प्रमोद दत्त
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है। सभी दल अब सक्रिय हो गए हैं। इसी बीच जनसुराज के नेता प्रशांत किशोर (पीके) के चुनावी अभियान पर सभी की नजर है।
इस वजह से यह सवाल उठने लगा है कि वे चुनाव में किसे नुकसान देंगे और किसे फायदा।
पैदल यात्रा और जनता से जुड़ाव
पीके लगभग पूरे बिहार की पदयात्रा कर चुके हैं। इस दौरान उन्होंने बुनियादी समस्याओं को उठाया और जनता से जुड़ाव बनाया।
धीरे-धीरे उनकी सभाओं में भीड़ बढ़ने लगी। हालांकि शुरुआत में विशेषज्ञों को शक था कि यह भीड़ वोटों में बदलेगी या नहीं।
लेकिन जब पीके ने महागठबंधन और एनडीए दोनों पर हमला किया, तो राजनीति में उन्हें गंभीरता से लिया जाने लगा।
लालू और तेजस्वी पर आरोप
पीके लगातार तेजस्वी यादव को नौवीं फेल कहकर निशाना साधते रहे। उन्होंने लालू प्रसाद पर भ्रष्टाचार और परिवारवाद का आरोप भी लगाया।
फिर भी इन आरोपों का असर सीमित रहा। कारण यह था कि लालू समर्थकों पर इसका असर नहीं पड़ा। वहीं, विरोधियों के लिए ये आरोप पहले से जाने-पहचाने थे।
एनडीए पर बढ़ते हमले
पिछले दिनों पीके ने एनडीए नेताओं पर हमला तेज कर दिया। उन्होंने भाजपा और जदयू के कई नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के नए मामले सामने रखे।
उदाहरण के लिए, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल, सांसद संजय जायसवाल, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और जदयू नेता अशोक चौधरी के नाम शामिल हैं।
इससे एनडीए मुश्किल स्थिति में आ गया। दरअसल, जो गठबंधन अब तक लालू परिवार पर हमला करता था, वही अब खुद सवालों के घेरे में है।
चुनावी असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि पीके को शायद सरकार बनाने का जनादेश न मिले। लेकिन वे एनडीए का बड़ा नुकसान कर सकते हैं।
लालू पर लगे आरोप पुराने हैं। इसलिए उनके वोटबैंक पर असर नहीं होता। इसके विपरीत, एनडीए ने हमेशा भ्रष्टाचार मुक्त और सुशासन की छवि बनाई है।
इसी कारण पीके के आरोप एनडीए को कमजोर कर सकते हैं। अब गठबंधन को केवल नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार की छवि पर भरोसा करना होगा।
पुराने चुनावों से सबक
1995 चुनाव में आनंद मोहन की पार्टी बीपीपा ने भी चुनावी माहौल बनाया था। उन्हें लगा कि वे मुख्यमंत्री बनेंगे।
इसलिए उन्होंने तीन सीटों से चुनाव लड़ा। लेकिन वे सभी पर हार गए।
नतीजा यह हुआ कि लालू विरोधी वोट बंट गए और लालू सत्ता में लौट आए।
इसी तरह 2020 में चिराग पासवान ने भी अपने उम्मीदवार उतारे। इसका सीधा नुकसान एनडीए को हुआ और राजद सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
हालांकि नीतीश कुमार के नेतृत्व में फिर एनडीए की सरकार बनी, लेकिन राजद की ताकत बढ़ी।
एनडीए के लिए खतरे का संकेत
पीके विकास का एजेंडा लेकर शांतिपूर्ण पदयात्रा कर रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, उन्होंने एनडीए पर हमले तेज कर दिए।
साथ ही, वे कह रहे हैं कि उनके पास और भी मुद्दे हैं जिन्हें वे क्रमवार उजागर करेंगे।
आखिरकार, यह साफ दिख रहा है कि उनका निशाना एनडीए का वोटबैंक है। और अगर इसमें सेंधमारी हुई, तो सीधा फायदा राजद और कांग्रेस को मिलेगा।