खत्म हो सकती है मंत्री सहित कई एमएलसी की सदस्यता

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प्रमोद दत्त.

पटना. नीतीश सरकार के एक मंत्री सहित कई विधायकों(विधान परिषद) की सदस्यता, टर्म पूरा होने से पहले समाप्त हो सकती है.मनोनयन कोटे से विधान परिषद के सदस्य बने इन सदस्यों के “मनोनयन” को संविधान के खिलाफ बताते हुए पटना हाईकोर्ट में जो याचिका दाखिल की गई है वह सुनवाई के लिए लंबित है.

राज्य सरकार की अनुशंसा पर 22 मई14 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ने संविधान की धारा 171(3ई) के तहत 12 लोगों को विधान परिषद के लिए मनोनीत किया. मनोनीत किए 12 में एक राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह अभी नीतीश मंत्रिमंडल में जल संसाधन मंत्री हैं और सम्राट चौधरी जदयू से बाहर जीतनराम मांझी की पार्टी “हम” में शामिल हैं.शेष सभी रामलखन राम रमण,विजय कुमार मिश्रा,राणा गंगेश्वर सिंह,जावेद इकबाल अंसारी,शिवप्रसन्न यादव,संजय कुमार सिंह,प्रो.डा.रामवचन राय,रणवीर नंदन,ललन कुमार सर्राफ और रामचन्द्र भारती नीतीश कुमार के साथ हैं.

नागरिक अधिकार मंच के संयोजक शिवप्रकाश राय ने इस मनोनयन के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर रखा है जिसपर सुनवाई लंबित है. पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील दीनू कुमार के अनुसार विधान परिषद के मनोनयन कोटे से वैसे व्यक्तियों का ही मनोनयन होना चाहिए जिन्होंने कला,संस्कृति,साहित्य,साईंस,सहकारिता या समाजसेवा के क्षेत्र में विशिष्टता हासिल की हो. वे बताते हैं कि सभी 12 लोगों का विधान परिषद के लिए मनोनयन 6 वर्षों के लिए किया गया जबकि राज्यपाल को 12 मनोनयन के रिक्त (स्वीकृत) पदों के विरूद्ध हर दो वर्षों पर 4 – 4 को करना था. इन 12 लोगों के जो बायोडाटा दिए गए हैं, वे किस तारीख में किसको दिए गए – यह भी स्पष्ट नहीं है. आश्चर्य का विषय तो यह है कि सम्राट चौधरी और जावेद इकबाल अंसारी के जो बायोडाटा दिए गए हैं- दोनो बायोडाटा के शब्द-दर- शब्द मिलते हैं. अधिवक्ता दीनू कुमार के अनुसार, 12 लोगों का मनोनयन भारत के संविधान 173(ई), 171(5) एवं 172(2) के स्पष्टत: विपरीत है.इसके अलावा दो-दो वर्षों पर रिक्त होनेवाले पदों पर रिक्तता होते ही मनोनयन की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई और इकट्ठे 12 रिक्त पदों पर मनोनयन किया गया जो नियम के विपरीत है.

रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया 16 अप्रैल12 से ही प्रारंभ हो गई थी. कैबिनेट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को 22 अप्रैल12 को ही मनोनयन हेतु अनुशंसा भेजने के लिए अधिकृत कर दिया था. पटना हाईकोर्ट में दायर याचिका में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि दो वर्षों तक राजनीतिक कारणों से नीतीश कुमार ने अनुशंसा नहीं की और निर्वाचन विभाग को अपने प्रभाव में लेकर मामले को लटकाए रखा तथा उसे आगे की कार्रवाई नहीं करने दी.

नागरिक अधिकार मंच के संयोजक शिवप्रकाश राय ने अपनी याचिका में यह सवाल भी उठाया है कि जिन 12 लोगों को विधान परिषद में मनोनयन के लिए अनुशंसा की गई, उस अनुशंसा में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि किस व्यक्ति को किस क्षेत्र में प्राप्त विशेज्ञता के आलोक में अनुशंसा की जा रही है. जबकि उत्तर प्रदेश में जब राजनीतिक व्यक्ति के मनोनयन की बात आई तो वहां के राज्यपाल ने राज्य सरकार की अनुशंसा को यह कहकर लौटा दिया था कि जो अनुशंसित नाम हैं वे सभी राजनीतिक दलों के लोग हैं.

हाईकोर्ट में याचिका दायर कर संविधान की भावना के विपरीत लिए जा रहे निर्णय की ओर ध्यान आकृष्ट कराया गया है. दायर याचिका में तीन बिंदु उठाए गए हैं. संविधान के विपरीत मनोनयन, दो-दो वर्षों के अंतराल का पालन नहीं और मनोनयन को रद्द करते हुए वेतन-भत्ते में ली गई राशि की वसूली की मांग.अब सबको हाईकोर्ट में सुनवाई और उसके फैसले का इंतजार है.

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