आनन्द मोहन:आगामी चुनावों को कितना करेंगें प्रभावित ?

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Anand Mohan

प्रमोद दत्त.
पटना.1994 वैशाली लोकसभा के उपचुनाव में जीत के बाद 1995 विधान सभा के आमचुनाव में आनन्द मोहन अपनी राजनीतिक लोकप्रियता के शिखर पर थे। इस चुनाव में आनन्द मोहन की पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी (बिपीपा) को तत्कालीन लालू-सरकार का विकल्प तक बताया जाने लगा था। लोकप्रियता के शीर्ष पर होने के बावजूद बिपीपा के कुल 259 उम्मीदवारों( अविभाजित बिहार की 324 सीट) में 249 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।मात्र 3 प्रतिशत वोट पाकर बिपीपा के सिर्फ दो उम्मीदवार जीते।आनन्द मोहन तीन सीटों से चुनाव लड़े और तीनों सीटों से वे हारे।ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आगामी लोकसभा व विधान सभा चुनावों में आनन्द मोहन रिहाई प्रकरण का कितना प्रभाव पड़ेगा?
लालू-विरोध की राजनीति से उभरने वाले आनन्द मोहन आज लालू प्रसाद की छत्रछाया में राजनीति कर रहे हैं। उनका पुत्र चेतन आनन्द शिवहर से राजद के विधायक हैं।पत्नी लवली आनन्द भी सहरसा से राजद के टिकट पर 2020 का चुनाव लड़ी लेकिन चुनाव हार गई।1995 विधान सभा चुनाव में बिपीपा के फ्लाप होने के बाद 1996 लोकसभा चुनाव में आनन्द मोहन शिवहर से भाजपा के समर्थन व समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते।अगले ही चुनाव 1998 में वे लालू प्रसाद के समर्थन पर बघेला की पार्टी से चुनाव लड़े और जीते।
2004 लोकसभा चुनाव के पूर्व आनन्द मोहन ने अपनी पार्टी बिपीपा का कांग्रेस में विलय कर दिया।इसी बीच गोपालगंज डीएम हत्याकांड में आनन्द मोहन को सजा मिली और वे जेल चले गए।आनन्द मोहन लगातार जेल में रहे और इधर उनकी पत्नी लवली आनन्द ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला।2009 लोकसभा व 2010 विधान सभा का चुनाव लवली आनन्द कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ी और दोनो चुनाव हार गई।2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट नहीं मिला तो वह सपा के टिकट पर शिवहर से चुनाव लड़ी और हार गई।फिर 2015 विधानसभा चुनाव में एनडीए घटक हम के टिकट पर शिवहर से चुनाव लड़ी और हार गई।इसके बाद 2020 के विधान सभा चुनाव से लगातार यह परिवार राजद से जुड़ा हुआ है।
लगातार पार्टी बदलते रहने के कारण आनन्द मोहन की विश्वसनीयता घटी और नतीजतन लगातार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। प्रेक्षकों का मानना है कि जो आनन्द मोहन का परिवार अपनी सीट बचाने के जद्दोजहद में है वे दूसरे को या कहें महागठबंधन के उम्मीदवार को कितना लाभ दिला पाएंगें, कहना मुश्किल है।1995 के दौरान आनन्द मोहन में वोट ट्रांसफर करने की जो क्षमता थी वह समय के साथ घटती गई है।1995 में आनन्द मोहन सवर्णो के नेता बने थे आज राजपूत नेता से अधिक दायरा नहीं है।राजपूतों में भी आनन्द मोहन के कहने पर वोट ट्रांसफर वहीं होगा जहां महागठबंधन के राजपूत उम्मीदवार होंगें।महागठबंधन के गैर-राजपूत उम्मीदवारों के पक्ष में वोट ट्रांसफर कराने की क्षमता पर सवालिया निशान लगा है।

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