लालू काल:घोटालेबाज को कैसे फंसाया..डराया..फिर बचाया

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Lalu Kaal

प्रमोद दत्त.
             पटना.लालू-काल का एक और किस्सा।100 करोड़ का वन घोटाला। तब झारखंड बिहार का हिस्सा था।मामला 1995 का जब लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे।घोटाला तो 1981-91 के बीच का था लेकिन घोटाले का रहस्योदघाटन 1993 में लालू-सरकार के कार्यकाल में हुआ।लंबी छानबीन के बाद 22नवंबर 1994 से 30 जून 1995 के बीच निगरानी ब्यूरो में 18 प्राथमिकियां दर्ज की गई थी।13 अधिकारी-कर्मचारी और 3 आपूर्तिकर्ता गिरफ्तार भी किए गए।
सूत्रों के अनुसार मामले को सीबीआई को देने की बात हुई।तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने इसका अनुमोदन भी कर दिया।परन्तु मामले को दबा दिया गया।इतना ही नहीं निगरानी विभाग के शीर्ष अधिकारियों द्वारा दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने की अनुशंसाओं को मुख्यमंत्री स्तर से नजरअंदाज किया जाता रहा। 16 अगस्त को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद द्वारा उच्चाधिकारियों की बैठक में तय किया गया कि एक माह तक निगरानी विभाग किसी की गिरफ्तारी नहीं करे और संबंधित पदाधिकारियों-कर्मचारियों को काम पर लौटने और एक निश्चित अवधि में सफाई (स्पष्टीकरण) देने को कहा जाए।
निगरानी के तत्कालीन एसपी कमलेश कुमार ने तब निगरानी के आईजी व डीजी को भेजे अपने नोट में जो कुछ लिखा वह सरकार के मुखिया को कटघरे में खड़ा कर दिया था।उन्होंने लिखा था—“राज्य सरकार को स्थगन आदेश जारी करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।ऐसा अधिकार सिर्फ अदालत को है। गिरफ्तारी की डर से वन विभाग के दोषी अफसर फरार थे।अब उन्हें सरकार ने काम पर लौट आने के लिए कहा है।पर बिना सक्षम अदालत से जमानत लिए उन्हें काम पर लौट आने को कहना और उनसे काम लेना न्यायिक प्रक्रिया की खुली अवहेलना है।“
प्रेक्षकों का मानना है कि बड़ी चालाकी से घोटालेबाजों पर प्राथमिकी दर्ज कर,सीबीआई के नाम पर डराया गया।फिर सभी को बचाने में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी लालू-सरकार ने।

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