कर्पूरी के नाम पर पक्ष-विपक्ष आमने-सामने

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निशिकांत सिंह.

पटना. जननायक कर्पूरी ठाकुर के नाम पर बिहार में राजनीति गरमा गई है. पक्ष और विपक्ष के राजनीतिबाज आमने-सामने हो गए हैं. कर्पूरी जयंती  के नाम पर  हो रही राजनीति में राज्य के सत्तारूढ़ दल और मुख्य विपक्षी दल एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. भाजपा राजद सुप्रीमो पर आरोप लगा रही है कि कर्पूरी ठाकुर के जीवन काल में लालू प्रसाद हमेशा उन्हें अपमानित करते रहें है जबकि राजद द्वारा कर्पूरी ठाकुर के असली वारिस होने का दावा किया जा रहा है. राजद का आरोप है कि कर्पूरी जयंती के बहाने भाजपा भ्रम फैला रहीं है.

24 जनवरी को जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती है. उनकी जयंती राज्य के सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां मना रहीं है. भारतीय जनता पार्टी के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ की तरफ से यह समारोह पहले श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आयोजित किया गया था. लेकिन हॉल को सत्तारूढ़ दल जदयू को एलॉट कर दिया गया जिसको लोकर भाजपा ने पटना उच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया. पटना उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज  कर दी.

भाजपा का आरोप है कि राज्य के अधिकारी सरकार के दबाव में पहले से भारतीय जनता पार्टी के नाम पर ऐलॉट हॉल को जदयू को दे दिया. ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय ने कहा कि ऐसा भाजपा के साथ सरकार पहली बार नहीं कर रहीं है. बल्कि बार बार करते आ रहीं है. जानबुझ कर उसी दिन प्रोग्राम रख दिया जाता है ताकि भाजपा अपना बड़ा सम्मेलन न कर सके.

राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे ने कहा कि भाजपा जानबुझकर ढ़ोग कर रहीं है. कर्पूरी ठाकुर को सत्ता पर से बेदखल करने वाली पार्टी अब उनका जयंती समारोह मना रहीं है.यह ढ़ोंग नहीं तो औऱ क्या है. राजद के आरोप पर भाजपा के प्रदेश कार्यालय प्रभारी तथा 1974 के आंदोलन में  सक्रिय रहे ललिता सिंह यादव ने कहा कि पहले वे अपने आका राजद सुप्रीमो से पूछे, जिंदगी भर कर्पूरी ठाकुर को पलटू ठाकुर के नाम से पुकारने वाले लालू प्रसाद कब से जननायक के विचारों को मानने लगे. राजद जदयू दोस्ती से पूर्व कई बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कहते रहे है कि जिंदगी भर कर्पूरी जी को अपमानित करने वाले लालू प्रसाद उनका वारिस बनने चले है.

दरअसल अतिपिछड़े की राजनीति जब से वोटबैंक के हिसाब से महत्वपूर्ण हो गई है जब से कर्पूरी ठाकुर सभी के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं.इसलिए कर्पूरी ठाकुर जयंती समारोह की होड़ स्वाभाविक भी है. कर्पूरीजी ने पिछड़ावाद की जो फसल लगाई उसे अब काटने की होड़ है.

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