मानवता को बचाने वाला टीका

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अश्विनी कुमार चौबे.

मकर संक्रांति पर्व के सूर्य की भांति 16 जनवरी को भारतीयों की उम्मीदों का उदय हो चुका है। वैश्विक स्वास्थ्य के इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान की शुरूआत प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के द्वारा होना भारत ही नहीं अपितु विश्व के लिए एक बड़ी घटना है।  प्रधानमंत्री जी ने हमारी इस लड़ाई को आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता का बताया है। इस मुश्किल लड़ाई से लड़ने के लिए हम अपने आत्मविश्वास को कमजोर नहीं पड़ने देंगे, ये प्रण हर भारतीय में दिखा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना का टीकाकरण देश के लिए एक ऐसी उपलब्धि है जिस पर सभी भारतियों को गर्व है। जबसे कोरोना माहामारी आई तभी से सबके मन में यही सवाल था कि इस घातक बीमारी का टीका कब आएगा। आखिर यह सुखद दिन आ गया है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि वर्तमान के साथ आने वाली पीढियां भी इस भगीरथ प्रयास पर गर्व का अनुभव करेंगी।

हालांकि इस पूरे टीकाकरण अभियान को एक उपलब्धि भर कह देना उचित नहीं होगा। दरअसल यह एक केस स्टडी भी है कि ऐसा देश जहां कोरोना ने जब दस्तक दी तब एक भी पीपीई किट का उत्पादन नहीं होता था  फेस मास्क नहीं बनते थे। सामाजिक दूरी बनाकर रखने की आदत दूर-दूर तक नहीं थी और सबसे बड़ी चुनौती कि वह देश दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला देश था। फिर हमारे नेतृत्व के अद्भुत इच्छाशक्ति, डॉक्टरों, वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम ने इस कठिन काम को कर के दिखाया है। नतीजा हमारे सामने है। आज दो स्वदेशी वैक्सीन बनकर तैयार हैं।

तात्पर्य यह कि चुनौतियां पहाड़ सरीखी थीं,लेकिन पूरे देश का नेतृत्व आत्मविश्वास से लबरेज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे थे।  पिछले साल 25 मार्च को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के लोगों से संवाद करते हुए कहा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कोरोना वायरस न तो हमारी संस्कृति को और न ही हमारे संस्कार को मिटा सकता है।  निश्चय ही संकट के समय हमारी संवेदनाएं जागृत हो जाती हैं।

देशवासियों के भीतर इस भावना का संचार करने के लिए समय-समय पर प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करने का काम किया। इसके साथ-साथ डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों से भी संवाद कर के उनके हौसला अफजाई में कोई कोर कसर नहीं रखी। यह आवश्यक इसलिए भी था क्योंकि पूरा देश को एक लंबी लड़ाई के लिए तैयार करना था। पूरे मानवीय व्यवहार में परिवर्तन लाना था और निस्संदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परिवर्तन के लिए पहले पंक्ति में खड़े दिखाई दिए।

सही समय पर लॉकडाउन लगा कर देशवासियों को ठहरकर विचार करने की प्रेरणा दी कि कैसे एक-एक व्यक्ति से होकर पूरे समाज का व्यवहार परिवर्तित किया जा सकता है। देश के प्रत्येक नागरिकों के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए मार्च में ही 15 हजार करोड़ रूपए की व्यवस्था की,  जिसका उपयोग जांच सुविधाओं को बढाने, अस्पतालों में आइसोलेशन बेड बढ़ाने और वेंटीलेटर की संख्या बढ़ाने के लिए किया गया। इसी दिशा में प्रयासरत रहते हुए मोदी सरकार ने 1 लाख 70 हजार करोड़ रूपए के अतिरिक्त 20 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर भारत पैकेज की व्यवस्था की। वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन द्वारा इन पैकेजों की घोषणा की गई। इस पूरे पैकेज में स्वास्थ्य कर्मियों, किसानों, संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए विशेष उपाय किए गए।

