संवाददाता। पटना।अडाणी ग्रुप द्वारा बिहार में लगभग 30,000 करोड़ रुपए का निवेश किया जा रहा है। कंपनी द्वारा निर्माणाधीन भागलपुर पावर प्रोजेक्ट बिहार की तस्वीर बदल देगा। यह एनर्जी गैप और उद्योगों को उभरने में मदद करेगा और राज्य के युवाओं के लिए नए अवसर पैदा करेगा।
कई दशकों बाद पहली बार है बिहार में बड़े निजी निवेश हो रहा है।
आधी सदी से भी ज्यादा समय से बिहार भारत की औद्योगिक प्रगति के हाशिये पर रहा है। औद्योगिक विकास जिन क्षेत्रों में हुआ भी तो विभाजन के बाद वह क्षेत्र झारखंड में चला गया।
आंकड़े बताते हैं कि बिहार का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) करीब 776 डॉलर है, जबकि प्रति व्यक्ति बिजली खपत 317 किलोवाट घंटा (केडब्लूएच) है, जो कि देश के प्रमुख राज्यों में सबसे कम है।
दूसरी ओर गुजरात में प्रति व्यक्ति बिजली खपत 1,980 केडब्ल्यूएच है और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 3,917 डॉलर है।
जहां औद्योगिक विकास नहीं होता वहां मानव क्षमताएं पलायन कर जाती हैं। बिहार आज लगभग 3.4 करोड़ कामगारों को दूसरे राज्यों में भेजता है। इसके युवा दूसरी जगहों पर आजीविका तलाशने को मजबूर हैं क्योंकि राज्य के भीतर उद्योगों विकसित करने की क्षमता नहीं है।
अब जब अडाणी समूह द्वारा 30,000 करोड़ रुपए के निवेश कर भागलपुर (पीरपैंती) पावर प्रोजेक्ट विकसित किया जा रहा है तो इसका ऐतिहासिक महत्व है। यह सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं है, बल्कि यह बिहार के लिए भारत के विकास के ग्रिड से जुड़ने और अंततः औद्योगिक प्रगति में अपना हिस्सा हासिल करने का अवसर है।
बिहार में दशकों से औद्योगिक विकास पर ध्यान नहीं दिया गया। राज्य की कृषि पर निर्भरता अभी भी उच्च स्तर पर है और इसकी लगभग 50 प्रतिशत कार्यशील आबादी खेती, वानिकी या मछली पकड़ने में लगी है, जबकि केवल 5.7 प्रतिशत लोग ही विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं।
इस प्रोजेक्ट को भूमि आवंटन को विवाद में लाया गया। जबकि सूत्रों के अनुसार इसमें कोई भूमि हस्तांतरण शामिल नहीं है। प्रोजेक्ट के लिए एक दशक से भी पहले अधिग्रहित की गई भूमि, बिहार औद्योगिक निवेश प्रोत्साहन नीति 2025 के तहत कंपनी को नाममात्र किराए पर पट्टे पर दी गई है। भूमि बिहार सरकार के पूर्ण स्वामित्व में है।
प्रोजेक्ट की अवधि समाप्त होने पर, यह जमीन स्वतः ही राज्य को वापस मिल जाएगी।
हाल के वर्षों में बिहार में बिजली की मांग में तेजी से वृद्धि हुई है, लेकिन आपूर्ति में तेजी नहीं आई है। राज्य के पास लगभग 6,000 मेगावाट की स्थापित उत्पादन क्षमता है, जबकि वित्त वर्ष 25 में अधिकतम मांग 8,908 मेगावाट दर्ज की गई थी, जिसके कारण राज्य को राष्ट्रीय ग्रिड से बिजली आयात करनी पड़ती है।”
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के अनुसार, वित्त वर्ष 35 तक मांग लगभग दोगुनी होकर 17,097 मेगावाट होने का अनुमान है। नए पावर प्रोजेक्ट्स के बिना राज्य में आपूर्ति और मांग में अंतर बढ़ जाएगा और औद्योगिक विस्तार सीमित होगा, रोजगार सृजन कम होगा और समग्र विकास धीमा हो जाएगा।
स्वाभाविक रूप से भागलपुर प्रोजेक्ट इस ऊर्जा मांग की महत्वपूर्ण कमी को पूरा करने में मदद कर सकती है।















