वेदना का मैसेज गलत गया,गुहार को प्रहार समझा गया-पप्पू सिंह

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बिहार की बदली राजनीतिक परिस्थितियों में भाजपा के पूर्व सांसद(पूर्णिया) पप्पू सिंह उर्फ उदय सिंह अपने कार्यकर्ताओं से घिरे थे.क्षेत्र के प्रमुख कार्यकर्ताओं के विभिन्न प्रकार की जिज्ञासाओं को शांत कर रहे थे.अभी अभी वे एनडीए सरकार के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार को बधाई देकर लौटे थे.इसी व्यस्त माहौल में उनके पटना स्थित आवास पर संपादक,प्रमोद दत्त की उनसे बातचीत हुई.प्रस्तुत है बातचीत का संक्षिप्त अंश..

आदर्शन- कभी आपने नीतीश सरकार के खिलाफ अपनी वेदना को सार्वजनिक रूप से प्रकट किया था.

-मैनें जो “वेदना प्रदर्शन” किया था-उस माहौल में मैं जो मैसेज देना चाहता था,वह कहीं न कहीं लुप्त हो गया और दूसरा मैसेज चला गया.मैसेज यह चला गया कि मैं नीतीश कुमार का विरोध कर रहा हूं.जबकि उस रैली-प्रदर्शन का नारा था,जो लगाए गए बैनरों से भी स्पष्ट था- दो नेक नेता,हम सबकी शान- फिर ऐसा क्यों,सब हैं परेशान.

आदर्शन-लेकिन यह साफ था कि तब एनडीए-2 की सरकार थी और कामकाज के मुद्दे पर सबसे पहला मुखर विरोध आपने ही किया था.

-यही मैं स्पष्ट कर रहा हूं.मेरा मैसेज था कि आपलोगों पर गर्व है पर गांव गांव लोग परेशान हैं.वह विरोध-प्रदर्शन नहीं बल्कि एक गुहार थी कि गांवों में,जमीन पर विकास का नतीजा भी देखें.नौकरशाह की करतूतों पर लगाम लगें.गुहार यह थी कि आंखे खोलें और गांवों की वास्तविकता को जानें.

आदर्शन-लेकिन संदेश तो उल्टा चला गया.जिसका असर भी बाद के चुनाव पर पड़ा.

-देखिए.अगर अपने दल की भी सरकार है तो जरूरत पड़ने पर आईना तो दिखाना ही होगा.मैंने कभी नहीं कहा कि नीतीशजी कुशल नेता नहीं हैं या वे क्षमतावान नहीं हैं.मैंने सिर्फ आईना दिखाया था.उसी रैली में मैंने शराबबंदी और भ्रष्टाचार पर अंकुश की भी मांग की थी.जिसे नीतीश जी ने माना.बिहार में शराबबंदी कानून लागू हुआ.

आदर्शन- आपका कहना है कि जो आईना आपने दिखाया- सरकार से गुहार लगाई उसे प्रहार प्रचारित किया गया.

-यह मीडिया का नजरिया है.मैं तो मानता हूं कि जनता अगर तकलीफ में है तो उनका जनप्रतिनिधि होने के नाते उनकी परेशानियों को सरकार के सामने रखूं.इस फर्ज को नहीं पूरा करता हूं तो लानत है ऐसे एमपी या जनप्रतिनिधि होने पर.

आदर्शन-बदली परिस्थितियों में बिहार के विकास का भविष्य कैसा दिख रहा है.

-नीतीशजी सैद्धान्तिक रूप से एक ईमानदार व्यक्ति हैं.2013 में जब भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को पीएम उम्मीदवार घोषित किया तो उन्होने धारणा बना ली कि भाजपा व्यवस्था,सोच व आचरण में बदलाव लाएगी.इस संशय के कारण और हमलोगों के यह कहने पर भी कि यह बिहार के हित में नहीं है, इसके बावजूद हमसे अलग हो गए.लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीशजी के उस निर्णय को जनता ने नकार दिया.फलस्वरूप अपने स्वभाव के विपरीत उन्होंने लालूजी से हाथ मिलाया और 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सफलता भी मिली.लेकिन शीघ्र ही उन्हें यह भी अहसास हो गया कि राजद के पास विकास का नजरिया नहीं है जो भाजपा के पास है.अब परिस्थितियां बदली है.केन्द्र और राज्य में एनडीए की सरकार है.स्वाभाविक है कि विकास की गति तेज होगी.

आदर्शन-नीतीशजी के ह्रदय परिवर्तन का मुख्य कारण क्या मानते हैं.

-एक तो जब इन्होंने मोदी-सरकार के तीन वर्षों का कार्यकाल देखा तो इनके मन के सारे संशय दूर हुए.दूसरा महागठबंधन सरकार चलाने के दौरान उन्हें अहसास होने लगा कि लालूजी के साथ जाने का उनका फैसला गलत हो गया.जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने लड़ाई छेड़ी थी उसी मामले में वे दोराहे पर खड़े हो गए.विधानसभा का सत्र करीब था और उन्हें भ्रष्टाचार पर जवाब देना था.ऐसी स्थिति में नीतीशजी ने बड़ा और बिहार के हित में फैसला लिया.

आदर्शन-लेकिन इससे नीतीशजी की छवि पलटीमार की भी तो बन गई.

-देखिए,इस फैसले को ब्लैक एंड व्हाईट में नहीं देखा जाना चाहिए और न ही पलटीमार के रूप में समझना चाहिए.नीतीशजी ने साहस का परिचय दिया है.2013 की गलतफहमी दूर होते ही उन्होंने घर वापसी की है.भाजपा भी जोड़ने में विश्वास करती है.जो भी हुआ है बिहार के हित में हुआ है.जिन लोगों के बीच नई गलतफहमी बनी है वह भी दूर हो जाएगी जब बिहार विकास की पटरी पर दौड़ता नजर आने लगेगा.

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