नीलगाय से बढती बर्बादी,किसानों का त्राहिमाम

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अनूप नारायण सिंह.पटना.कभी बिहार के दियारा इलाके में इक्का-दुक्का की संख्या में गाहे-बगाहे नजर आने वाली नीलगायों की संख्या में अचानक काफी वृद्धि हुई है।बिहार के सोलह जिलों में इस वन्य प्राणी की तदाद में पिछले पांच वर्षों के अंदर बेहद इजाफा हुआ हैं।बिहार के बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर, शिवहर, सीतामढ़ी, छपरा, सीवान, गोपालगंज, हाजीपुर, आरा, बक्सर, कैमूर व समस्तीपुर जिलों में नीलगायों के आतंक से किसान त्राहिमाम कर रहे है।

सूत्रों के अनुसार इन जिलों में पचास हजार से ज्यादा की तदाद में नीलगायों का झुंड हैं।गंगा, सोन, गंडक व कोशी कछार के दियारा इलाके नीलगायों का स्थायी बसेरा है।भोजन की तलाश में भटकते हुए नीलगायों का झुंड दियारा इलाके से निकल कर मैदानी इलाकों में प्रवेश कर जाता है। इसके द्वारा व्यापक पैमाने पर फसलों को नुकसान पहुंचाया जाता है।नीलगायों से त्रस्त बिहार सरकार ने अध्यादेश पारित कर नीलगायों को मारने का आदेश दे रखा है।

वन विभाग से जुडे़ अधिकारी बताते है कि पहले बिहार में नीलगायों को मारने पर प्रतिबंध था।लेकिन पिछले वर्ष राज्य सरकार द्वारा अध्यादेश पारित कर दिए  जाने के बाद यह प्रतिबंध समाप्त हो गया। गत वर्ष राघोपुर (हाजीपुर) इलाके में नीलगायों को मारने के लिए बाहर से शूटर बुलाए गए थे तथा सैकड़ों की तदाद में नीलगायों को मार गिराया गया।

नीलगायों को मारने के आदेश के खिलाफ वनजीव संरक्षण से जुड़े कई स्वयंसेवी संगठनों ने अपनी आपत्ति ही दर्ज नहीं कराई बल्कि सड़क से लेकर संसद तक में अपना विरोध दर्ज करवाया।एक रिट याचिका भी न्यायालय में दायर की गई।बावजूद इसके नीलगायों का खुलेआम कत्लेआम जारी रहा।किसानों ने बातचीत के क्रम में बताया कि गाय परिवार की सदस्य नीलगायों से धार्मिक भावनाएं जुड़ी होने के कारण फसल की भारी बर्वादी होने के बावजूद उन्हें जान से मारने से परहेज किया जाता है।

समाजसेवी विकास  बताते है कि जंगलों का क्षेत्रफल लगातार घटने के कारणा नीलगायों से उनका प्राकृतिक परिवेश छिन गया। बाढ़ की पानी में बहकर नीलगायों का झुंड वन इलाकों से मैदानी इलाकों में आ गए है। मैदानी इलाके के उष्ण वातावरण उनकी प्रजनन क्षमता के लिए, बेहद अनुकूल है।इस कारण उनकी तदाद में तेजी से इजाफा होते जा रहा है।

नीलगायों के साथ ही साथ जंगली सुअरों का भी स्थायी बसेरा मैदानी इलाका हो गया है।इन वन्य प्राणियों के लिए संरक्षित इलाके बनाकर इनके लिए, सुरक्षित परिवेश तैयार किया जा सकता है।नीलगायों को मौत के घाट उतारने का फैसला बेहद क्रूर है।इस बावत केंद्र व राज्य सरकार को पूरे मामले की रिपोर्ट व इसकी वैकल्पिक दूसरे उपायों पर विचार करने संबंधी आवेदन बिहार के कई संगठनों ने भेजा है।

जीव हत्या के खिलाफ नेशनल स्तर पर काम करने वाली भाजपा सांसद मेनका गांधी हाल ही में बिहार आई थी। उन्हें भी नीलगायों के संरक्षण संबंधी आवेदन दिया गया है। नीलगायों के साथ ही साथ अन्य वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था ‘टियर्स’ की अंजू जी कहती है कि बिहार में नीलगाय किसानों के लि, आंतक की पर्याय हो चुकी है। इसमें कोई शक नहीं लेकिन नीलगायों को मारने का आदेश ही इस समस्या का समाधान नहीं।राज्य सरकार को अन्य वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करना चहिए।

 

 

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