कलम के जादूगर,रामवृक्ष बेनीपुरी

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वीणा बेनीपुरी.

सितंबर के हीं महीने में 7 तारीख को बेनीपुरी जी की पुण्यतिथि मनाई जाएगी, तो स्वाभाविक रूप से उनकी याद में कुछ संस्मरण या स्मरण कर के उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए, कुछ बातें उनकी लेखनी की….

जमीनी हकीकत से जुड़े रहना हीं उनकी पहचान थी, जो स्वाभाविक थी, कोई दिखावा नहीं था उसमें। 1957 के विधानसभा चुनाव में जब चुनाव प्रचार के लिए पैसे और साधन नहीं थे, तब उन्होंने तय किया कि बैलगाड़ी पर हीं प्रचार करेंगे। बाद में किसी एक मित्र ने एक हाथी भी दे दिया। पूरी लड़ाई इन्हीं दो साधनों पर लड़ी गई। ताम-झाम को जरा भी महत्व नहीं दिया उन्होंने।

उनका जीवन-दर्शन बहुत व्यापक और स्वतंत्र था, और ये आप उनकी सभी कहानियों में पायेंगे। आसमान के ऊँचाइयों के परे इंसानी ख्वाहिशों की उच्श्रंखल उड़ान हो या फिर पाताल की गहराइयों तक गिरते जा रहे मूल्यों की पड़ताल हो, सबमें उनके मर्मस्पर्शी शब्दों का ऐसा ताना-बाना बुना होता है  जो धीरे-धीरे आपको जज्ब कर लेता है। आप उस कहानी के किरदार हो जाते हैं, उस वक्त को जीने लगते हैं। शब्दों का कोई मायाजाल नहीं फैलाते, बल्कि उन्हें इतना जीवंत बना देते  कि लगता कि अपने आस-पास हीं वो सब घटित हो रहा है। वो चाहे किसी तूफान का वर्णन हो, या बाढ़ का वर्णन हो, पंछियों का शोर हो या पेड़ों का गिरना हो!  अपने शब्दों से कोई भी विभीषिका हो या किसी त्योहार की तैयारियां हो या फिर किसी मेले का जिक्र हो, सब कुछ आँखों के सामने सजीव हो उठता है। उनके शब्द बोलने लगते हैं। मानो, कोई किस्सागो आपके पास बैठा है और आँखों देखा हाल सुना रहा है। इसीलिये उन्हें “कलम का जादूगर” कहा जाता है!

ऐसा नहीं था कि उनकी कलम से सिर्फ समाज के ताने-बाने या उसकी बुराइयों के बारे में, आर्थिक विषमताओं के बारे में हीं बातें निकली हों, बल्कि उन्होंने बच्चों के लिए भी बहुत कुछ लिखा। और मुझे बड़ी हैरत होती है कि उन बाल-कथाओं के संग्रह का, अमूमन कहीं जिक्र नहीं है।

उन कहानियों में उन्होंने कोई मायावी दुनिया नहीं बनाई, बल्कि देश-विदेश के कई महापुरुषों की जीवनियाँ तैयार कीं। बच्चों को जीवन में प्रेरित करने के लिए कई वीरों की कहानियां लिखीं, लोक-कहानियों का संग्रह किया। फंतासी कहानियों में भी इस बात का ध्यान रखा, कि इससे भी बच्चों को मनोरंजक तरीके से ज्ञान मिले, प्रेरणा मिले, ताकि जीवन में वो अपने पीछे सबके लिए रौशनी बिखेर सकें। ऐसे महान साहित्यकार के परिवार का अं‌श होने का गौरव मुझे प्राप्त हुआ। शत् शत् नमन।

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