प्रमोद दत्त, पटना।
बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के तालमेल के मामले में एनडीए ने महागठबंधन की तुलना में बेहतर रणनीति तैयार की है।
इसके साथ ही, एनडीए के शीर्ष नेतृत्व ने उम्मीदवार तय करते समय जातीय संतुलन का विशेष ध्यान रखा।
इसी वजह से चुनाव के शुरुआती दौर में एनडीए महागठबंधन से आगे दिखाई देने लगा है।
हालाँकि, जदयू, लोजपा, रालोमो और हम के बीच कुछ नाराज़गी जरूर दिखी।
लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने समय रहते हालात संभाल लिए।
अब गठबंधन के सभी पाँच दलों की उम्मीदवारों की सूची सामने आ चुकी है।
कुल 243 सीटों में से 35 पर महिलाओं और पाँच पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया गया है।
इसके अलावा, 84 सीटों पर सवर्ण उम्मीदवार उतारे गए हैं।
वहीं, सभी दलों ने मिलकर 117 पिछड़े और अत्यंत पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
जदयू ने इनमें सबसे अधिक पिछड़ा–अति पिछड़ा वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया है।
इस वर्ग से कुल 59 उम्मीदवार जदयू ने उतारे हैं।
इनमें 25 कुर्मी–कुशवाहा, 8 यादव और 8 वैश्य समुदाय से हैं।
इसी तरह, भाजपा ने भी पिछड़ा–अति पिछड़ा वर्ग से 42 उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
लोजपा ने इस वर्ग से 12 और रालोमो ने 4 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
वहीं, सवर्ण उम्मीदवारों में सबसे अधिक संख्या भाजपा की है।
भाजपा ने 48, जदयू ने 22, रालोमो ने 2, हम ने 2 और लोजपा ने 10 सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
इनमें 36 राजपूत, 31 भूमिहार, 15 ब्राह्मण और 2 कायस्थ समुदाय से हैं।
कुल मिलाकर, एनडीए ने सामाजिक और राजनीतिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए एक सुविचारित रणनीति बनाई है।
इसी रणनीति ने चुनावी मुकाबले के शुरुआती चरण में उसे बढ़त दिलाई है।















