बुद्धिजीवियों के बीच अमित शाह

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KHAAS KHABAR 4

 आलोक नंदन, पटना. एक ओर पूरे देश में बढ़ रहे धार्मिक उन्माद और तार्किक बहस करने वाले की हत्या के खिलाफ बुद्धिजीवियों की टोलियां सभाएं आयोजित कर रही हैं, साहित्य आकादमी के पुरष्कारों को लौटा रही है तो दूसरी ओर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह बिहार विधान सभा चुनाव में बीजेपी की जीत के लिए रू ब रू हो रहे हैं, सूबे में चुनाव के मद्देनजर उनकी तुफानी यात्रा हो रही है. पटना में बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुये वह यह तो कहते हुये नजर आये कि कभी अफगानिस्तान से बंगाल  का शासन पाटलिपुत्र और राजगीर से चलता था. वह देश का स्वर्ण युग था, बिहार को एक बार फिर उसी गौरव को हासिल करना है और यह सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही हो सकता है. क्या इतिहास करवट लेता है तो वह अतीत की ओर लौटता है? बिहार चुनाव में बीजेपी का नारा है, सरकार बदलिये, बिहार बदलिये.

            तो क्या बिहार में सरकार बदलते ही मगध साम्राज्य वाला गौरव वापस आ जाएगा. और यदि हां तो इस साम्राज्य का सम्राट कौन होगा ?  मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार विधान सभा चुनाव में लगातार इस चुनाव को बिहारी बनाम बाहरी का चुनाव करार दे रहे हैं. और साथ ही लोगों को यह भी समझा रहे हैं कि केंद्र की मोदी सरकार भारत में वर्णित संघवाद को नुकसान पहुंचा रही है. जिस मनमाने ढंगे से भारतीय इतिहास परिषद, पूणे फिल्म संस्थान सहित अन्य बुद्धिवादी निकायों को एक खास संस्कृति वाले चाल चलन में ढालने की पुरजोर कोशिश हो रही है उसे देखकर तो ऐसा ही लगता है कि हिन्दुस्तान के सिर पर संस्कृतिवाद को पूरी तरह से चढ़ाने की जुगत हो चुकी है. इस संस्कृतिवाद से बिहार के गौरव को जोड़ते हुये अमित शाह ने विद्यापति भवन में मौजूद बिहार के बुद्धिजीवियों से यहां तक कहा कि बिहार की हवा आप लोग ही बदल सकते हैं.

अपने दमदार लहजे में वह मोदी सरकार की उन योजनाओं की भी वकालत करते रहे हैं जिन्हें केंद्र सरकार ने लागू किया है. साथ ही यही भी कहा कि बिहार के लिए 1.25  लाख करोड़ रुपये के जिस पैकेज की घोषणा पीएम मोदी ने की है उस पर बिहारवासियों का हक है, लेकिन क्या यह पैसा उन लोगों के हाथों में दिया जाना चाहिए जिन्होंने अब तक बिहार को लूटने का काम किया है ? काला धन जैसे मुद्दे को 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद चुनावी जुमला करार देने वाले अमित शाह  बुद्धिजीवियों को समझाते रहे कि कैसे मोदी सरकार सीमा पर   पाकिस्तान की गोली का जवाब गोला से देकर उसे खामोश कर रही है, कैसे दुनिया भर के तमाम देश प्रधानमंत्री मोदी का
इस्तकबाल कर रहे हैं, और कैसे भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर
एक महाशक्ति के तौर पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवा रहा है. पीएम मोदी ने एक हताश और निराश देश के आत्मविश्वास को स्थापित करने का काम किया है. अब बिहार को तय करना है कि उसे किधर जाना है.

बिहार के कैबिनेट मंत्री विजय कुमार चौधरी कहते हैं, देश किस ओर जा रहा है इसे लेकर बुद्धिजीवी काफी चिंचित हैं. ये लिखने पढ़ने और सोचने वाले लोग हैं. अपनी कलम से समाज को रौशनी देते हैं और भविष्य के प्रति आगाह भी करते हैं। कुछ तो ऐसा इन्हें जरूर दिख रहा है जो देश के लिए शुभ नहीं है। हमें इस पर सोचना होगा। सवाल बिहार चुनाव में जीत और हार का नहीं है। चुनाव तो आते-जाते रहते हैं। असल सवाल है कि देश को किस दिशा में लाने की कोशिश की जा रही है, और क्या देश के लोगों की सोचने और अभिव्यक्ति की आजादी महफूज रह पाएगी ?

देश में बढ़ रही असहिष्णुता को लेकर लेखकों की चिंता के बारे में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने इस पर कुछ भी कहने इन्कार करते हुये कहा, मैं यहां बिहार पर बिहार के चुनाव के चुनाव के संदर्भ में आयी हूं. और एक पार्टी कार्यकर्ता के हैसियत से काम कर रही हूं. इस तरह के सवालों का जवाब देना मैं मुनासिब नहीं समझती हूं. जब उनसे यह पूछा गया कि राजद प्रमुख लालू यादव के नवमी पास बेटा तेजस्वी यादव की उम्मीदवारी पर वह क्या कहेंगी तो उन्होंने चुपी साध ली. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को पता होगा कि महान मगध साम्राज्य की कमान चाणक्य जैसे प्रकांड विद्वान के हाथ में थी. जब स्मृति ईरानी को मानव संसाधन विभाग दिया गया था तो उस समय भी देश के बुद्धिजीवियों में बेचैनी बढ़ी थी. सवाल उठता है कि मगध साम्राज्य का जलवा दिखाकर बिहार के बुद्धिजीवियों से बीजेपी के पक्ष में हवा बनाने की बात कहने वाले अध्यक्ष अमित शाह के पास बिहार के बौद्धिक हलके का मॉडल क्या है ?

मैकाले की शिक्षा नीति के तहत ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए क्लर्कों की फौज तैयार करने के लिए व्यापाक पैमाने पर स्कूल और कालेज खोले गये थे, यह दूसरी बात है कि इन्हीं स्कूलों और कालेजों से बाद में भारत की स्वतंत्रता की आवाज फूट पड़ी. अब नव उदारवादी के तीसरे चरण में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को एक अलग नस्ल के युवाओं की जरूरत है, जो तकनीकी ज्ञान से लैस हो. और मोदी के विकास का माडल व्यक्तिगत तौर पर आमदनी बढ़ाने के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों की इसी जरूरत की पूर्ति करने वाला है. अडानी और अंबानी जैसे गुजराती कारोबारी व्यवहारिक स्तर पर इस माडल को संचालित कर रहे हैं और अमित शाह इसे इतिहास के गौरव के साथ जोड़कर बखूबी पेश कर रहे हैं. बेशक बिहार के चुनावी शोर के बीच ही बिहार के बुद्धिजीवियों को सोचना होगा कि बिहार को किस ओर बढ़ना है.

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