अक्षय तृतीया विशेष:मोकामा में भगवान परशुराम जन्मोत्सव

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अनमोल कुमार.

पटना.बिहार राज्य के पटना जिला अंतर्गत मोकामा में अवस्थित एकमात्र भगवान परशुराम का मंदिर है। यहां के लोग भगवान परशुराम को इष्टदेव, ग्राम देवता, कुलदेवता और आराध्य देवता के रूप में श्रद्धा से पूजा अर्चना अनुष्ठान, मन्नत, वैवाहिक रीति रिवाज एवं सभी शुभ कार्य भगवान परशुराम के पूजन उत्सव के बाद ही करते हैं। इस वर्ष वैशाख शुक्ल पक्ष अक्षय के तृतीया को प्रत्येक वर्ष की भांति सादगी से परशुराम जन्मोत्सव कोरोना गाइड लाइन के अनुसार मनाया जा रहा है।

मान्यता है कि यज्ञ हवन अनुष्ठान और पूजन से इस महामारी पर नियंत्रण प्रारंभ हो जाएगी। 14 मई को 1 बजकर 30 मिनट तक त्रयोदशी का योग है। पूर्वजों के अनुसार भगवान परशुराम मोकामा के तपोवन में जब ध्यान मग्न थे तभी जनकपुर से सीता स्वयंवर के धनुष टंकण की आवाज सुनकर क्रोधित होकर जनकपुर पहुंचे। जहां राम लक्ष्मण के साथ विवाद का संवाद चला। बाद में श्रीराम के हस्तक्षेप और मनोहारी मधुर वार्ता ने भगवान परशुराम को शांत होने पर विवश कर दिया। जब भगवान परशुराम ध्यान मग्न हुए तो उन्होंने श्रीराम को भगवान विष्णु के 11 अवतार के रूप में देखा। भगवान परशुराम स्वयं भगवान विष्णु के 10 वें अवतार हैं।

कहा जाता है कि भगवान परशुराम का तपस्या स्थली होने के कारण इस जगह का नाम मुकाम पड़ा जो आगे चलकर मोकामा के रूप में जाना गया। यहां भगवान परशुराम  का पावन मंदिर अवस्थित है। मान्यता के बारे में बताया जाता है कि यहां पास के गांव छत्रपुरा का नाम पूर्व में मीठापुर था। यहां के नवाब मिट्ठू मियां थे। एक दिन उनका एक कर्मचारी हाथी के लिए पीपल का डाल तोड़ने आया। यहां पीपल का पेड़ नष्ट करना निषेध माना जाता है। मना करने के बाद भी उसने जबरन पीपल का डाल तोड़ना शुरू किया डाली जमीन पर गिरते ही जमीन पर रोपित हो जाता था थक हार कर वह कर्मचारी वापस चला गया। एक बार जब भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जा रहा था तो नवाब मिट्ठू मियां वहां पहुंचे कि यह सब अंधविश्वास और ढकोसला है। उन्होंने कहा कि यहां के पुजारी को यहां की सत्यता सिद्ध करनी होगी।

पुजारी विवश होकर तैयार हो गया। गौ हत्या हिंदू धर्म में पाप है परंतु उस नवाब ने अपने जल्लाद द्वारा एक गाय का गर्दन कटवा दिया और उसे जीवित करने के लिए पुजारी से कहा। पुजारी ने गाय के सर को धड़ से जोर कर लाल रंग के वस्त्र से ढक दिया और भगवान परशुराम की स्तुति करने लगा। देखते ही देखते गाय पुनः जीवित होकर खड़ी हो गयी। इस घटना के बाद पुजारी ने उस स्थान से जाने का मन बना लिया। लोगों के मिन्नत करने के बाद उन्होंने कहा कि अब यहां याचना नहीं जांचना की प्रक्रिया शुरू हो गया है जो समाज के लिए हितकर नहीं है इसलिए मैं नहीं रुकूंगा। लोगों ने कहा कि आपके जाने के बाद कैसे पता चलेगा कि भगवान परशुराम का अस्तित्व हमारे बीच है ? उन्होंने कहा कि यह गिरा हुआ पीपल का वृक्ष जब तक हरा भरा रहेगा भगवान परशुराम का बास यहां रहेगा। आज भी वह पीपल का वृक्ष हरा भरा है।

परशुराम एक जीवनी                               राजा प्रसेनजीत की पुत्री रेणुका के गर्भ से महर्षि जमदग्नि के पुत्र परशुराम का नाम मुख्य रूप से राम था और इनकी गणना विष्णु के 10  अवतार के रूप में होती है। इन्हें भगवान शिव ने सुप्रसिद्ध कुल्हाड़ी (फरसा) दी थी। जिसके कारण इनका नाम परशुराम के नाम से विख्यात हुआ। भिर्गु वंशी होने के कारण ये भार्गव और जमदग्नि के पुत्र होने से जामदबं कहलाए। दुर्वासा ऋषि की भांति परशुराम भी क्रोधी स्वभाव के लिए जाने जाते थे। पिता की आज्ञा पर इन्होंने अपनी माता का सर काट दिया और पिता को समर्पित किया। जब पिताजी प्रसन्न हुए तो पिता ने परशुराम से वर मांगने के लिए कहा परशुराम ने पिता से मां को पुनर्जीवित करने का वरदान मांगा। क्षत्रिय और भार्गव में पीढ़ियों से शत्रुता चली आ रही थी। एक बार जब परशुराम अनुपस्थित थे तो है हैय राजा कृत्य वीर्य ने जमदग्नि के आश्रम को जला डाला। कामधेनु गाय छीन ली और इसी जंग लगने का बंद कर दिया। इसका बदला परशुराम ने दुष्ट क्षत्रियों से 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने का कार्य को मूर्त रूप दिया।

बाद में भगवान परशुराम श्रीराम की प्रेरणा से शांतिप्रिय और रचनात्मक बन गए एक बार भगवान परशुराम समुद्र तट पर नारियल का वृक्ष लगाने का एक सामुदायिक समारोह आयोजित संपन्न किया। उन्होंने जनसमूह को सामने ज्वार से गरजते समुद्र की तरफ इशारा करते हुए गंभीर ध्वनि में कहा कि समुद्र हमें सिखाता है कि पसंद अशाली होते हुए पुरम उत्कर्ष के समय भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता। उन्होंने कहा कि श्रीराम ने मुझे पूर्व की गलती का एहसास कराते हुए अन्याय प्रतिकार मनुष्य का धर्म है। परंतु उसकी भी एक शास्त्रीय मर्यादा है राम जैसे गुरु कृपा से आज मैं शांत चित्त होकर वृक्षारोपण कार्यक्रम में संलग्न हूं। उनकी गंभीर ध्वनि सह सिकंदरा में आज भी गूंजती है।

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