टूलकिट का टुच्चापन व पेंडेमिक में ‘गिद्ध-राजनीति’

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राकेश प्रवीर.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि धूमिल करने के लिए ‘ मोदी वैरिएंट’ जैसे शब्दों के उपयोग के साथ देश के इमेज को ध्वस्त करने के लिए विदेशी मीडिया की मदद जैसी सलाहों वाली टूलकिट को जारी करने वाली कांग्रेस क्या ‘गिद्ध-राजनीति’ का प्रतीक नहीं बन गयी है? कांग्रेस रिसर्च विंग से जुड़ी और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की करीबी सौम्या वर्मा की आखिर मंशा क्या है? कोविड-19 वैश्विक महामारी है, पूरी दुनिया इसकी तबाही झेल रही है,भारत भी बुरी तरह चपेट में है और इससे मुकाबले के लिए जूझ रहा है। मगर देश के विपक्ष का जिस तरह का विद्रूप चेहरा सामने आ रहा है, वह चिंताजनक है। टीकाकरण के शुरुआत के प्रारंभिक दिनों से जिस तरह से नकारात्मक प्रचार का विपक्ष ने मुहिम चलाया, वह भी हैरत में डालने वाला था। जिंदगी बचाने के अभियान को लेकर जैसी अफवाहें फैलाई गई वह भी हैरान करने वाली थी। सत्ता और विपक्ष की राजनीति में सरकार के गलत कामों के विरोध की बात तो समझ में आती है, मगर अच्छे कार्यों का भी घटिया स्तर पर विरोध हो, यह समझ से परे है।

विपक्षी विरोध की नैरेटिव को समझने के लिए कतिपय तथ्यों पर गौर करना लाजिमी है। भारत ने जनवरी के प्रारम्भ में 3 कोरोना वैक्सीनों को मंजूरी दी थी। उस समय भारत में वैक्सीन का करीब 10-15 करोड़ डोज़ का स्टाक रहा होगा। निर्माण क्षमता 5.6 करोड़ प्रतिमाह और टीका लगाने की योजना 13 लाख प्रतिदिन यानी 4 करोड़ प्रतिमाह थी।वैक्सीन की शैल्फ लाइफ 6 माह आंकी गयी थी।

प्रारम्भिक दिनों में वैक्सिनेशन को लेकर कई चुनौतियां भी थी। सबसे बड़ी थी वैक्सीन को देश के कोने-कोने में पंहुचाने और मैडिकल स्टाफ को प्रशिक्षण की चुनौती। इसके साथ ही वैक्सीन लेने के लिए लोगों को मानसिक रूप से तैयार करने का चैलेंज भी था।

सब ठीक-ठाक हो जाता परंतु तभी भारत विरोधियों ने इस टीकाकरण अभियान को विफल बनाने के लिए पूरी शक्ति से दुष्प्रचार और मिथ्या खबरें जनता में फैलाने शुरू कर दिए। वैक्सीन खराब है, इससे लोग मर जाते हैं, वैक्सीन कारगर नहीं है, पूरी तरह टैस्टिंग नहीं हुई है, भाजपा की वैक्सीन है, नपुंसक बनाती है, और न जाने क्या क्या।

जनवरी-फरवरी,2021 में कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, सांसद मनीष तिवारी, छतीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव, झारखण्ड के स्वास्थ्यमंत्री बन्ना गुप्ता, उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व सपा प्रमुख अखिलेश यादव आदि के बयानों को याद करें तो विपक्षी साजिश को समझने में आसानी हो जाएगी। अखिलेश यादव ने जहां वैक्सीन को ‘भाजपा का वैक्सीन’ बता कर लेने से इनकार कर दिया वहीं अन्य ने कई तरह की अफवाहें फैला कर अपने लोगों / समर्थकों को वैक्सीन से दूर रखा। मकसद टीकाकरण अभियान को फेल कर मोदी को विफल साबित करना था।

नतीजा यह हुआ कि जो टीकाकरण फ़रवरी अंत तक 7.5 करोड़ होना चाहिए था वह मात्र 20% यानी 1.5 करोड़ ही हुआ। टीकाकरण की सुस्त रफ्तार को देखकर यह लग रहा था कि पहले से बनी अतिरिक्त वैक्सीन एक्सपायर हो जाएगी और भारत जैसे देश में वैक्सीन प्रबंधन का जोखिम खड़ा होना मामूली बात है। ऊपर से शत्रुतापूर्ण विरोधी। सरकार ने आनन- फानन में तय किया कि जिन देशों को वैक्सीन की आवश्यकता है उन्हें वैक्सीन उपलब्ध कराई जाए। इससे भारत की छवि भी बनेगी और अतिरिक्त वैक्सीन व्यर्थ भी नहीं होगी। कुल 6.63 करोड़ डोज विदेश भेजी गईं जिसमें 1.05 करोड़ दान में, कुछ  WHO के लिए, कुछ वैक्सीन बनाने वाली कम्पनी के अनुग्रह (क्योंकि Covishield विदेशी सहयोग से बनी है) और कुछ वाणिज्यिक करार के तहत कीमत लेकर भी दी गईं।

भारत का यह सत्कर्म विदेशी फार्मा कम्पनियों को तीर की तरह से लगा। जहाँ यह कम्पनियाँ सम्पूर्ण विश्व को वैक्सीन के बल पर बंधक बनाने का प्रयोजन कर रहीं थीं, छोटे देशों की सरकारों के वाणिज्यिक और सैन्य प्रतिष्ठानों को गिरवी रखवा रहीं थीं, भारत के इस कदम ने उनके लिए घोर व्यवधान पैदा कर दिया। भारत के विपक्ष को उन्होंने साधा। किसी भी शुभ प्रयोजन के साथ किये गए कार्य के मार्ग में अगर दुष्ट और दुर्जन शक्तियां आ जाएं तो व्यवधान आना स्वाभाविक है।

नतीजतन जैसे ही भारत में कोरोना की दूसरी लहर परवान चढ़ी, भारतीय विपक्ष के साथ सारी दुनिया की मीडिया और प्रोपेगंडा कम्पनियों को भारत सरकार की हर प्रकार से निन्दा करने का अवसर मिल गया। टूलकिट के जरिए जिस तरह से विदेशी मीडिया को अस्पतालों के आगे लगी भीड़, ऑक्सीजन के लिए बेहाल मरीज, जलती चिताएं, शवों की कतार आदि की तस्वीरें मुहैय्या कराई गई, दिल्ली में पोस्टर लगे उससे ऐसा करने वालों की मंशा स्पष्ट हो जाती है।

सही है कि, कोरोना लहर से करोड़ों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, अस्पताल कम पड़ गए, आक्सीजन कम पड़ गई, अनेक लोगों की असामयिक मृत्यु हुई। परंतु एक सत्य यह भी है कि कल तक जो लोग वैक्सीन का विरोध कर रहे थे, अपने समर्थकों को लगवाने नहीं दे रहे थे, गुप-चुप वैक्सीन लगवाने लगे। इसी का परिणाम है कि मार्च और अप्रैल मई में वैक्सीन लगवाने वाले 18 करोड़ हैं जबकि मूल योजना मात्र 5 करोड़ प्रतिमाह की थी।

कोरोना  की दूसरी लहर कैसे, कहां से और किन लोगों की लापरवाही और निष्क्रियता से फैली यह विचार-विमर्श का एक और विषय हो सकता है, पर जब सामने धूर्त और मक्कार लोगों का समूह हो तो ऐसे में ‘गिद्ध- राजनीति’ से बचना मुश्किल है।

 

 

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