मानदेय एक शोषणपरक राजनीतिक शब्द है- ललन कुमार सिंह

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success of the vaccination

संवाददाता.पटना.बिहार राज्य स्वास्थ्य संविदा कर्मियों का मानना है कि मानदेय पर नियुक्ति सिर्फ सरकारी सेवाओं में होती है जिससे सत्ता मासूम बेरोजगारों का शोषण कानून बनाकर करती है।यदि किसी सरकारी सेवा क्षेत्र में कुछ कर्मचारियों की आवश्यकता है और वर्तमान जनसंख्या में पूर्ण अर्हताधारी युवा मौजूद हैं तो फिर मानदेय पर नियुक्ति का औचित्य ही क्या है ? मानदेय एक शोषणपरक राजनीतिक शब्द है। यह कहना है बिहार राज्य स्वास्थ्य संविदा कर्मी संघ के सचिव ललन कुमार सिंह का।
श्री सिंह कहते हैं कि मानदेय पद्धति ऐसी सरकारी नीति है जिसे “कम दाम पूरा काम ” का सुलभ रास्ता अपना कर सरकार अपने ही नागरिकों का शोषण करती है। मानदेय की जगह यदि पूर्ण वेतन पर नियुक्ति की जाए तो अर्ध के बजाए पूर्ण बेरोजगारी दूर हो।लेकिन सरकार का उद्देश्य ही जैसे तैसे अपना काम चलाना है न कि गुणवत्तापूर्ण सेवायें प्रदान करना।
इस व्यवस्था का दुष्परिणाम यह है कि बेरोजगार युवा इस लालच में मानदेय आधारित सेवा ग्रहण करते हैं कि आज नहीं तो कल हम परमानेंट हो जायेंगे किन्तु समय बीतने के साथ उनकी उम्मीदें धूल फाँकने लगती हैं तब वो संगठित हो सड़कों पर उतरते हैं।धरना प्रदर्शनों/आन्दोलनों का दौर शुरू होता है और फलाँ संगठन के युवाओं पर लाठीचार्ज जैसे शीर्षकों से अखबार अक्सर पटा पड़ा रहता है। टीवी चैनलों पर कुछ प्रवक्ता गण सधे अंदाजों में बहस करते हैं । चौराहों पर लोग चटखारे लेते रहते हैं और मासूम युवा लाठी खाकर मन मसोसकर इन चीजों को देखता रह जाता है । कभी कोई समस्या की इस जड़ की तरफ ध्यान नहीं देता है।
सरकारी रवैए से नाराज श्री सिंह कहते हैं,1000 की रसोईया,3500 का शिक्षक, 2000का प्रेरक इसी भाँति अनेकानेक यथा ग्राम रोजगार सेवक, आँगनवाड़ी, आशा बहू आदि योजनाएं सरकार द्वारा संचालित है जो गरीबों का वैधानिक शोषण कर रही है। न जाने क्यों भारत के बुद्धिजीवियों द्वारा इस मानदेय वाली व्यवस्था का विरोध नहीं किया जाता विरोध और आलोचना सड़क पर संघर्ष कर रहे युवाओं का किया जाता है और कहा जाता है 2025 तक हम विकसित भारत का निर्माण कर देंगे।
गौरतलब है कि जब 300,500,1000,2000 में महीने भर सरकारी सेवा देने वाले कामगार भारत में रहेंगे, बेरोजगारों का यूँ ही मजाक बनाया जाता रहेगा, तो क्या खाक विकसित भारत का निर्माण करेंगे।बिहार स्वास्थ्य विभाग में 4 तरह कर्मियों का विभाजन किया गया है पहला नियमित नियुक्ति स्वीकृत पद के विरोध इसका चयन आयोग से किया जाता है इस कर्मी को सारे सुविधा उपलब्ध प्रत्येक बरस महंगाई भत्ता इत्यादि मिलता है। दूसरा बिहार सरकार के संविदा पर स्वीकृत पद के विरुद्ध चयन इसका प्रत्येक दो तीन चार साल में मानदेय का रिवीजन किया जाता है। इसको 5 साल पहले 10,000 मिलता है आज लगभग 30 से 35 हजार मिलता है। सुविधा कुछ नहीं। तीसरा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत संविदा पर लगभग 27000 से अधिक करनी है। 2011 में वेतन रिवीजन उसके बाद आज तक लंबित सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं। इसके लिए कई आंदोलन होते रहे।
चौथा आउट सोर्स कर्मी जिसका सरकार के द्वारा डाटा ऑपरेटर का सरकार के द्वारा 18000 गवर्नमेंट के द्वारा स्वीकृत है आठ से 10,000 मिलता है। सुविधा के नाम पर कुछ नहीं। बाकी पैसा चंद पूंजीपति ठेकेदारों के पास जमा लगभग सब का काम एक समान ही है पर नजराना अलग-अलग। संविदा कर्मी स्वास्थ्य विभाग एवं अन्य विभाग में देर रात तक काम करना और कोई कर्मी मिलेंगे तो अधिकांशत संविदा पर कार्यरत कर्मी ही होगे।प्रखंड स्तर का जिला स्तर का प्रमंडल स्तर का राज्य स्तर का मीटिंग होगा। कहते हैं कि मीटिंग में पदाधिकारी के द्वारा कहा जाता है कौन काम नहीं करता है। कंटेक्सुअल है हटा उसको। Remove it –  इन शब्दों को संविदा कर्मी कोप भाजन से आज बीपी,शुगर जैसी बीमारियों से ग्रसित होते जा रहे हैं। एक डर होता है नौकरी बचाना।दूसरा काम का अधिक भार। यदि मानवीय आधार पर भी देखा जाए तो जिस भारत में एक पिज्जा की कीमत भी कभी कभी इन मानदेयों से बढ़कर होती है। विकसित भारत का निर्माण करना है तो युवाओं के साथ ऐसा भद्दा मजाक बंद करना होगा।

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