चावल घोटाला-2, धान खरीद और मिलिंग में मिलीभगत का खेल

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राकेश प्रवीर.

पटना। बिहार में धान खरीद का खेल भी नायाब है। यहां धान की खरीद पैक्स, व्यापार मंडल और बिहार राज्य खाद्य निगम के क्रय केंद्रों में होती है। वर्ष 2014-15 के लिए राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,360 रुपये प्रति क्विंटल और उसके साथ 300 रुपये प्रति क्विंटल बोनस यानी 1,660रुपये प्रति क्विंटल की दर निर्धारित किया था। अब किसानों को पहली दिक्कत आती है अपनी फसल को खलिहान से पैक्स और क्रय केंद्र तक पहुंचाने में। अक्सर देखा गया है कि किसान ट्रैक्टर या किसी दूसरे साधन से धान उन केंद्रों तक ले जातेे हैं, लेकिन अगर वहां सेटिंग नहीं है, तो उनकी फसल गुणवत्ता या फिर किसी और आधार पर दो-तीन दिनों तक रोक दी जाती है। नतीजा यह होता है कि किसानों को वाहन के किराये के रूप में ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं। बेचारे किसान इस तबाही से बचने के लिए सेटिंग का सहारा लेते हैं और अपनी फसल औने-पौने दामों पर बिचैलियों को बेच देते हैं। जो किसान अपने बलबूते पर धान बेचने में सफल हो जाते हैं, उन्हें भुगतान को लेकर कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और फिर सेटिंग तकनीक से ही उनका काम हो पाता है।

इस साल यानी 2015-16 के लिए सरकार ने प्रति क्विंटल ग्रेड-1 धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1410 रुपये तय किया है। बोनस की घोषणा अब तक नहीं की गई है। पिछले साल प्रति क्विंटल धान की न्यूनतम कीमत 1360 रुपये निर्धारित होने के बावजूद किसानों को 300 रुपये बोनस दिया गया। इस साल धान की न्यूनतम कीमत 1410 रुपये निर्धारित किया गया है। अगर बोनस की घोषणा नहीं होती है तो किसान पिछले साल से ढाई सौ रुपये का घाटा उठा कर अपना धान सरकारी क्रय केन्द्रों पर लाने की जगह औने-पौने दाम पर बिचैलियों व बाहरी व्यापारियों को बेच देंगे। जबकि साल 2013-14 में भी किसानों को प्रति क्विंटल धान पर 250 रुपये बोनस देने की घोषणा की गई थी।

खरीदे गए धान की मिलिंग में भी फर्जीवाड़ा का खेल सामने आया है। घोटाले का असली खेल यहीं से षुरू होता है। सूबे की ऐसी राइस मिलों से सरकार मिलिंग के लिए अनुबंध करती है जिनकी मिलिंग की क्षमता काफी कम होती है। उन्हें कमीषन के आधार पर राज्य खाद्य निगम के अधिकारियों की मिलीभगत से अधिक मात्रा में धान दिए जाते हैं। नियमानुसार प्रति क्विंटल धान के एवज में 67 किलो चावल मिलों से लेने का प्रावधान है। जब चावल लौटाने की बारी आती है तो मिल तरह-तरह के बहाना बनाने लगते हैं। मसलन धान की गुणवत्ता काफी घटिया थी इसलिए प्रति क्विंटल धान से 60 किलो चावल ही निकला या फिर धान में नमी काफी थी इसलिए मिलों में लाने के बाद वजन कम हो गया। घोटाले का आलम यह है कि बीएफएससी के अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये का धान बेस गोदाम में सड़ा हुआ दिखा दिया जाता है और फिर बाद में उन्हें मिलों को औने-पौने दाम में बेच दिया जाता है। दरअसल तय लक्ष्य के अनुरूप धान की खरीद के लिए भंडारण क्षमता का यहां घोर अभाव है। राज्य खाद्य निगम के पास मात्र 5 लाख और पैक्स व व्यापार मंडल के पास 7.5 लाख मे. टन भंडारण की क्षमता है। सरकार का 30 लाख मे. टन धान खरीदने का लक्ष्य है। ऐसे में स्वाभाविक है कि अगर लक्ष्य का 70 से 80 प्रतिषत भी धान की खरीद होती है तो सरकार के पास उसके भंडारण की कोई व्यवस्था ही नहीं है। भंडारण क्षमता के अभाव में ही पिछले साल तय लक्ष्य से कम धान खरीद होने के बावजूद हजारों टन धान महीनों खुले में पड़े सड़ते रहे, जिससे चावल तैयार करने की गुणवत्ता प्रभावित हुई। दूसरी ओर घपले के लिए भी रिकॉर्ड में धान को खुले में रहने की वजह से सड़ा हुआ दिखाया जाता है। धान में नमी, धूल होने जैसे अनेक ऐसे हथकंडे हैं जिनके जरिए किसानों की हकमारी की जाती है।

घोटाले को लेकर जदयू का कहना है कि केंद्र सरकार को बिहार के किसानों की कोई चिंता नहीं है. पहले तो वह धान खरीद के समय को लेकर राजनीति करती है और अब बोनस को लेकर गलतबयानी कर रही है। पार्टी प्रवक्ता नीरज सिंह कहते हैं कि मोदी सरकार ने तो किसानों को बर्बाद करने की कसम खा ली है। भूमि अधिग्रहण बिल इसका ताजा उदाहरण है। जहां तक धान खरीद का सवाल है, तो शुरू से ही केंद्र सरकार की नीयत साफ नहीं है। नरेंद्र मोदी के मंत्री गलतबयानी करके किसानों को गुमराह कर रहे हैं, लेकिन नीतीश सरकार किसी भी हाल में किसानों का अहित नहीं होने देगी. दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी भाजपा इसे लेकर काफी आक्रामक है। पिछले विधानसभा सत्र में भी भाजपा ने यह मामला जोर-शोर से उठाया और जांच की मांग की। भाजपा को लगता है कि किसानों का समर्थन हासिल करने के लिए धान खरीद के मामले को जिंदा रखना और उसे जांच के दायरे में पहुंचाना जरूरी है। इसीलिए भाजपा की ओर से इस साल भी किसानों को प्रति क्ंिवंटल कम से कम 300 रुपये बोनस देने की मांग की जा रही है। इसके साथ ही भाजपा चावल मिलों द्वारा दो करोड़ रुपये मूल्य से ज्यादा के बोरों और करीब 670 करोड़ रुपये मूल्य का चावल वापस नहीं किए जाने को लेकर भी हमलावर बनी हुई है। भाजपा की मांग है कि सरकार बिना किसी देरी के उच्चस्तरीय जांच करा कर चावल मिलों से बकाये बोरों और चावलों की वसूली करें।

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