रूद्राक्ष पहनकर शवयात्रा में क्यों नहीं शामिल होना चाहिए?

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Rudraksha

जितेन्द्र कुमार सिन्हा. पटना.रुद्राक्ष धारण करने वाले को ब्रह्मत्व, रुद्रत्व और सत्य संकल्प की प्राप्ति होती है। जो रुद्राक्ष धारण करता है, उसे रुद्र रूप ही समझना चाहिए इसमें किसी प्रकार का संसय नहीं होनी चाहिए। यह भी सही है कि रुद्र+अक्ष = रुद्राक्ष होता है और रुद्र अर्थात् शिव और अक्ष अर्थात् आँसू भी होता है। रूद्राक्ष धारण करने से मनुष्य में आत्मविष्आत्मविश्वास, मनोबल में वृद्धि और मानसिक शांति मिलती है।
रूद्राक्ष माला के 108 दानों (मनकों) का भी अपना अलग ही महत्त्व होता है। 108 दानों (मनकों) के संबंध में ज्योतिषज्ञों का कहना है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, आकाष में अश्वनी, भरनी, कृतिका आदि सताइस नक्षत्रों की एक माला होती है। सभी नक्षत्र सुमेरू पर्वत के सहारे चारों दिशाओं में घूमते रहते हैं। यह माना गया है कि 27×4 = 108 दानों (मणिकाओं) की एक नक्षत्र माला आकाश गंगा में बनती है और यह नक्षत्र माला सुमेरू पर्वत के सहारे चारो दिशाओं में बिना अवरोध के घूमती रहती है। इसलिए ज्योतिष के आधार पर माला में भी 108 दानों (मनकों)  का नक्षत्र होता है, जिसमें सुमेरू अलग रहता है।
भारतीय अध्यात्म और ज्योतिष में यह मान्यता है कि 9 का अंक प्रभावशाली अंक है। अनेक पौराणिक, वैदिक प्रसंग भी इस अंक से जुड़े है। देखा जाय तो प्रमुख ग्रहों की संख्या- 9 है और नवरात्र के दिनों की पाठ करने की दिनों की संख्या भी 9 ही है। सर्वविदित है कि दुर्गा जी के नौ रूप प्रचलित है जिसकी पूजा नवरात्र के नौ दिनो में करते है। इस प्रकार कुछ विशेष गणितीय एवं अंक ज्योतिष सिद्धांतों के आधार पर भी 108 = 9 को श्रेष्ठ माना गया है।
   वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रत्येक प्राणी 24 घंटे में 21,600 बार श्वास लेता है और 12 घंटे में 10,800 बार।  अब देखा जाय यदि 10,800 में से अंतिम दो शून्य को हटा देते हैं तो 108 बचते हैं, जिनका योग भी 9 आता है। इस दृष्टि से भी 108 का विशेष महत्त्व है।उपाशुजाप के नियमानुसार यदि कोई व्यक्ति 108 बार जप करता है तो उसे 10,800 जप के बराबर फल मिलता है। ऐसी स्थिति में 10,800 की संख्या का जाप 108 दानों (मनकों) की माला के बराबर माना गया है।
रूद्राक्ष की माला सभी प्रकार की साधना में उपयोगी होता है। लेकिन माला जप के समय सावधानियाँ भी बरतनी आवश्यक है। कहा गया है कि जप करने के समय माला के सुमेरू का सीधा टपकर पुनः माला जप को आगे नहीं करना चाहिए क्योंकि सुमेरू को टपना जप विधि का उल्लंघन माना जाता और जप का फल नहीं मिलता है इसलिए सुमेरू को टपना नहीं चाहिए, बल्कि उंगलियों के सहारे सुमेरू को पकर कर माला को घुमाकर पलट देना चाहिए। रूद्राक्ष के माला को धारण करने वाले को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि रूद्राक्ष माला को कभी भी खूंटी पर नहीं लटकाना चाहिए, बल्कि जब भी माला उतार कर रखना हो तो देवस्थल पर ही रखना चाहिए। रूद्राक्ष माला को रजस्वला स्त्र्री से भी अलग रखना चाहिए।
रूद्राक्ष धारक को जब कभी भी शवयात्रा में शामिल होना हो तो वे रूद्राक्ष को उतार कर घर में ही रख कर शवयात्रा में शामिल होना चाहिए। यदि जब किसी शवयात्रा में गलती से माला पहनकर चले जाते हैं तो शवयात्रा से वापस आने के बाद रूद्राक्ष माला को गंगा जल से धोकर मंत्र से पुनः अभिमंत्रित करने के बाद ही धारण करना चाहिए। क्योंकि यह मान्यता है कि अभिमंत्रित माला में ईश्वर का साक्षात वास होता है।

 

 

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