चुनाव में प्रलोभन ही क्यों-प्लान क्यों नहीं ?

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प्रमोद दत्त.

पटना. बिहार विभाजन (झारखंड गठन) के बाद बिहार को नए सिरे से सवांरने की जिस प्लानिंग की जरूरत थी वह प्लान किसी राजनीतिक दलों के एजेंडा में शामिल नहीं रहा.दावे तो पांच साल में विकसित बिहार बनाने के किए गए थे.लेकिन सड़क-बिजली को ही विकास का मापदंड बना दिया गया.अब दिल्ली चुनाव के समान बिहार चुनाव में भी मतदाताओं को प्रलोभन देने की होड़ राजनीतिक दलों के बीच लगी है. बिहार को कैसे विकसित बिहार बनाया जाए-यह ब्लू प्रिंट किसी के पास नहीं है.

किसी राज्य के विकास के लिए आधारभूत संरचनाओं (सड़क,बिजली,विधि व्यवस्था) और स्वास्थ्य-शिक्षा व्यवस्था को ठीक करना बुनियादी जरूरत है.लेकिन  बिहार में विकास को गति देने के लिए मात्र तीन क्षेत्रों, जल प्रबंधन,कृषि आधारित उद्योग और पर्यटन उद्योग को विकसित करने की जरूरत थी जिस पर न तो कोई ठोस योजना बनाई गई और न ही वर्तमान चुनाव में किसी राजनीतिक दलों ने इस पर फोकस किया.

इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिस रफ्तार में बेरोजगार युवाओं की फौज खड़ी हो रही है उस अनुपात में सरकारी नौकरी ऊंट के मुह में जीरा के समान है.देश या बिहार की युवाशक्ति का सदुपयोग भी हर सरकार का दायित्व भी है.स्किल्ड इंडिया के माध्यम से स्किल्ड हुए युवाओं को भी नौकरी या रोजगार मुहैय्या कराना भी सरकार की जिम्मेदारी है.

बिहार में कभी जनसंख्या व बेरोजगारी के अनुपात में कृषि आधारित उद्योगों में चीनी मिल,जूट मिल,कागज मिल समृद्ध था.लेकिन बाद के दिनों में हर सरकार ने झारखंड क्षेत्र से होने वाली आय को देखते हुए इन उद्योगों को उपेक्षित कर दिया.नतीजतन एक-एक उद्योग बंद होते चले गए.विशेषज्ञों का मानना है कि राज्य विभाजन के बाद बिहार की जल संपदा और कृषि को संवारने की जरूरत थी.बेहतर जल प्रबंधन करके जहां बाढ से नुकसान को कम किया जा सकता है वहीं सिंचाई की बेहतर सुविधा देकर कृषि उत्पादन को बढाया जा सकता है.हर खेत तक पानी पहुंचाने की नीतीश कुमार की घोषणा (प्रलोभन) को इस तरीके से पूरा करने पर बिहार को बाढ-सुखाड़ से दोहरा लाभ होगा.

इसी प्रकार विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि बिहार में क्षेत्रवार सर्वे करा कर कृषि आधारित उद्योग का जाल फैलाने की योजना बनानी चाहिए.जिस क्षेत्र में जिस कृषि उत्पाद की बाहुलता है उसी के अनुरूप उस क्षेत्र में चीनी मिल,राईस मिल, फ्लावर मिल, के साथ-साथ आम,लीची,केला,मखाना,मक्का आदि आधारित प्रोसेसिंग यूनिट सरकरी,गैरसरकारी या पीपी मोड में स्थापना पर बल देना चाहिए.इन उत्पादों को राष्ट्रीय स्तर पर बाजार उपलब्ध कराना चाहिए.इससे न सिर्फ किसानों की आय बढेगी बल्कि रोजगार के भी अवसर बढेगें.

बिहार में पर्यटन उद्योग हमेशा से उपेक्षित रहा है.जबकि इसकी अपार संभावनाएं हैं.पर्यटन उद्योग को विकसित किया जाए तो राजस्थान,जम्मू-कश्मीर आदि की श्रेणी में बिहार खड़ा नजर आएगा.बोध गया,राजगीर,पावापुरी, वैशाली,नालन्दा, विक्रमशिला, पटना साहिब, मनेर शरीफ आदि चर्चित पर्यटन स्थलों को और विकसित व आकर्षक बनाने के साथ-साथ रामायण सर्किट,सिख सर्किट,गांधी सर्किट,सूफी सर्किट,इको सर्किट आदि को विकसित व आकर्षक बनाना होगा.इसके अलावा विश्वविद्यालयों में पर्यटन शिक्षा को शामिल कर शिक्षित व ट्रेंड युवा तैयार करना होगा ताकि पर्यटन उद्योग में वे आसानी से रोजगार तलाश कर सकें.इसके साथ साथ पर्यटकों की सुविधा व सुरक्षा पर सरकार को ध्यान केन्द्रित करना होगा.

अगर राज्य विभाजन के बाद जल प्रबंधन,कृषि आधारित उद्योग और पर्यटन उद्योग की योजना पर अमल किया जाता तो सड़क,पुल,बिजली आदि में लाए सुधार का भी असर दिखने लगता.विकास के मुद्दे पर चुनावी प्रलोभन बेअसर हो जाता और तब सही मायने में न्याय के साथ विकास के नारे की सार्थकता भी  दिखती.

 

 

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सन् 1980 से पत्रकारिता. 1985 से विभिन्न अखबारों एवं पत्रिकाओं में विभिन्न पदों पर कार्यानुभव. बहुचर्चित चारा घोटाला सहित कई घोटाला पर एक्सक्लुसिव रिपोर्ट, चारा घोटाला उजागर करने का विशेष श्रेय. ‘राजनीति गॉसिप’ और ‘दरबारनामा’ कॉलम से विशेष पहचान. ईटीवी बिहार के चर्चित कार्यक्रम ‘सुनो पाटलिपुत्र कैसे बदले बिहार’, साधना न्यूज और हमार टीवी के टीआरपी ओरियेंटेड कार्यक्रम ‘पड़ताल - कितना बदला बिहार’ के रिसर्च हेड और विभिन्न चैनलों के लिए पॉलिटिकल पैनलिस्ट. संपर्क – 09431033460

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