अल्जाइमर रोगी – कठिन डगर अपनों का साथ बुजुर्गों को चाहिए आपका प्यार

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Adult Daughter Talking To Depressed Senior Father

डा.मनोज कुमार ( काउंसलिंग साइकोलोजिस्ट)

दिव्या सिन्हा को बैंक से रिटायर हुए बारह साल हो गए हैं. वह प्रतिदिन चाय-नास्ता करने अपने पड़ोसी के यहां पहुंच जाती हैं. वहां जाकर अपने घरवालों की काफी शिकायतें करती हैं, उनके बेटे-बहू काफी परेशान रह रहे हैं. यही हाल सुमन के दादाजी का भी है. वह हर छोटी-छोटी बातों को भूल जाते हैं. कभी नास्ता करने के बाद पड़ोसियों को बताने जाते हैं कि उनकी बहू ने उन्हें नास्ता नहीं दिया. रिश्तेदारों को बुला लेते हैं और अपनी पत्नी और पोते-पोतियों को पहचानने से इंकार कर देते हैं.

दरअसल जीवन के वयस्तम भागमभाग के बाद वृद्धावस्था एक ऐसा पड़ाव है जहां हर किसी को रूकना है और कई बार बुजुर्गों को यह बीमारियां भी घेर लेती हैं वो है अल्जाइमर रोग. आज के समय में प्रायः यह देखा गया है कि उम्रदराज लोगों में उनके अस्पष्ट उच्चारण की शिकायत रहने लगती है. उनके शरीर की मांसपेशियां उनके इच्छा के विपरीत कार्य करने लगती हैं जैसे – शरीर में कंपन होना. वे अपनी छड़ी भी नहीं पकड़ पाते हैं.तमाम कोशिशों के बावजूद चाय का प्याला हाथ से छूट जाता है. बुजुर्गों की बौद्धिक ह्रास होने लगती है और घर के सदस्य बूढ़ो को सठिया कहना शुरू कर देते हैं.

दरअसल ये लक्षण अल्जाइमर रोग के हो सकते हैं. इस बीमारी में शरीर का एक खास हिस्सा क्षतिग्रस्त हो जाता है और व्यक्ति का व्यवहार बदलने लगता है. यह रोग 65 वर्ष की उम्र से पहले शुरू हो जाता हैइसे पूर्वजराजन्य मनोभ्रंश कहते हैं. अमूमन यह एक जीर्ण रोग है जो 40 पार लोगों में भी पाया जाने लगा है. इस बीमारी में स्नायुकोष की क्षति होती है जिस वजह से लोगों में अस्पष्ट उच्चारण शुरू होता है. शारीर में कंपन होना एवं व्यवहारिक ज्ञान में भी कमी होने लगती है.

क्या हैं लक्षण

बढ़ती उम्र में यह रोग लोगों में तीन अवस्थाओं में पाया जाता है. पहली अवस्था में रोगी के याद्दाश्त में एक-एक कर के कमी आती है. उनकी तर्कशक्ति व एकाग्रता में काफी उतार-चढ़ाव आ जाते हैं. आप पायेंगे कि उनकी दिन-प्रतिदन कार्यकुशलता कम हो रही है. वह अपना साधारण काम करने में भी परेशानी महसूस करते हैं. अपनी इन कमियों को वे अपने घरवालों पर तोपने लगते हैं. और एक-एक कर अपने परिवार के सदस्यों के प्रति उत्पीड़न का ताना-बाना समाज के समक्ष बुनना शुरू कर देते हैं.

दूसरी अवस्था में अल्जाइमर पीड़ित व्यक्ति की तकलीफ और बढ़ जाती है. अब वह पहले से ज्यादा खिन्न और नाटकीय हो जाता है. उसका मिजाज चिड़चिड़ा रहने लगता है और वो घरवालों पर शक करने लगता है. चेहरे पर उदासी छायी रहती है. कई बार वे अपने आप खिलखिलाते हैं या फिर दूसरों पर चिल्ला रहे होते हैं. उनका स्वभाव भ्रमणशील व अपने कार्यों को दोहराने वाला हो जाता है.

तीसरी अवस्था में पहुंच चुका रोगी काफी गंभीर हो जाता है. इस दौर का पीड़ित समय का ध्यान नहीं रखता है. स्थान में फर्क नहीं जानता है. अधिकतर अपनी जीवन उदासीन तरीके से जीने शुरू कर देता है, और अपने ही परिवार के लोगों को पहचानने से इंकार कर देता है.

उपचार

यह बीमारी पुरूषों के अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होने लगी है. व्यक्ति के मस्तिष्क का आगे का हिस्सा नष्ट हो जाता है और अगले 4-5 सालों में बीमारी व्यक्ति पर हावी हो जाता है. इसलिए इसका उपचार भी सीमित हो जाता है. फिर भी आप अपने घर के बुजुर्गों को दबाव व तनाव की अतिरेक से बचा सकते हैं. नियमित रूप से इनकी कीउंसिलिंग होती रहे तो इनके अवस्था की जानकारी मालूम हो जाती है. साथ ही इन्हें बेहतर ऑक्सीजन मिलता रहे इसके लिए सुबह-शाम की सैर जरूरी है. याद रखें आपके प्यार और सम्मान भरा देख-रेख इनमें  नयी उर्जा का संचार करता है, इनकी अनदेखी कतई न करें.

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