राजद प्रवक्ता ने वरिष्ठ भाजपा नेता को बेरोजगार बताते हुए की यह टिप्पणी

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संवाददाता.पटना.राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा है कि सुशील मोदी सहित अन्य बेरोजगार भाजपा नेताओं को देखकर तरस आ रहा है। पराये तो पराये अब अपने भी बेगाने हो गये हैं। न सरकार में जगह मिली न संगठन में। इन स्वयंभू बड़े नेताओं के लिए तो सबसे दुखद स्थिति यह हो गई कि बगल के बंगाल और असम में हो रहे विधानसभा चुनाव में भी इनकी पार्टी इन्हें प्रचार करने के काबिल ही नहीं समझा। अब अपनी पहचान बचाये रखने के लिए पटना के अपने कमरों में बैठकर हीं मीडिया और ट्विटर के माध्यम से बंगाल और असम में भाजपा के जीत के दावे कर रहे हैं।

बेरोजगार हुए भाजपा के अन्य नेताओं को तो उनके समाजिक सरोकार और राजनीतिक आधार की वजह से थोड़ी बहुत व्यस्तता भी है पर सबसे हास्यास्पद स्थिति पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जी की हो गई है। लालू-तेजस्वी नाम की माला जपते-जपते उन्होंने एक राजनीतिक मुकाम को हासिल किया था पर लगता है कि अब उसका असर उल्टा हो रहा है। चूंकि नाम का माला जपने में भी कुछ सिद्धांतों का ध्यान रखना पड़ता है। मोदी जी अत्यधिक झूठ बोल कर और पूर्व के दृष्टांत के आधार पर एनडीए सरकार के हर गलत कामों को न्यायोचित ठहरा कर उन सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।

राजद प्रवक्ता ने कहा कि राजद शासनकाल में सीएजी द्वारा पशुपालन विभाग में मात्र कुछ करोड़ की गड़बड़ी के लिए सरकार को दोषी ठहराया जा सकता है तो सीएजी द्वारा एनडीए शासनकाल के दौरान अधिकांश विभागों में हजारों करोड़ रुपये की हेराफेरी को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है।

राजद प्रवक्ता ने कहा कि मोदी जी जिम्मेदार पद पर रहे हैं उन्हें हल्कापन वाले बयानों से बचना चाहिए। आज सरकार उनकी है सारे आंकड़े उपलब्ध हैं। राजद शासनकाल में शिक्षक का एक भी पद रिक्त नहीं रहता था। प्रतिवर्ष होने वाली रिक्तियों के विरूद्ध नियुक्ति की प्रक्रिया चलती रहती थी। सर्व शिक्षा अभियान के तहत जब नये प्राथमिक विद्यालय खोले गये और प्राथमिक विधालयों को मध्य विद्यालय में उत्क्रमित किया गया तो स्वीकृत पदों के अतिरिक्त पदों के सृजन की प्रत्याशा में  दो लाख से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति अनुबंध के आधार पर किया गया था जिन्हें शिक्षा-मित्र कहा जाता था ।और आज स्थिति यह है कि शिक्षकों के कुल सृजित पदों में भी तीन लाख से ज्यादा पद रिक्त हैं। एनडीए शासनकाल में एक और भी बड़ी चालबाजी की गई कि शिक्षकों के अवकाश ग्रहण करने के साथ हीं उनका पद स्वतः रूप से समाप्त हो जा रहा है। जिससे उक्त पदों के विरुद्ध नियुक्त किए गए शिक्षकों को नियमित शिक्षक का वेतन नहीं देना पड़ेगा।

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