मनमानी फीस और महंगी किताबों से परेशान हैं अभिभावक

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मो.तसलीम उल हक.

एक तरफ सरकार शिक्षा पर विशेष ध्यान दे रही है। वही निजी स्कूलों के मालिक वहाँ पढ़नेवाले बच्चो के अभिभावक पर आर्थिक भोझ डालने से बाज नहीं आ रहे है। अगले क्लास में प्रोमोट होते ही वहां पढ़नेवाले बच्चो के री-एडमिशन चार्ज और नई किताबो की सूची अभिभावक के हाथों  में थमा दिया जाता है। वही पुस्तक बिक्रेता भी अधिक कीमत वाली किताबो पर अधिक कमीशन देने का लोभ निजी स्कूलों के प्रबंधक को  देकर पुस्तक बिक्रेता मालामाल हो रहे है। ऐसी व्यवस्था के कारण अभिभावक परेशान हाल है। इन पर अंकुश लगनेवाला कोई नहीं है। स्थानीय प्रशासन से सरकार के उच्च अधिकारी भी मोन है।  सवाल यह है कि कौन है जो शिक्षा को लचर बनाने की कोशिश में लगे है।

शुरुआत अच्छी थी –

सरकार ने शुरू में निजी स्कूलों को शैक्षिक नियमों को लेकर गंभीर रही और ऐसे स्कूलों को शिक्षा विभाग से निबंधित कराने का अभियान चलाया। शहर से लेकर छोटे कस्बो तक के निजी स्कूलों के निबंधन करा लिए गए। निबंधन के बाद शिक्षा विभाग ने निबंधन प्राप्त स्कूलों को नियमावली के साथ निबंधन पत्र प्रदान किया। विद्यालय प्रबंधन को बताया गया है,उसे क्या-क्या व्यवस्था वहाँ पड़नेवालों को देना है ? टीचर,बुक्स,सुरक्षा से लेकर कम आय वाले बच्चो के नामंकन को नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है।

क्या कर रहे है ये —

निजी स्कूलों के प्रबंधक आज अधिक कमाई की योजना बना कर रि-एडमिशन और अधिक कमीशन मिलने वाली किताबो का चयन कर रहे है। इसमें पुस्तक बिक्रेता अधिक सहायक होते है। पुस्तक बिक्रेता अधिक मूल्य वाली प्रकाशनो से सांठ-गाँठ  कर उन किताबो को निजी स्कूलों में लगवा देते है और किताब भी अपने दूकान से देते है। एक स्कूल के प्रबंधक ने बताया कि पुस्तक बिक्रेता 50 प्रतिशत कमीशन देते है। जबकि पुस्तक बिक्रेता को 20 से 25 प्रतिशत बचता है।

पुस्तक बिक्रेता की मनमानी –

जिनके भी बच्चे निजी स्कूल में पढ़ते है और वो अगले क्लास में चला जाता है। उनके बुक्स किताब दुकान वाले अभिभावक की मर्जी से नहीं देते है। कहते है कि पूरा सेट लेना पड़ेगा। एल के जी के 12 से कम किताबें नहीं चयनित किये जाते है। उसमे से कुछ किताब अगर अभिभावक ने इंतज़ाम कर लिया हो तो बाकि के किताब पुस्तक बिक्रेता नहीं दिया करते है। मजबूरी में अभिभावक को कुछ किताब रहते हुए भी पूरा का पूरा किताब खरीदना पड़ता है। लोग किताब और री-एडमिशन फीस भरने में क़र्ज़ ले रहे या फिर जेवर गिरवी रख भर रहे है।

आखिर क्या करे अभिभावक  –

निजी स्कूलों और पुस्तक बिक्रेताओं की मनमानी के खिलाफ स्थानीय प्रशासन के पास आवेदन दे चुके है। लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसे में इनके पास सड़क पर उतरने का ही एकमात्र रास्ता है। जल्द ही अभिभावक इस मुद्दे पर बैठक करने वाले है। अभिभावकों का कहना है कि सरकार प्राइवेट प्रकाशन वाले पुस्तकों के जगह एनसीईआरटी के बुक्स लगाने का आदेश जारी करें। ताकि देश में समान शिक्षा का वातावरण हो सके। सीबीएससी बोर्ड ने पत्रांक 1335026 दिनांक 18-12-2017 को इसके लिए आदेश जारी किया था।

 

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