़े प्रयासों में से एक है।

औपचारिक शिक्षा से वंचित बच्चों की खोज ने एडेंट को ईंट भट्ठों तक पहुँचाया, जहाँ हजारों बच्चे प्राथमिक शिक्षा से भी वंचित थे। इसके परिणामस्वरूप इन भट्ठों में वैकल्पिक शिक्षा केंद्रों की एक बड़ी श्रृंखला स्थापित की गई। उल्लेखनीय बात यह रही कि एडेंट को इसमें भट्ठा मालिकों का भी पूरा सहयोग मिला।

 

इन सभी वर्षों में एडेंट ने विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों के साथ काम किया है — पानीपत के प्रवासी श्रमिकों से लेकर दिल्ली की शहरी झुग्गियों तक, झारखंड और ओडिशा के आदिवासी बच्चों से लेकर बेगूसराय के अनुसूचित जाति के बच्चों तक।

इस यात्रा में एडेंट ने स्कूल जाने वाले बच्चों की समस्याओं का हर स्तर पर समाधान करने का प्रयास किया है — क्लास रूम, शौचालय और खेल के मैदान के नवीनीकरण से लेकर पुस्तकालय की स्थापना, खेल सुविधाएँ, पेयजल उपलब्ध कराना और डिजिटल कक्षाओं का निर्माण तक।

 

इसी लंबी यात्रा ने एडेंट को एजुकेट गर्ल्स का प्रमुख साझेदार बनाया। पाँच जिलों में बालिकाओं के नामांकन का चल रहा अभियान आकार और विस्तार में अत्यंत व्यापक है।

इस अभियान के तहत टीम एडेंट ने तीन लाख से अधिक घरों का दौरा किया है और 40 हज़ार से अधिक स्कूल छोड़ चुकी बालिकाओं की पहचान कर उन्हें पुनः नामांकित कराया है।

 

लेकिन यह अभियान का आसान हिस्सा है। इसे स्थायी और प्रभावी बनाने के लिए ज़रूरी है कि ये बालिकाएँ स्कूल में बनी रहें। जैसा कि हम सब जानते हैं, इतने बड़े पैमाने पर एनजीओ उन सामाजिक-आर्थिक कारणों से निपटने में सक्षम नहीं होते, जिनकी वजह से बालिकाएँ स्कूल नहीं जातीं या बीच में पढ़ाई छोड़ देती हैं।

ये सामाजिक और आर्थिक कारण इतने व्यापक हैं कि किसी भी विकासात्मक संस्था के लिए इतने बड़े पैमाने पर उनका समाधान कर पाना संभव नहीं।

 

हालांकि, कार्यान्वयन वाले कुछ जिलों में एडेंट समुदाय के साथ मिलकर उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर को सुधारने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह दायरा सीमित है।

इसी तरह सरकारी स्कूलों को बालिकाओं के लिए आकर्षक और स्वागतपूर्ण बनाना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है, जिसे किसी एक स्वयंसेवी संगठन के बूते पर करना कठिन है।

 

ऐसे में अभिभावकों को यह समझाना बेहद मुश्किल हो जाता है कि क्यों उनकी बेटियों को स्कूल में दाखिला दिलाना चाहिए और उन्हें नियमित रूप से स्कूल भेजना चाहिए।

पिछले तीन वर्षों से टीम एडेंट इन सभी जिलों में लगातार माता-पिता से संवाद कर रही है ताकि वे परिस्थितियों के बदलने की प्रतीक्षा न करें, बल्कि सरकारी स्कूलों में उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाएँ।

 

इस अभियान का मूल संदेश है कि शिक्षा ही असली गेम चेंजर है — क्योंकि केवल शिक्षा ही उनके परिवार की परिस्थितियों को बदल सकती है और उस गरीबी के दुष्चक्र को तोड़ सकती है जिसमें वे पीढ़ियों से फंसे हैं।

 

संतोष की बात यह है कि यह संदेश माता-पिता के दिलों को छू गया है — पिछले तीन वर्षों में जिन बालिकाओं का स्कूलों में नामांकन हुआ है, उनमें से 80 प्रतिशत से अधिक अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं।

एडेंट के प्रमुख श्री वीरेंद्र कुमार कहते हैं, “माता-पिता के साथ हमारा निरंतर संवाद और हमारी ‘कम्युनिटी फर्स्ट’ नीति, जिसके तहत हम यह मानते हैं कि समुदाय अपनी समस्याओं का समाधान खुद ढूंढने में सक्षम है, अब फल देने लगी है। हमें उम्मीद है कि बालिका शिक्षा का भविष्य उज्जवल है और इसी के साथ समुदाय का भविष्य भी।”

नई सुबह बस आने ही वाली है, और यह समय है कि हम सब एक साथ मिलकर हर संभव प्रयास करें ताकि स्कूल छोड़ने वाली बालिकाओं की यह समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो सके।

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