जदयू के पूर्व प्रवक्ता का नीतीश कुमार से तल्ख सवाल

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प्रमोद दत्त.

पटना. जदयू के पूर्व प्रवक्ता नवल शर्मा 2012 तक पूरी तरह एक नॉन पोलिटिकल व्यक्ति थे ।UPSC में 961 cut गया था और इनका 956 था । आ गए जदयू में । मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी कुछ लगा होगा इसलिए जल्द ही प्रवक्ता बना दिये गए।जब जदयू महागठबंधन में शामिल हुआ तो नवल शर्मा अपनी क्षमतानुसार तब के विपक्ष भाजपा की जमकर खिंचाई की।तब हर दिन किसी न किसी चैनल के डिबेट में श्री शर्मा नजर आते थे और बहुत ही तार्किक तरीके से जदयू का पक्ष रखते थे।राजनीतिक परिस्थितियां बदली और जदयू महागठबंधन से रिश्ता तोड़कर फिर भाजपा के साथ हो गई।नवल शर्मा इसी घटना के बाद जदयू के प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया।पूछने पर बताते हैं- मैंने स्वेच्छा से प्रवक्ता पद से इस्तीफा दिया।सार्वजनिक तौर पर लगातार भाजपा की आलोचना करता रहा और गठबंधन का स्वरूप बदलने के बाद अचानक जो सुर बदलना पड़ता यह मेरी नैतिकता को मंजूर नहीं था।पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि प्रवक्ता पद छोड़ा है पार्टी नहीं।

लेकिन पिछले कुछ दिनों से नवल शर्मा लगातार नीतीश सरकार की आलोचना कर रहे हैं।अपने फेसबुक के माध्यम से वे सीधा नेतृत्व यानी मुख्यमंत्री से तल्ख सवाल कर रहे हैं। प्रस्तुत है नवल शर्मा के सवाल उन्हीं के शब्दों में–

15 साल बनाम 15 साल। जब यह चुनावी एजेंडा सेट हुआ, मैं अपसेट हो गया, काफी दुख हुआ । पहली बार अपने माननीय नेता नीतीश जी की प्रशासकीय क्षमता पर संदेह हुआ । लगा एक पूरा गिरोह मिलकर फिर से बिहार को बरगलाने में लग गया।अब फिर से पूरे चुनाव  लालू जी के कार्यकाल के स्याह अतीत के दागदार पन्नों को खोज- खोज कर निकाला जाएगा और हमें डरा-डरा कर लोरी सुनाया जाएगा – ‘ ज्यादा दिमाग मत लगाओ, सो जाओ नहीं तो जंगलराज आ जायेगा “

हद है ! 15  साल से आप हैं । क्या आपकी उपलब्धियों की झोली इतनी झंड है कि आप आंख में आंख डालकर लोगों को बता भी नहीं सकते कि हमने इतने दिनों में क्या किया है । नैतिकता का तर्कपूर्ण  तकाजा तो ये बनता है कि आप लोगों को बताते की अगले 5 वर्षों में आप बिहार को कहां ले जाएंगे, क्या विजन है आपके पास, क्या रोडमैप है , कैसे कृषि का विकास करेंगे , निवेशकों को कैसे आकर्षित करेंगे वगैरह । ये सब कुछ नहीं , बस उठे और लगे वही बासी ढोल पीटने ।

ऐसे भी सोंचकर देखिये । राजनीति सदैव बदलते समाज की अनुगामी होती है । आज अगर लालू यादव या कोई भी गद्दी पर बैठ के जंगलराज लाना चाहे तो संभव है क्या ? समाज बदल चुका है , लोगों की प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं । 90 का दशक वो दौर था जब लगभग हिंदी पट्टी के अधिकांश राज्यों में राजनीति का मूल स्वरूप लगभग एक जैसा था । अब वो दौर बीत गया । अब तो जातिवाद का परिष्कृत रूप सोशल इंजीनियरिंग  भी कब तक चलेगा , कहना मुश्किल है ।  आज लोगों को यंग और डायनामिक नेतृत्व चाहिए । और ऐसे लोगों को अपनी संभावनाओं को विस्तार देने दीजिये, उनकी भ्रूण हत्या कर बुढ़भस नेताओं की रीढ़विहीन जमात को लोगों पर मत लादिये।

महाराज पहले उनलोगों को बचाइए जिनके वोट के बल पर आप इंद्र का सुख भोग रहे । वे लोग रो रहे , बिलबिला रहे । कुछ तो पसीजिये । पता नहीं इस महामारी में कौन बचेगा कौन जाएगा । आपको होगा तो आप तो घरो में अस्पताल खोलवा लीजियेगा । हमनी कहाँ जाएंगे । फिर जल्दी मिलते हैं !

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