अब्दुल क्यूम अंसारी के नाम पर हुई सिर्फ राजनीति

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मो.तसलिम उल हक.

शाहाबाद क्षेत्र के डिहरी निवासी अब्दुल क्यूम अंसारी किसी के परिचय के मोहताज़ नहीं है। मौलाना आज़ाद के साथ भारत -पाकिस्तान बंटवारा का विरोध करनेवालों में अंसारी साहब भी शामिल थे। अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग और खिलाफत आन्दोलन में ये 1920 में ,15 वर्ष की उम्र में कूद पड़े थे। देश के बंटवारे में मो अली जिन्ना का विरोध करते रहे और मुस्लिम लीग के खिलाफ ऑल इंडिया मोमिन कॉन्फ्रेंस की स्थापना की।

बाद में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस का समर्थन कर दिया। सन 1939 में इंग्लैण्ड के लेबर पार्टी के रहनुमा स्टेफोर्ड क्रिप्स जब भारत आया तब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तीन मुस्लिम नेताओं का नाम सुझाया था -नंबर एक में खान अब्दुल गफ्फार खान,दूसरे मौलान आज़ाद और तीसरे अब्दुल क्यूम अंसारी थे। इलाहाबाद में क्रिप्स मिशन की बैठक में क्यूम अंसारी ने घंटों हिन्दू-मुस्लिम एकता,मुसलमानों की स्वतंत्रता की लड़ाई में भूमिका पर बहस किया तथा पाकिस्तान नहीं बनाने की मांग की।

डिहरी से संबंध – स्वतंत्रता सेनानी अब्दुल क्यूम अंसारी का जन्म एक जुलाई 1905 को डिहरी हाई स्कूल के सटे अंसारी भवन (सूफ़िया मिस्कीन )में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा डिहरी में हुई। इसी हवेली से इन्होने भारत की आज़ादी की लड़ाई ताना-बाना बुना। 1924 में अंसारी साहब ने ‘हुश्न व इश्क ‘ तथा ‘ अल सल्लाह ‘ अखबार का प्रकाशन शुरू किया। पहला छापाखाना डिहरी में अंसारी साहब ने ही लगाया। इसी जगह से 1946 में इनकी पार्टी ने बिहार प्रोभिंसियल असेम्ब्ली में मुस्लिम लीग के खिलाफ छह सीट जीती थी।

पहली बार बिहार के मंत्री बने। 17 वर्षों तक विभिन्न मंत्री पद पर रहे। 18 जनवरी 1973 में इनकी मृत्यु डिहरी क्षेत्र के अमियावर (नासरीगंज ) में टूटे नहर का मुआयना करते समय हो गया।

मृत्यु के बाद की स्थिति – अंसारी साहब को दो पुत्र खालिद  अनवर अंसारी हसन निशात अंसारी है। खालिद साहब सन 1985 में डिहरी के विधायक बने और सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन अंसारी साहब के वैचारिक समानता की कमी की वजह से दूसरी बार खालिद अनवर अंसारी यह सीट हार गए। लेकिन अब्दुल क्यूम अंसारी के समर्थकों को अपनी ओर आकर्षित कर  पुनः 1990 में  मो ० इलियास हुसैन ने जीत हासिल कर ली। फिर यह सीट उनके परिवार को हाथ नहीं लगी।

किसने क्या दिया – अब्दुल क्यूम अंसारी समर्थकों को उम्मीद थी कि जीतने वाले क्यूम अंसारी साहब की तरह अपनी अवाम की समस्या का ख्याल रखेंगे। इसमें खुद अंसारी साहब के पुत्र खालिद साहब नाकाम साबित हुए। अंसारी साहब की हवेली खण्डहर हो गई। गृह रक्षा वाहिनी को दस रूपये वार्षिक लगान पर यह हवेली 99 वर्ष के लिए दे दी गई। लीज अवधि खत्म हो चुकी है। फिलवक्त इस हवेली की जमीन पर अवैध कब्जा भी धड़ल्ले से हो रहा है। प्रशासन भी मौन है। लेकिन इनके पुत्रों ने आगे की कोई पहल हवेली को लेकर नहीं की। अंसारी साहब की बहुत सी परती जमीन पुत्रों ने बेच दी। किसी ने भी इनके नाम पर कोई संस्था तक नहीं बनाया।

2005 में पटना से आकर अली अनवर ने डिहरी में अब्दुल क्यूम अंसारी साहब की जन्मशताब्दी मनाई। इन्होने कहा था कि मै पिछड़ी मुस्लिमों को अनुसूचित दर्जा दिलाने की लड़ाई लडूंगा। सांसद भी बने ,लेकिन लौट के फिर ना आये।  मो  इलियास हुसैन ने सेनानी अब्दुल क्यूम अंसारी की राष्ट्रीय योगदान को जीवित रखने की योजना बनाई। 2002 में करीब दो करोड़ की लागत से डिहरी शहर में नगर भवन बनवाने की योजना बनाई। 23 अक्टूबर 2003 में इसका उद्घाटन निवर्तमान मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने किया। इस उद्घाटन में खालिद अनवर अंसारी भी मौजूद थे। इस भवन में 2000 लोगो की बैठने की क्षमता है। 2004 में डिहरी शहर के कैनाल रोड का नाम  अब्दुल क्यूम अंसारी के नाम किया गया।

 

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