एक ही संदेश देता सनातन और इस्लाम

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अताउर रहमान

          धार्मिक असहिष्णुता का मूलाधार अज्ञानता है.मज़हब के बीच काल्पनिक दीवारों को पाटने के लिए जानकारी जरुरी है. धर्मों की मूल भावना को समझने के लिए हमें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को धैर्यपूर्वक जानना होगा. बचपन से पल रही अघोषित संकीर्णताओं के धुंध को हटाना होगा. इसके लिए जरुरत पड़ेगी कोहरे में पीली बत्ती की तरह धार्मिक पुस्तकों के पन्नों में छिपे एक समान रोशनी जैसे तथ्यों को उजागर करने की.

सर्वाधिक पुरातन शब्द ‘वेद’ विद् से बना है जिसका अर्थ है जानना. कुऱआन की पहली पंक्ति अवतरित हुई ‘एकरा‘ जिसका अर्श है ‘पढ़ना‘. स्पष्ट है धर्मों का वास्तविक आदेश है पढ़ने और जानने का. वेद आकाशवाणी के जरिए धरती पर आए, और कुऱआन भी. (जिबराइल, हजरत मोहम्मद को गले लगाते और उन्हें पंक्तियां याद हो जाती थी). दोनों किसी भौतिक स्वरूप और यथा पुस्तक, शिलालेख आदि के रूप में नहीं आए. स्पष्ट संकेत है कि धर्म हमारी ज्ञानेंद्रियों की कायल नहीं बल्कि हमारे आत्मा से जुड़ी हैं.

सनातन और इस्लाम दोनों में एकेश्वरवाद है. ‘‘नमो विश्वसृजे पूर्वम विश्वम तदनु विभ्रते, अथ विश्वस्व संहत्रे तुभ्यं त्रेधा स्थितात्मने’’ अर्थात तुम जो तीनों एक ही आत्मा में बसते हो. ब्रह्मा, विष्णु और महेश के तीनों रूपों की आत्मा एक ही है. ‘‘ लाइलाहा इल्लाल्लाह’’. मतलब नहीं है सिवाय कोई अल्लाह के. ‘‘अल्लाह हो अकबर”, अल्लाह सबसे बड़ा है. दोनों संदर्भ भगवान के एकात्मकता और सर्वश व्रिमान का परिचायक है.

अवतार और पुस्तक की विभिन्नता और विविधता दोनों धाराओं में वर्तमान है. विविध कालखण्डों में विविध रूप भगवान का भौतिक रूपी अवतरण सनातन धर्म में है. कृष्ण हो या राम विष्णु के स्वरूप को दर्शाते हैं. हजरत मोहम्मद से पहले एक लाख चौतीस हजार पैंगम्बर(संदेशवाहक) धरती पर आए. कुऱआन में अल्लाह कहते हैं – ‘ऐ नबी (हजरत मोहम्मद) हमने आपको पूरी कायनात के लिए रहमत बना कर भेजा’. वहीं कृष्ण कहते हैं- ‘नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिहविद्यते’ अर्थात ज्ञान के समान कुछ भी पवित्र नहीं. अवतारों ने तत्कालीन अंधेरा को ज्ञान की रोशनी दी और सत्य का आभास कराया. दरअसल अवतारों द्वारा भगवान ने जीवन के सिद्धांतों को व्यवहार में लाने की कला का प्रदर्शन किया. जहां जीवन है वहां मृत्यु भी. नश्वर शरीर का आभास यहीं पर होता है. गीता ‘ज्ञातस्य हि ध्रवोमृत्युः’ जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु तय है का पाठ पढ़ाती है तो कुऱआन कहता है ‘कुल्लो नफसिन ज़ायक़तुल मौत’ हर नफ़्स(जीव) को मौत का सज़ा चखना है.

जन्म और मृत्यु के बीच जीवन सिद्धांतो और व्यवहारों को वेद, कुऱआन और उनकी सहयोगी पुस्तकें स्पष्ट करती हैं. भक्ति और जीवन यापन के तरीकों को झांक कर देखिए. मंदिरों की सात परिक्रमा, काबड के सात तबापू की तरह हैं. खाने से पहले श्री गणेश और बिस्मिल्लाह पढ़ना कुछ इशारा करता है. इस्लाम के पांच स्तम्भ ईमान- परमेश्वर में श्रद्धा, नमाज- प्रार्थना, रोज़ा- उपवास, ज्ञ़कात- दान और हज- तीर्थ सभी वैदिकों के भी आधार हैं.

आधुनिक संचार प्रणाली ने हमारे प्रणाली ने हमारे ग्रंथों में छिपे रहस्यों को सार्वजनिक और सर्वभौमिक करने में बड़ा योगदान दिया है. भौतिक रूप में बर्बाद हो रहे सामग्रियों को इलेक्ट्रॉनिक आयाम प्रदान कर दीर्घायु बनाया है. अब सभी पुस्तकें और विभिन्न रीति रिवाजो की जीवन्त तस्वीरें आम जन के लिए उपलब्ध है. विश्व शांति हेतु गूढ़ रहस्य जो भारतीय और संलग्न क्षेत्रों में उपलब्ध हैं वह कहीं और नहीं. अधिकाधिक प्रचार और प्रसार की आवश्यकता है. हमारे संत और मनिषी प्लूटो, सुकरात और अरस्तु से कम नहीं. हमारी विविधता हमारी पहचान है. वसुधैव कुटुम्बकम का नारा हमने ही दिया है. जितने दर्शन हमारे पास हैं व्यवहार में आए तो अशांति दुनिया से उठ जाए.

बस जरुरत है जिन आडम्बरों ने हमारे आंख बंद कर रखे हैं, जिस धुंध ने सत्य को हमसे ओझल बना रखा है, जिन ऊंची आवाज ने सत्य को दबा रखा है, जिन पूर्वाग्रहों ने संकीर्णता की चादर से ढ़क रखा है उससे बाहर निकले और संसार को बता दें कि हम एक हैं. जिस परमात्मा का अंश मेरे अंदर है, हमें उसका आभास हो. गीता में आत्मा की अमरता की चर्चा है, कुऱआन भी ‘आलमे आरवाह’ रूहों की दुनिया की बात करता है. उधर ‘एको अहम्, द्वितीयो नास्ति’ अर्थात, एक मैं हूं, दूसरा नहीं की धारणा है तो इधर ‘अनल हक’ मतलब, मैं ही एक हूं की चर्चा है.

काश हमें आभास हो जाए कि सर्वोत्कृष्ट जीवात्मा मनुष्य जिसे ‘अशरफ़ुल मख़लूक़ात’ के नाम से भी जानता है, में उसी एक परमात्मा का प्रकाश(अंश) है. वर्षा की बूंदे अंततः उस कालजयी महासागर में मिल ही जाती है, तरीका, रास्ता उतना अर्थ नहीं रखता. यही समझ हमें जगाएगी कि हम एक हैं.

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