चारा घोटाला:लालू की शुरूआती पैंतरेबाजी

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प्रमोद दत्त.
पटना.बिहार में वर्ष 1996 में जब चारा घोटाले का खुलासा हुआ था तब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे और घोटाले को दबाने- भटकाने की कोशिश में उन्होंने जबरदस्त पैंतरेबाजी की थी।लेकिन पटना हाईकोर्ट और सीबाआई के आगे उनकी एक नहीं चली।
घोटाला के उजागर होते ही घोटाले की जांच के लिए लालू प्रसाद ने एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था।पटना हाईकोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश एस अली आयोग के अध्यक्ष बनाए गए थे।आयोग को 6 माह के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया था।लेकिन पटना हाईकोर्ट ने इस पर पानी फेर दिया।11 मार्च 96 को चारा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का फैसला सुनाते हुए पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार द्वारा गठित जांच आयोग पर आपत्ति दर्ज की और इस जांच कार्य को स्थगित कर दिया।
fodder scam   पटना हाईकोर्ट के इस महत्वपूर्ण फैसले में कहा गया कि राज्य सरकार की ओर से दावा किया गया है कि यह रिट याचिका समय से पहले दायर की गई है।क्योंकि सरकार द्वारा इस विषय में जांच अभियान चलाया गया है।जांच अभियान के पूरा होने के पश्चात ही अगर किसी को असंतोष होता तो इसके विरूद्ध न्यायालय में जाना चाहिए था।राज्य सरकार के इस तर्क पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि सरकारी राशि के इस गबन में संलग्न माफिया को भारी राजनैतिक व प्रशासनिक समर्थन प्राप्त है।अत: यदि पुलिस द्वारा की जा रही छानबीन और इसके नतीजे का इंतजार किया जाता तो इसके साक्ष्यों में हेराफेरी और गायब हो जाने का स्पष्ट खतरा था।
उल्लेखनीय है कि जब करोड़ों रूपए के गबन व अवैध निकासी का खुलासा हो रहा था तब लालू प्रसाद ने फरवरी 96 में सभी कोषागारों में कम्प्यूटर लगाने और प्रमुख विभागों के लेखा की जांच कराने की घोषणा की।जानकारी देते हुए लालू प्रसाद ने पत्रकारों को बताया था कि मुख्य सचिव को कहा गया है कि जिस विभाग में ढिलाई बरती गई है उसे कड़ी सजा दी जाए।उन्होंने कहा था कि समय सीमा के अंदर सभी दोषी के खिलाफ मुकदमा,कुर्की-जब्ती, बर्खास्तगी की कार्रवाई की जाएगी।विपक्ष ने तब घोटाला उजागर होने के बाद इसे लालू प्रसाद की पैंतरेबाजी बताया था।क्योंकि लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री बनने के लगभग एक वर्ष बाद ही 1991 में बिहार विधान सभा की आंतरिक संसाधन समिति ने अनुशंसा की थी कि राज्य के सभी कोषागारों को कम्प्यूटराइज किया जाए ताकि प्रारंभिक लेखा प्राप्त हो सके।साथ ही यह भी अनुशंसा की गई थी कि वित विभाग में बजट शाखा के प्रभारी के रूप में किसी प्रख्यात अर्थशास्त्री या सीए को रखा जाए।समिति की अनुशंसा के अनुरूप 1991-92 में कार्रवाई करने के बजाए लालू प्रसाद ने 1996 में तब पहल की जब चारा घोटाला का विशालकाय रूप सामने आने लगा।
तब सत्ता के नशे में चूर लालू प्रसाद को पूरा भरोसा था कि वे अपनी राजनीतिक ताकत के बलबूते चारा घोटाले की जांच का रूख मोड़ देंगें।तभी तो 10 दिसम्बर 96 को पत्रकारों ने जब उनसे जेल जाने की संभावना से जुड़ा सवाल किया तो उन्होंने कहा था- “ हमको कौन जेल भेजेगा….जेल तो मेरा दुश्मन जाएगा । “ लालू प्रसाद ने सफाई देते हुए कहा था कि पशुपालन घोटाले के सिलसिले में उनसे संबंधित झूठी खबरें छापी जा रही है।इस मामले में बिल्कूल साफ हैं।अगर उनका नाम आता है तो इसका सीधा मतलब है कि घोटाले की गलत जांच हो रही है।उन्होंने सीबीआई पर आरोप लगाया कि सीबीआई घोटाले से संबंधित झूठी बातें अखबारों को पहुंचा रहा है।

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