प्रधानमंत्री जन-धन खाते में महिला खाताधारकों को 500 रूपए प्रति माह दिया गया। गैस सिलिंडर दिया गया। किसानों को उनके खाते में ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ के तहत राशि पहुंचाई गई। गरीबों को पूरी तरह से समर्पित इस बजट में नवंबर तक मुफ्त अनाज देने की व्यवस्था की गई।  लघु और मध्यम उद्योगों के हितों का ध्यान रखते हुए ऋण उपलब्ध कराया गया। देश की जरूरतों का ध्यान रखने के साथ-साथ चीन, इटली, ईरान और दुनिया के दूसरे हिस्सों में फंसे भारतीयों को वापस अपने घर लाने में प्रधानमंत्री ने अहम भूमिका निभाई।  प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं कहा भी कि ऐसे समय में जब कुछ देशों ने अपने नागरिकों को चीन में बढ़ते कोरोना के बीच छोड़ दिया था। तब भारत, चीन में फंसे हर भारतीय को वापस लेकर आया और सिर्फ भारत के ही नहीं, हम कई दूसरे देशों के नागरिकों को भी वहां से वापस निकालकर लाए।

यही नहीं अमेरिका जैसे कई देश को हाइड्रोक्लोरोक्विन एवं अन्य मेडिकल किट देकर भारत ने वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को बनाए रखा।इसी दौरान ऐसा भी महसूस किया गया कि देश के प्रत्येक हिस्से में गरीबों के लिए बहुत से लोग दान कर मदद करना चाहते हैं। देशवासियों की इस भावना को मूर्त रूप देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ‘पीएम केयर्स फंड’ की स्थापना की गई, जिसमें देश के नागरिकों ने बढ़-चढ़ कर अपनी सहभागिता दर्ज कराई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदैव यह मानते हैं और अपने कार्यों में यह दिखाते भी हैं कि किसी भी समस्या के प्रभाव को कम करने के लिए जन-भागीदारी सबसे असरदार साबित होता है। और हम देखें तो प्रधानमंत्री की हर नीतियों में जनभागीदारी अवश्य दिखाई देती है।

इसका सर्वोत्तम उदाहरण 5 अप्रैल को तब दिखा जब देशवासियों ने एकजुटता दिखाते हुए अन्धकार रुपी कोरोना को परास्त करने के लिए दिया और मोमबत्ती जलाई। यह जागरूकता और एकता का बोध भी इस लड़ाई में असरकारी सिद्ध हुआ। इन विषम परिस्थितियों में प्रधानमंत्री ने दैनिक आधार पर सचिवों के साथ बैठक की। राज्यों के मुख्यमंत्रियों से संवाद स्थापित किया।  सभी विपक्षी दलों को भी साथ लेकर दलीय राजनीति से ऊपर उठकर देशहित को सर्वोपरि रखने का काम किया। सामाजिक दूरी बनाए रखने की मिसाल पेश करते हुए खुद को सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रखा। हम देखें तो पुरे देश ने कोरोना की लड़ाई को बहुत संयमित ढंग से लड़ा। उपरोक्त विवरण को देखें तो आसानी से समझ सकते हैं कि केंद्र सरकार ने एक-एक कर सभी बिंदुओं पर सराहनीय कार्य किया।

अंततः जब देश के वैज्ञानिक एक बेहद लंबी लड़ाई के बाद कोरोना की वैक्सीन रूपी उस मुकाम पर पहुंच गए जिसका सभी देशवासी इंतजार कर रहे थे। 16 जनवरी का दिन मानवता की रक्षा के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक दिन है। गौरतलब है कि सबसे बड़े टीकाकरण अभियान के प्रथम चरण में देशभर के लगभग तीन करोड़ हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्करों के टीकाकरण किया जाएगा। उसके पश्चात दूसरे चरण में यह संख्या तीस करोड़ तक पहुंचेगी जिसमें बुजुर्ग और वो लोग शामिल होंगे जो गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। जिस प्रकार कोरोना के खिलाफ लड़ाई देश के प्रत्येक नागरिकों द्वारा उत्तम उदाहरण पेश हुआ, उसी प्रकार टीकाकरण की पूरी कार्य-योजना की सफलता के लिए एक बार फिर सभी से सहयोग की भावना अपेक्षित है। मानवता को बचाने की इस लड़ाई में विश्व समुदाय के सामने फिर एक बार भारत ने अपना लोहा मनवाया है.( लेखक- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री,भारत सरकार हैं)

 

 

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