रामविलास पासवान के बाद…?

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प्रमोद दत्त.

पटना.पिछले तीन दशकों से बिहार की राजनीति तीन क्षत्रपों,रामविलास पासवान,नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के इर्द गिर्द घुमती रही है.भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को इनके सहारे की जरूरत पड़ती रही है.लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान का ऐन चुनाव के समय चले जाने से जो शून्यता आई है इसका बिहार की राजनीति पर क्या असर होगा,यह सवाल उठना स्वाभाविक है.

वैसे पासवान पिछले एक वर्ष से अस्वस्थ्य थे और अपनी अस्वस्थ्यता के कारण पार्टी की पूरी जिम्मेदारी अपने सांसद बेटे चिराग पासवान को सौंप दी थी.इसके बावजूद यह माना जा रहा था कि चिराग के हर राजनीतिक निर्णय में पासवान का सहमति रहती थी.इस चुनाव में चिराग ने जदयू से पंगा लेकर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थन में कदम उठाया तो माना गया कि इसमें भी पासवान की सहमति होगी.इसी नीति के तहत लोजपा ने भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है लेकिन जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया है.

कांग्रेस नेता जगजीवन राम के बाद दलित नेता के रूप में कांशीराम और रामविलास पासवान राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित हुए. कांशीराम उत्तर प्रदेश में तो रामविलास पासवान बिहार की राजनीति के केन्द्र में रहे.मंडल आयोग की अनुशंसा को लागू करवाने में पासवान की भूमिका महत्वपूर्ण रही.लेकिन तब बिहार में पिछड़ों के मसीहा लालू प्रसाद बन गए और पासवान दलित नेता के रूप में सिमट गए.लेकिन दलित वोट खासकर पासवान वोट पर पासवान की इतनी जबरदस्त पकड़ बन गई कि इस वोट को जिधर चाहा ट्रांसफर करवाया.इसी वजह से यूपीए हो या एनडीए पासवान को सभी ने अपने साथ जोड़े रखने की कोशिश की.

रामविलास पासवान के निधन के बाद आई शून्यता को पाटने की क्षमता चिराग पासवान में है लेकिन अभी उन्हें और राजनीतिक अनुभव की जरूरत है.निर्णय लेने की क्षमता भी है लेकिन अपने पिता के विरासत को संभालने के लिए पूरे कुनबे को साथ लेकर चलने की चुनौती भी है.विधान सभा के वर्तमान चुनाव में जैसा निर्णय उन्होंने लिया है उसमें सफल हुए और लोजपा की सीट बढाने में कामयाब हुए तो इसी चुनाव से वे बड़े नेता के रूप में उभर जाऐंगें.लेकिन अगर उनकी यह रणनीति फ्लॉप हुई तो लोजपा का विस्तार तो रूकेगा ही साथ ही चिराग को फिर नए सिरे से लोजपा की नीव रखनी पड़ेगी.

रामविलास पासवान जैसे क्षत्रप के गुजर जाने से फिलहाल यह जगह खाली हो गया है.क्षत्रप बनना कोई आसान नहीं है.राजनीति में वर्षों के तप से यह दर्जा मिलता है.चिराग को पार्टी में उनका उतराधिकारी बनाया गया लेकिन रामविलास पासवान की हैसियत में आने में उन्हें बहुत परिश्रम करना होगा,इंतजार करना होगा.

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