गर्दिश में है भारतीय प्रेस की आजादी

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राजीव रंजन नाग.

नई दिल्ली.3 मई को प्रेस स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांतों का जश्न मनाने के साथ-साथ दुनिया भर में प्रेस की आजादी का मूल्यांकन करने हेतु हर साल विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का मकसद यह भी है कि दुनियाभर में स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करना और उसकी रक्षा करना। प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि उस देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है।

भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। इथोपिया में इस हफ्ते चल रहे विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रमों में ‘‘फेक न्यूज’’ और ‘‘गलत सूचना’’ पर जोर शोर से चर्चा चल रही है। देश में सुधारों के तहत दर्जनों पत्रकारों की जेल से रिहाई के बाद प्रेस स्वतंत्रता पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य प्रेस स्वतंत्रता के मूल सिद्धांतों का जश्न मनाने के साथ दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति का आंकलन करना। इसके साथ ही हमलों से मीडिया की रक्षा करना और उन पत्रकारों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिन्होंने कर्तव्य के चलते अपना जीवन खो दिया है। हर साल प्रेस फ्रीडम डे की थीम अलग होती है। पत्रकार और मीडियाकर्मी हमें सूचित करके निर्णय लेने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण कड़ी हैं।

साल 1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए एक छोटी सी शुरुआत की थी। तीन मई  को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों से संबंधित एक बयान जारी किया था जिसे “डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक” के नाम से जाना जाता है। उसकी दूसरी जयंती के अवसर पर 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का आयोजन किया। तब से हर साल 3 मई को यह दिन मनाया जाता है। यूनेस्को द्वारा वर्ष 1997 से हर साल 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज भी दिया जाता है। यह पुरस्कार उस व्यक्ति अथवा संस्थान को दिया जाता है जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उल्लेखनीय कार्य किया हो।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे की थीम (2020) इस साल (Journalism Without Fear or Favor)  बिना डर या पक्षपात की पत्रकारिता। जबकि 2019 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की थीम ‘मीडिया फ़ॉर डेमोक्रेसी: टाइम्स ऑफ डिसिनफॉर्मेशन’ में पत्रकारिता और चुनाव है। इस थीम का मुख्य उद्देश्य चुनावों में मीडिया के सामने वर्तमान चुनौतियों के साथ-साथ शांति और सुलह प्रक्रियाओं के समर्थन करना।

भारत सहित कई देशों से पत्रकारों के ऊपर हुए अत्याचारों की खबर आती रहती हैं। इसके अलावा मीडिया हाउस के एडिटर, प्रकाशकों और पत्रकारों को डराया जाता है। इन्हीं सभी चीजों के देखते हुए हर साल प्रेस की आजादी का दिन बनाया जाता है। कश्मीर से लेकर अंडमान-निकोबार तक पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज हो रहे क़ानूनी मामलों की लगातार आ रही ख़बरों और अंतरराष्ट्रीय प्रेस इंडेक्स में लगातार गिरती रैंकिंग के बीच तीन मई को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ का यह मौक़ा भारत के लिए ख़ास उम्मीद बांधता नज़र नहीं आता।

कश्मीर में पत्रकारों के ख़िलाफ़ यूएपीए के तहत दर्ज मामलों की बात हो या छत्तीसगढ़ में एफ़आइआर की चेतावनी के साथ-साथ प्रकाशित ख़बर पर स्पष्टीकरण मांगते सरकारी नोटिस या फिर अंडमान में प्रशासन से सवाल पूछते एक ट्वीट की वजह से गिरफ़्तार हुए पत्रकार का मामला- ‘प्रशासन की छवि को तथाकथित तौर पर नुक़सान पहुँचाने’ की वजह से पत्रकारों के ख़िलाफ़ दर्ज हो रहे मामलों का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.विश्व प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में भारत 142 वें स्थान पर है।

प्रेस स्वतंत्रता के मुद्दे पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर’ (आरएसएफ) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार विश्व प्रेस स्वतंत्रता इंडेक्स में भारत 142वें स्थान पर खिसक गया है। 2020 की यह वर्तमान भारतीय रैंकिंग पिछले साल से भी दो स्थान नीचे है. अपनी रिपोर्ट में भारत पर टिप्पणी लिखते हुए आरएसएफ ने कहा कि पत्रकारों के ख़िलाफ़ लगातार दर्ज हो रहे क़ानूनी मामले भारत की गिरती रैंकिंग की एक बड़ी वजह है। भारत सहित कई देशों से पत्रकारों के ऊपर हुए अत्याचारों की खबर आती रहती हैं। इसके अलावा मीडिया हाउस के एडिटर, प्रकाशकों और पत्रकारों को डराया जाता है। इन्हीं सभी चीजों के देखते हुए हर साल प्रेस की आजादी का दिन बनाया जाता है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद-19 (1) A  में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है।

भारत में अग्रणी पत्रकार संगठनों में इँडियन फैडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट (IFWJ) का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वर्षों से मेहनतकश कामगार पत्रकारों की समस्याओं पर देश के अँदर और बाहर अनेक सरकारी और गैर सरकारी फोरम पर इसने पत्रकार हितों से जुड़े मुद्दे उठायें   हैं। धरना ,प्रर्दशन,सेमिनार,सम्मेलन और समान विचारधारा वाले पत्रकार संगठनों के साथ कामगार पत्रकारों की बेहतरी के लिए काम करने में IFWJ का नाम सम्मान के साथ  लिया जाता ।

बहरहाल, ऐसे समय में जब आज हम “विश्व प्रेस फ्रीडम डे” मना रहे हैं तब भारत की पत्रकारिता को और निर्भीक और निष्पत्क्ष बनाये जाने की जरुरत है। मौजूदा दौर में इसकी आवश्यकता तब और बढ़ जाती जब बड़ी संख्या में हमारे साथी पत्रकारों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाये जाने की मीडिया घरानों की प्रवृति तेज हुई है। मीडिया  घरानों की निरंकुशता और उनके एकतरफा फैसले के खिलाफ हम पत्रकार संगठनों को और सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने की आवश्यकता है। दुनिया में भारत में लोकतंत्र का जड़े भले  बहुत गहरी और दूरृ-दूर तक फैलीं हैं इसके बावजूद देश का प्रधान मंत्री बीते छ: साल से मीडिया के सामने आने से परहेज करता रहा है। हमें सवाल पूछने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। यह प्रवृति लोकतंत्र को कमजोर करता है। मीडिया मालिकों को नजराना देकर हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता के मूल सिद्धांत पर चलने से रोकने के नायाब तरीके आपनाने की नापाक कोशिशें तेज हुई हैं । यह किसी भी संसदीय प्रणाली पर आधारित लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है। संवैधानिक संस्थानों पर सरकारों का अनावश्यक दखल इन्हें कमजोर कर रहा है। बहरहाल,नागरिक समाज में हमें अपनी विश्वनीयता और मजबूत करनी होगी वर्ना लोकतंत्र का सबसे वाइब्रेंट संस्था पर से लोगों का भरोसा खत्म हो जाएगा“विश्व प्रेस प्रीडम डे” पर जान गंवाने वाले जाबांज पत्रकारों को नमन। साथी पत्रकारों को ढेर सारी शुभकामनायें..। (लेखक पत्रकार संगठन IFWJ  के दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष हैं)

 

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